क्या आपने कभी ऐसी चाय के बारे में सुना है जो सिर्फ पूर्णिमा की रात, चांद की रोशनी में, ग्रहों की विशेष स्थिति के दौरान तोड़ी जाती है? मकाईबाड़ी टी एस्टेट की Silver Tips Imperial चाय ऐसी ही एक दुर्लभ और अनोखी चाय है. पश्चिम बंगाल के कुर्सियांग में स्थित यह एस्टेट सिर्फ चाय उगाता नहीं, उसे सहेजता है.
दुनियाभर में यह चाय सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि अनुभव है, जो आपके कप से होते हुए आत्मा तक पहुंचती है. लोकगीतों की मधुर धुन, मशालों की रोशनी और पूरी प्रकृति की लयबद्ध ऊर्जा मिलकर इस चाय को बनाती है खास. यही वजह है कि इसकी कीमत 40,000 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाती है.
दरअसल, इस चाय की हर चुस्की में छिपी है मेहनत, धैर्य, परंपरा और प्रकृति से तालमेल की एक अनमोल कहानी. तो चलिए जानते हैं इस चाय से जुड़ी हर बात.
चांद की रोशनी में तोड़ी जाती है यह खास चाय
सिल्वर टिप्स इम्पीरियल को सिर्फ पूर्णिमा (फुल मून) की रातों में तोड़ा जाता है. इस समय जब चांद, सूरज और ग्रह एक खास स्थिति में होते हैं, तब पौधों में ऊर्जा का संचार सबसे ज्यादा माना जाता है. मकाईबाड़ी की खेती बायोडायनामिक तरीके से की जाती है, मतलब खेती के हर कदम में प्रकृति की लय और ब्रह्मांड के संकेतों का ध्यान रखा जाता है.
इन रातों में महिलाएं पारंपरिक लोकगीत गाते हुए बेहद सावधानी से सिर्फ एक कली और एक पत्ता तोड़ती हैं. उनके साथ चल रहे पुरुष मशाल लेकर रास्ता रोशन करते हैं. सूरज निकलने से पहले ये पत्ते फैक्ट्री पहुंचते हैं, जहां चाय बनने की यात्रा शुरू होती है.
स्वाद और सुगंध
सिल्वर टिप्स एक सॉफ्ट ऊलोंग चाय है, जिसमें शहद, सफेद आड़ू और जंगली फूलों की खुशबू मिलती है. यह बहुत सीमित मात्रा में ही साल में कुछ ही बार बनाई जाती है. इसका स्वाद सिर्फ जीभ पर नहीं, दिल और दिमाग पर भी असर डालता है. 1,950 रुपये में सिर्फ 50 ग्राम चाय मिलती है.
क्यों है इतनी महंगी?
- सीमित उत्पादन: यह चाय साल में केवल दो बार बनती है.
- ऑर्गेनिक और बायोडायनामिक फार्मिंग: बिना किसी रसायन के खेती होती है.
- हाथों से तुड़ाई और पारंपरिक प्रोसेसिंग: पूरी प्रक्रिया मानव श्रम पर आधारित होती है.
- फूलों की खुशबू और मिठास: इसका स्वाद बेहद नाजुक, फूलों जैसा और मीठा होता है, जो आम चाय से बिल्कुल अलग होता है.
कैसे बनती है मकाईबाड़ी की चाय
1. तोड़ाई: सिर्फ हाथों से तोड़ी जाती है या तो दो पत्ते और एक कली, या सिर्फ बंद कली. इसकी तोड़ाई में मशीनों की कोई जगह नहीं.
2. विलिंग: ताजे पत्ते हवादार टेबलों पर फैलाए जाते हैं. हल्की गर्म हवा से धीरे-धीरे इनका पानी कम होता है, जिससे स्वाद बाहर आता है.
3. रोलिंग: साधारण चाय मशीनों से रोल होती है, पर सिल्वर टिप्स को हाथ से बहुत प्यार से मरोड़ा जाता है, ताकि उसकी कोमलता बनी रहे.
4. ऑक्सीकरण: एकदम सटीक समय तक किया जाता है, जिससे चाय का फूलों जैसा स्वाद बना रहे.
5. सुखाना: गर्म हवा से चाय को सुखाया जाता है, जिससे उसकी खुशबू बंद हो जाती है.
6. छंटाई और ग्रेडिंग: हर कली को आकार और रंग के अनुसार छांटा जाता है, कोई पत्ती टूटी नहीं होनी चाहिए.
7. पैकिंग: एयरटाइट पैकिंग में चाय को ताजगी के साथ बंद किया जाता है.
रासायनिक खाद नहीं, सिर्फ जैविक तरीका
मकाईबाड़ी में किसी तरह का केमिकल खाद या कीटनाशक इस्तेमाल नहीं होता. गोबर, सूखे पत्ते और जैविक पदार्थों से खाद खुद एस्टेट में ही तैयार की जाती है. यहां तक कि खेती का हर कदम चंद्रमा और ग्रहों की स्थिति को देखकर तय किया जाता है.
महारानी से लेकर प्रधानमंत्री तक की पसंद
मकाईबाड़ी की चाय सिर्फ आम जनता ही नहीं, बल्कि विशेष लोगों की पसंद रही है. ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा यह चाय उपहार में दी गई थी. किंग चार्ल्स तृतीय के राज्याभिषेक पर भी सिल्वर टिप्स इम्पीरियल को विशेष तौर पर भेजा गया.
कहां मिलती है यह चाय?
मकाईबाड़ी हर साल लगभग 90,000 किलो चाय का उत्पादन करता है, जिसमें से 60 फीसदी विदेशों में निर्यात होती है. भारत में इसकी बिक्री विशेष स्टोर्स पर होती है, जैसे कोलकाता एयरपोर्ट, मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट, बागडोगरा, वाराणसी, पुणे, अब जल्द ही गोवा एयरपोर्ट पर भी स्टोर खुलने जा रहा है.
कोलकाता के ताज बंगाल होटल में ‘मकाईबाड़ी बंगला’ नाम से एक खास अनुभव केंद्र भी खोला गया है, जहां चाय का स्वाद, कहानी और संस्कृति एकसाथ मिलती है.
अब वैश्विक विस्तार की ओर
मकाईबाड़ी अब केवल भारत तक सीमित नहीं रही. इसका संचालन करने वाला लक्मी ग्रुप आज 26 टी एस्टेट्स चला रहा है, जिनमें से चार अफ्रीका में स्थित हैं. हाल ही में इस ग्रुप ने ब्रिटेन की प्रतिष्ठित Brew Tea Company को भी अपने अधिग्रहण में शामिल किया है. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि चाय बनाने का उनका तरीका आज भी पहले जैसा ही है- ना मशीनों का उपयोग, ना कोई शॉर्टकट. सिर्फ धैर्य, प्रकृति की लय और पारंपरिक ज्ञान के सहारे वे हर पत्ती को एक कला की तरह तैयार करते हैं. यही कारण है कि मकाईबाड़ी की पहचान अब एक ग्लोबल ऑर्गेनिक ब्रांड के रूप में हो रही है.