भारत को नीली क्रांति देने वाले डॉ. अय्यप्पन का निधन, किसानों के लिए थे मसीहा

7 मई 2025 को वे अचानक लापता हो गए और 10 मई 2025 को उनका शरीर कावेरी नदी के किनारे मिला, जहां वे अक्सर ध्यान करने जाया करते थे. वे 69 वर्ष के थे.

नई दिल्ली | Published: 11 May, 2025 | 03:12 PM

भारत में जब भी जल कृषि, मत्स्य पालन या विज्ञान आधारित खेती की बात होती है, तो एक नाम हमेशा आदर और गर्व से लिया जाता है-डॉ. सुबन्ना अय्यप्पन. उन्होंने न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मछली पालन को एक उद्योग का रूप दिया, बल्कि हजारों किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनने का रास्ता भी दिखाया. कर्नाटक की धरती से उठकर, उन्होंने अपने समर्पण और साधना से भारत को “नीली क्रांति” दी, एक ऐसी क्रांति, जो मछली पालन को ग्रामीण भारत की रीढ़ बना गई.

लेकिन 7 मई 2025 को वे अचानक लापता हो गए और 10 मई 2025 को उनका शरीर कावेरी नदी के किनारे मिला, जहां वे अक्सर ध्यान करने जाया करते थे. वे 69 वर्ष के थे. चलिए जानते हैं कृषि में उनका अहम योगदान.

शुरुआती जीवन और शिक्षा

डॉ. अय्यप्पन का जन्म 10 दिसंबर 1955 को हुआ था. छोटे से गांव से निकले इस बालक को पानी के जीवों और उनके संसार से खास लगाव था.उन्होंने मैंगलोर के फिशरीज कॉलेज से मछली उत्पादन और प्रबंधन में मास्टर डिग्री ली. फिर बैंगलोर विश्वविद्यालय से उन्होंने पीएचडी की डिग्री प्राप्त की और जल जीव विज्ञान, लिम्नोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी उनके पसंदीदा शोध विषय रहे.

वैज्ञानिक से नीति निर्माता बनने तक का सफर

साल 1978 में डॉ. अय्यप्पन ने ICAR (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) में वैज्ञानिक के रूप में अपना करियर शुरू किया. इसके बाद उनका सफर कुछ इस तरह रहा:

  • 1996: CIFA, भुवनेश्वर के निदेशक बने.
  • बाद में CIFE, मुंबई के निदेशक (ICAR की डीम्ड यूनिवर्सिटी) बने.
  • 2002: ICAR मुख्यालय पहुंचे, उप महानिदेशक (मत्स्य) के रूप में कार्य किया.
  • 2010 से 2016: बने ICAR के महानिदेशक और DARE के सचिव.
  • इसके अलावा वे राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड, हैदराबाद के संस्थापक सीईओ भी रहे.

वो पहले ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने “फसलों” से इतर विज्ञान में होते हुए भी ICAR का नेतृत्व किया.

नीली क्रांति में उनका अहम योगदान

भारत में मछली पालन को वैज्ञानिक आधार देना, उसे एक संगठित क्षेत्र में बदलना और ग्रामीण स्तर पर किसानों को इससे जोड़ना, ये सब डॉ. अय्यप्पन की दूरदृष्टि का परिणाम था. उनके प्रयासों से छोटे किसान भी मत्स्य पालन से आमदनी पाने लगे. इतना ही नहीं देश के अनेक राज्यों में एक्वाकल्चर को बढ़ावा मिला. इसके साथ ही वैज्ञानिक रिसर्च सीधे किसानों तक पहुंची.

FAO, IRRI, ICARDA, और BISA जैसे संगठनों में सदस्य के रूप में उन्होंने वैश्विक मत्स्य पालन और कृषि अनुसंधान में योगदान दिया.

सम्मान और पुरस्कार

उनके जीवन में कई पुरस्कार मिले, लेकिन हर सम्मान के पीछे एक लंबी साधना और सेवा की भावना छिपी रही:

  • पद्म श्री (2022) – विज्ञान और इंजीनियरिंग में उत्कृष्ट सेवा के लिए.
  • जहूर कासिम गोल्ड मेडल (1996-97)
  • विशेष ICAR पुरस्कार (1997)
  • टीम अनुसंधान पुरस्कार (1997-98)
  • डॉ. वी.जी. झिंगरन स्वर्ण पदक (2002)
  • प्रो. एच.पी.सी. शेट्टी अवार्ड (2002)