हरी मटर एक ऐसी फसल है जिसकी खेती करके किसान अच्छी पैदावार कर सकते हैं. हरी मटर की मांग बाजार में सालभर बनी रहती है. ऐसे में हरी मटर की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि किसान हरी मटर की उन्नत किस्मों का चुनाव करें. जिनकी खेती से अच्छे उत्पादन में मदद मिलती है. बात कर लेते हैं हरी मटर की तीन उन्नत किस्मों के बारे में जिनकी खेती कर किसान अच्छी पैदावार कर सकते हैं.
हरी मटर की 3 उन्नत किस्में
अर्कल
अर्कल हरी मटर की एक जल्दी पकने वाली किस्म है. ये हरी मटर की अन्य किस्मों के मुकाबले जल्दी पकती है.अर्कल की उत्पादन क्षमता अच्छी होती है और किसान इसकी फसल से तीन तुड़ाई कर सकते हैं. यह किस्म चूर्णिया फफूंदी रोग के प्रतिरोधी भी है. बात करें इसकी उपज की तो इसकी प्रति एकड़ फसल से करीब 26 से 28 क्विंटल तक पैदावार होती है. अर्कल हरी मटर बुवाई के लगभग 60 से 65 दिनों बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है. इसके पौधे 50 से 60 सेमी ऊंचे होते हैं.
काशी नंदिनी
काशी नंदिनी हरी मटर की एक अगेती किस्मों में से एक है यानी जल्दी पकने वाली किस्म है. हरी मटर की इस किस्म को भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी द्वारा विकसित किया गया था. इसकी फसल 60 से 65 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है.बात करें इसकी पैदावार की तो काशी नंदिनी की प्रति हेक्टेयर फसल से करीब 110 से 120 क्विंटल तक उपज देती है. जो कि किसानों की कमाई के लिहाज से अच्छी है. इसके पौधे करीब 47 से 51 सेमी तक ऊंचे होते हैं.
पूसा श्री
हरी मटर की इस किस्म को 2013 में विकसित किया गया था. यह किस्म उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में बुवाई के लिए सही मानी जाती है. पूसा श्री भी हरी मटर की अगेती किस्मों में से एक है. इसकी बुवाई का समय आमतैर पर सितंबर के महीने से शुरू होता है. यह एक ऐसी किस्म है जो फली छेदक और फफूंद वाले रोगों की प्रतिरोधी है. बात करें इसकी उपज की तो यह बुवाई के 50 से 55 दिनों बाद तैयार हो जाती है. बता दें कि पूसा श्री की प्रति एकड़ फसल से लगभग 20 से 21 क्विंटल तक पैदावार होती है.