Urea Price: कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) ने सरकार को सलाह दी है कि यूरिया की कीमतों में धीरे-धीरे बढ़ोतरी की जाए. आयोग का कहना है कि इससे खेतों में पोषक तत्वों (NPK) का असंतुलित इस्तेमाल रोका जा सकेगा और मिट्टी की सेहत बनी रहेगी. फिलहाल यूरिया पर बहुत ज्यादा सब्सिडी होने के कारण कई किसान खेतों में जरूरत से ज्यादा यूरिया का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे फसलों की पैदावार और मिट्टी दोनों पर असर पड़ रहा है.
बढ़ोतरी की जरूरत क्यों महसूस की जा रही है?
अभी किसान 45 किलो यूरिया का बैग लगभग 242 रुपये में ले पा रहे हैं. यह बहुत कम कीमत है और कुछ राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में किसान प्रति हेक्टेयर 500 किलो से भी ज्यादा यूरिया इस्तेमाल कर रहे हैं. इस वजह से मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्व कम हो रहे हैं और फसलों में संतुलित पोषण नहीं मिल पा रहा. आयोग ने सुझाव दिया है कि यूरिया की सब्सिडी थोड़ी कम करके उसका फायदा फॉस्फेट (P) और पोटाश (K) जैसी खादों पर बढ़ाया जाए. इससे किसान संतुलित उर्वरक इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित होंगे.
उत्पादन और आयात की स्थिति
भारत में यूरिया उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. 2015-16 में उत्पादन 24.5 मिलियन टन था, जो 2023-24 में 31.4 मिलियन टन तक पहुंच गया. 2024-25 में उत्पादन थोड़ी कमी के साथ 30.6 मिलियन टन रहा. आयात भी कम हुआ है, 2015-16 में 8.5 मिलियन टन यूरिया आयात हुआ था, जो 2024-25 में घटकर 5.6 मिलियन टन रह गया. इससे कुल खपत में आयात का हिस्सा 27.7 फीसदी से घटकर 14.6 फीसदी हो गया और आत्मनिर्भरता बढ़ी.
CACP की अन्य सिफारिशें
- किसानों को सूक्ष्म पोषक तत्व और बायो-फर्टिलाइजर इस्तेमाल करने के लिए जागरूक किया जाए.
- मिट्टी जांच प्रयोगशालाओं को आधुनिक उपकरणों से सजाया जाए और कर्मचारियों को ट्रेनिंग दी जाए.
- राष्ट्रीय स्तर पर मिट्टी की सेहत और संतुलित पोषण के लिए अभियान चलाया जाए.
सरकार के प्रयास
सरकार पहले ही कई कार्यक्रम चला रही है:
पीएम-प्रणाम (PM-PRANAM) – मिट्टी की सेहत और संतुलित पोषण पर ध्यान.
गोबरधन (GOBARdhan) – जैविक खाद को बढ़ावा.
नैनो यूरिया और बायो-फर्टिलाइजर – टिकाऊ खेती को बढ़ावा.
हालिया यूरिया संकट
इस खरीफ सीजन में कई राज्यों में यूरिया की कमी देखी गई. अच्छे मानसून और किसानों की ज्यादा खपत के कारण यूरिया की मांग बढ़ गई. साथ ही, चीन के निर्यात पर प्रतिबंध और वैश्विक हालात के कारण कीमतें भी बढ़ गईं. CACP का कहना है कि कीमतों में धीरे-धीरे बढ़ोतरी और सब्सिडी का सही इस्तेमाल ही इस समस्या का समाधान हो सकता है.