हर्बल और फ्लावर टी पर FSSAI का सख्त फैसला, जानिए अब किसे कह सकेंगे चाय?

FSSAI ने साफ किया कि खाद्य सुरक्षा एवं मानक नियमों के तहत चाय की परिभाषा पहले से तय है. नियमों के अनुसार कांगड़ा चाय, ग्रीन टी या इंस्टेंट टी केवल कैमेलिया साइनेंसिस से बनी होनी चाहिए. इसके अलावा लेबलिंग नियम भी कहते हैं कि पैकेट पर वही नाम लिखा जाए, जो अंदर मौजूद उत्पाद की असली पहचान बताता हो.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 27 Dec, 2025 | 08:49 AM
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FSSAI Tea Definition: भारत में चाय पीना केवल एक आदत नहीं, बल्कि संस्कृति का हिस्सा है. सुबह की शुरुआत हो या मेहमानों का स्वागत, चाय हर मौके पर मौजूद रहती है. लेकिन अब “चाय” शब्द को लेकर बड़ा और साफ फैसला सामने आया है. भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने स्पष्ट कर दिया है कि हर पेय पदार्थ को चाय नहीं कहा जा सकता. इस फैसले के बाद हर्बल टी, फ्लावर टी और रूइबोस टी जैसे नामों पर सवाल खड़े हो गए हैं.

क्या है FSSAI का नया स्पष्टीकरण

FSSAI ने 24 दिसंबर को जारी अपने स्पष्टीकरण में कहा है कि किसी भी पेय को “चाय” तभी कहा जा सकता है, जब वह कैमेलिया साइनेंसिस नामक पौधे से तैयार किया गया हो. यही पौधा पारंपरिक चाय का असली स्रोत है. भारत के चाय बागानों में वर्षों से इसी पौधे की पत्तियों से काली चाय, हरी चाय और इंस्टेंट चाय बनाई जाती रही है. आमतौर पर इस पौधे से दो पत्तियां और एक कोमल कली तोड़ी जाती है, जिससे चाय का स्वाद और खुशबू बनती है.

हर्बल और फ्लावर ड्रिंक्स पर क्यों लगी रोक

FSSAI का कहना है कि हाल के वर्षों में कई कंपनियां ऐसे पेय पदार्थ बाजार में बेच रही थीं, जो किसी और पौधे, फूल या जड़ी-बूटी से बने होते हैं, लेकिन उन्हें “हर्बल टी” या “फ्लावर टी” कहा जा रहा था. FSSAI के अनुसार, यह उपभोक्ताओं को भ्रमित करने वाला है. क्योंकि ऐसे पेय कैमेलिया साइनेंसिस से नहीं बनते, इसलिए उन्हें चाय कहना गलत और भ्रामक है.

कानून क्या कहता है

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, FSSAI ने साफ किया कि खाद्य सुरक्षा एवं मानक नियमों के तहत चाय की परिभाषा पहले से तय है. नियमों के अनुसार कांगड़ा चाय, ग्रीन टी या इंस्टेंट टी केवल कैमेलिया साइनेंसिस से बनी होनी चाहिए. इसके अलावा लेबलिंग नियम भी कहते हैं कि पैकेट पर वही नाम लिखा जाए, जो अंदर मौजूद उत्पाद की असली पहचान बताता हो. गलत नाम लिखना कानूनन “गलत ब्रांडिंग” माना जाएगा.

कंपनियों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के लिए निर्देश

इस फैसले के बाद FSSAI ने सभी खाद्य कारोबारियों को निर्देश दिया है कि वे अपने उत्पादों के नाम और लेबल की समीक्षा करें. चाहे वह निर्माता हों, पैकिंग करने वाले हों, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म हों या आयातक—अगर उनका उत्पाद कैमेलिया साइनेंसिस से नहीं बना है, तो वे उसे चाय नहीं कह सकते. ऐसे उत्पादों को अलग श्रेणी में रखा जाएगा, जैसे हर्बल ड्रिंक या प्लांट-बेस्ड इन्फ्यूजन.

उपभोक्ताओं के लिए क्या बदलेगा

इस फैसले से उपभोक्ताओं को सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि उन्हें साफ जानकारी मिलेगी. अब बाजार में चाय के नाम पर बिक रहे अलग-अलग पेय पदार्थों को पहचानना आसान होगा. लोग जान पाएंगे कि असली चाय कौन सी है और कौन सा पेय सिर्फ जड़ी-बूटियों या फूलों से बना हुआ है.

चाय उद्योग ने किया स्वागत

चाय से जुड़े संगठनों ने FSSAI के इस फैसले का स्वागत किया है. उनका कहना है कि इससे उपभोक्ताओं में फैली उलझन दूर होगी और असली चाय की पहचान मजबूत होगी. विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भारतीय चाय उद्योग के लिए भी फायदेमंद साबित होगा, क्योंकि इससे पारंपरिक चाय की विशिष्टता बनी रहेगी.

क्यों अहम है यह फैसला

आज जब स्वास्थ्य के नाम पर तरह-तरह के पेय बाजार में आ रहे हैं, तब नाम और पहचान का स्पष्ट होना बेहद जरूरी है. FSSAI का यह कदम उपभोक्ता हित में माना जा रहा है. इससे न सिर्फ नियमों का पालन सुनिश्चित होगा, बल्कि लोगों को सही जानकारी भी मिलेगी.

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