हिमाचल में शुरू हुआ अनोखा बायोचार मिशन, जंगलों में आग और प्रदूषण पर लगेगी लगाम

यह बायोचार प्रोजेक्ट हिमाचल प्रदेश के लिए एक पायलट मॉडल होगा. अगर यह सफल रहता है, तो इसे राज्य के अन्य हिस्सों और देश के दूसरे पहाड़ी राज्यों में भी लागू किया जा सकता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 30 Aug, 2025 | 08:17 AM

हिमाचल प्रदेश अपनी खूबसूरत पहाड़ियों और घने जंगलों के लिए जाना जाता है. लेकिन यहां हर साल गर्मियों के दौरान जंगलों में आग लगना एक गंभीर समस्या बन जाती है. खासकर चीड़ की सूखी पत्तियां और लैंटाना जैसी आक्रामक झाड़ियां आग लगने का बड़ा कारण बनती हैं. इससेकेवल जंगलों को नुकसान होता है, बल्कि गांव के लोगों की जिंदगी और जंगली जीवों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाती है.

इसी समस्या का स्थायी हल निकालने के लिए अब हिमाचल प्रदेश में एक बड़ा कदम उठाया गया है. हिमाचल प्रदेश वन विभाग, डॉ. वाईएस परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री (यूपीएसयूएचएफ) और चेन्नई की कंपनी प्रो-क्लाइम ने मिलकर एक बायोचार प्रोजेक्ट शुरू करने का समझौता किया है. इस प्रोजेक्ट से जंगलों की आग कम होगी, पर्यावरण सुरक्षित होगा और गांवों के लोगों को रोजगार भी मिलेगा.

क्यों जरूरी है बायोचार प्रोजेक्ट?

  • हिमाचल के जंगलों में हर साल करीब 20 फीसदी क्षेत्र आग की चपेट में आता है.
  • चीड़ की पत्तियां बहुत तेजी से जलती हैं और आग फैलने का बड़ा कारण बनती हैं.
  • लैंटाना जैसी झाड़ियां खेती की जमीन और जंगल दोनों को नुकसान पहुंचा रही हैं.
  • जंगल की आग सेकेवल पर्यावरण को हानि होती है, बल्कि करोड़ों रुपये की वन संपदा भी बर्बाद होती है.

अगर इन सूखी पत्तियों और झाड़ियों को इकट्ठा कर सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो ये जंगल के लिए खतरा नहीं बल्कि गांव की तरक्की का जरिया बन सकती हैं.

बायोचार प्रोजेक्ट क्या है?

बायोचार (Biochar) एक तरह का कार्बन समृद्ध पदार्थ है, जो बायोमास (जैसे पत्तियां, लकड़ी, लैंटाना) को जलाकर खास तकनीक से बनाया जाता है. यह मिट्टी में मिलाने पर उसकी उर्वरता बढ़ाता है और लंबे समय तक कार्बन को जमीन में सुरक्षित रखता है.

इस प्रोजेक्ट के तहत क्या होगा?

इस प्रोजेक्ट के तहत कई संस्थाएं मिलकर काम करेंगी. प्रो-क्लाइम कंपनी लगभग 1 मिलियन डॉलर (करीब 8 करोड़ रुपये) का निवेश करेगी. वहीं, यूनिवर्सिटी अपनी जमीन पर बायोचार प्लांट स्थापित करेगी ताकि उत्पादन को आसानी से शुरू किया जा सके. इसके लिए वन विभाग चीड़ की पत्तियों और अन्य बायोमास की नियमित सप्लाई सुनिश्चित करेगा. योजना के मुताबिक, यह प्रोजेक्ट साल 2027 तक पूरी तरह चालू हो जाएगा और इसके बाद हर साल हजारों टन बायोचार का उत्पादन किया जाएगा, जिससे पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय अर्थव्यवस्था दोनों को फायदा होगा.

गांव के लोगों को कैसे फायदा होगा?

  • यह प्रोजेक्ट सिर्फ पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि गांव की आजीविका के लिए भी मददगार है.
  • गांव के लोग जंगल से चीड़ की पत्तियां और लैंटाना इकट्ठा करके प्लांट तक पहुंचाएंगे. इसके बदले उन्हें 2.5 रुपये प्रति किलो भुगतान मिलेगा.
  • इससे हर साल करीब 50,000 मजदूरी दिवस का रोजगार पैदा होगा.
  • 7–10 लोगों को सीधे प्लांट में नौकरी मिलेगी.
  • किसानों को बायोचार का इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग दी जाएगी, जिससे उनकी फसल की पैदावार और मिट्टी की सेहत सुधरेगी.

पर्यावरण और समाज को लाभ

  • जंगलों में आग की घटनाएं कम होंगी.
  • मिट्टी की उर्वरता और नमी बनी रहेगी.
  • कार्बन क्रेडिट बेचकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक लाभ होगा.
  • गांवों में रोजगार और युवाओं के लिए नई स्किल सीखने का मौका मिलेगा.
  • राज्य को एक नया क्लाइमेट-फ्रेंडली मॉडल मिलेगा.

भविष्य के लिए समाधान

यह बायोचार प्रोजेक्ट हिमाचल प्रदेश के लिए एक पायलट मॉडल होगा. अगर यह सफल रहता है, तो इसे राज्य के अन्य हिस्सों और देश के दूसरे पहाड़ी राज्यों में भी लागू किया जा सकता है. इस पहल से साबित होता है कि अगर सरकार, विज्ञान और उद्योग साथ मिलकर काम करें, तो जंगल की आग और पर्यावरण संकट जैसी बड़ी चुनौतियों का समाधान संभव है.

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