कश्मीर के धान किसान परेशान, श्रमिकों की मजदूरी 700 से बढ़कर 1000 रुपये तक पहुंची

कश्मीर के कई जिलों में इस सीजन में मजदूरों की मांग अचानक बढ़ गई है. बडगाम, बारामूला और श्रीनगर के किसानों का कहना है कि पहले जहां एक मजदूर की मजदूरी करीब 700 रुपये प्रतिदिन थी, अब यह बढ़कर 1000 रुपये तक पहुंच गई है.

नई दिल्ली | Published: 17 Sep, 2025 | 08:40 AM

Kashmir Paddy Harvest: कश्मीर घाटी में धान की कटाई का समय किसानों के लिए खुशियां लेकर आता है, लेकिन इस बार हालात थोड़े अलग हैं. खेत सुनहरे धान की बालियों से लहराए तो जरूर हैं, मगर उनकी कटाई किसानों के लिए चुनौती बन गई है. कारण है मजदूरों की कमी और बढ़ी हुई मजदूरी, जिससे कई किसान समय पर फसल काटने में असमर्थ हो रहे हैं.

मजदूरी 700 से बढ़कर 1000 रुपये प्रतिदिन

राइजिंग कश्मीर की खबर के अनुसार, कश्मीर के कई जिलों में इस सीजन में मजदूरों की मांग अचानक बढ़ गई है. बडगाम, बारामूला और श्रीनगर के किसानों का कहना है कि पहले जहां एक मजदूर की मजदूरी करीब 700 रुपये प्रतिदिन थी, अब यह बढ़कर 1000 रुपये तक पहुंच गई है. छोटे किसानों के लिए यह बोझ उठाना आसान नहीं है. कई परिवारों में खेतों में काम करने वाले सदस्य कम हैं, इसलिए उन्हें बाहरी मजदूरों पर निर्भर रहना पड़ता है.

बडगाम के किसान हबीबुल्लाह कहते हैं, “धान की कटाई समय पर न हो तो फसल खराब हो सकती है. लेकिन मजदूरी इतनी बढ़ गई है कि सभी किसानों के लिए मजदूर रखना संभव नहीं है. सरकार को मजदूरी की दर तय करने पर विचार करना चाहिए, ताकि किसानों को राहत मिल सके.”

मजबूरी में खुद कर रहे मेहनत

बारामूला जिले के किसान याकूब अहमद की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. वे आठ कनाल जमीन पर धान की खेती करते हैं. पहले हर साल मजदूरों की मदद से कटाई होती थी, लेकिन इस बार बढ़े हुए खर्च के कारण वे खुद ही खेतों में उतरने को मजबूर हैं. याकूब बताते हैं, “अगर फसल समय पर नहीं कटी तो धान की पौध खराब हो जाएगी. मजदूरी में इतनी तेजी से उछाल पहली बार देखने को मिल रहा है.”

बारिश और बाढ़ ने बढ़ाई मुश्किलें

इस साल की शुरुआत में घाटी में हुई भारी बारिश और बाढ़ ने भी किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. कई जगहों पर खेतों में पानी भरने से फसलें पहले ही प्रभावित हुईं. अब मजदूरी में बढ़ोतरी ने किसानों की लागत और बढ़ा दी है. ऐसे में समय पर कटाई न होने से उत्पादन पर असर पड़ सकता है.

सरकार की योजना और उम्मीद

कृषि निदेशक कश्मीर, सरताज अहमद शाह ने बताया कि घाटी में कटाई का काम आधिकारिक तौर पर शुरू हो चुका है. उन्होंने कहा कि जिन किसानों की फसलें बारिश और बाढ़ से खराब हुई हैं और जिन्होंने फसल बीमा योजना ली है, उन्हें मुआवजा दिया जाएगा. हालांकि, उन्होंने साफ किया कि कृषि विभाग निजी मजदूरों की मजदूरी दर तय नहीं करता.

किसानों की मांग

किसानों का कहना है कि अगर मजदूरी इसी तरह बढ़ती रही तो छोटे किसान खेती छोड़ने पर मजबूर हो सकते हैं. वे चाहते हैं कि सरकार कम से कम कटाई के सीजन में मजदूरी की अधिकतम दर तय करे या सब्सिडी जैसी कोई राहत योजना लाए, ताकि उनकी मेहनत का फल सही समय पर बाजार तक पहुंच सके.

कश्मीर की वादियों में इस समय धान की सुनहरी फसलें लहलहा रही हैं, लेकिन मजदूरी की यह महंगाई किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच रही है. समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो इस सीजन की कमाई उम्मीद से काफी कम रह सकती है.