पहाड़ों की गोद में उगी हरियाली.. केचुआ खाद से बदली 100 से ज्यादा महिलाओं की किस्मत!

अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिले में केंचुओं की मदद से हरियाली की एक नई क्रांति शुरू हुई है. वर्मीकंपोस्टिंग परियोजना के जरिए 100 से ज्यादा महिलाएं अब जैविक खाद यानी केंचुआ खाद बनाकर न सिर्फ पर्यावरण को फायदा पहुंचा रही हैं, बल्कि घर की आमदनी भी बढ़ा रही हैं.

धीरज पांडेय
नोएडा | Published: 11 Jul, 2025 | 09:00 AM

अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिले के उन गांवों में, जहां सुबह की किरणें सबसे पहले पड़ती हैं और पहाड़ बादलों से गुफ्तगू करते हैं, वहीं चुपचाप हरियाली की एक क्रांति चल रही है. यहां केचुओं की मदद से वर्मीकंपोस्टिंग हो रही है, जिसने 100 से ज्यादा महिलाओं की किस्मत बदल दी है. कभी जो महिलाएं घर की चारदीवारी तक सीमित थीं, आज खेतों में जैविक खाद बना रही हैं, बेच रही हैं और परिवार की आमदनी बढ़ा रही हैं. ये सिर्फ खाद नहीं बना रहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, सम्मान और बदलाव की मिसाल भी गढ़ रही हैं.

राज्य सरकार और मिशन का मिला साथ

इस बदलाव की शुरुआत अप्रैल 2023 में हुई, जब अरुणाचल प्रदेश सरकार ने ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वर्मीकंपोस्टिंग परियोजना शुरू की. मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह पहल ‘अरुणाचल राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन’ के तहत सियांग जिले के पंगिन और मोरुक गांवों में शुरू की गई. राज्य सरकार में मंत्री ओजिंग तासिंग की अगुवाई और तकनीकी संस्थानों के सहयोग से पांच स्वयं सहायता समूह न्यूबो अने, मिटुंग अने, नाने अने, लूने और अने सियांग को प्रशिक्षण और संसाधन दिए गए. इन समूहों ने धीरे-धीरे जैविक कचरे से उर्वरक तैयार  करना सीखा और इस पहल को आगे बढ़ाया.

ऐसे कचरा से बना काला सोना

पासीघाट बागवानी और वानिकी महाविद्यालय व कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से महिलाओं को वर्मी बेड बनाने, लाल केंचुए पालने और वर्मीकंपोस्ट तैयार करने की पूरी ट्रेनिंग दी गई. उन्होंने घर-गांव के जैविक कचरे को काम में लेकर बेहतरीन खाद बनाना शुरू किया. यह खाद खेतों की उपज बढ़ाने में बहुत फायदेमंद है. इसके साथ ही इस काम ने महिलाओं को एक स्थायी रोजगार भी दिया, जिससे वे आत्मनिर्भर बनीं और परिवार की आमदनी में मदद करने लगीं.

8 हजार किलो खाद से 4 लाख की कमाई

अब तक इन महिलाओं ने 9 कटाई चक्र पूरे कर लिए हैं, जिससे कुल 8,440 किलोग्राम वर्मीकंपोस्ट तैयार हुआ  और 4.22 लाख रुपये की कमाई हुई. यह कमाई दोबारा काम में लगाई गई ताकि संसाधन बढ़ें और रोजगार मजबूत हो. इसके साथ ही महिलाओं ने खुद ही प्रबंधन, मार्केटिंग और ऑर्डर संभालना भी सीख लिया है. अब ये महिलाएं व्हाट्सएप के जरिए ऑर्डर लेती हैं और आस-पास के गांवों में जाकर दूसरों को भी वर्मीकंपोस्टिंग की ट्रेनिंग दे रही हैं.

प्रेरणा बनी पंगिन की महिलाएं

पंगिन गांव की कामयाबी से प्रेरित होकर केबांग सोले गांव ने फरवरी 2025 में एक कूड़े के गड्ढे को वर्मी बेड में बदल दिया. इस गांव की महिलाओं ने मेहनत से काम शुरू किया और 7 जुलाई को पहली बार 78 किलो वर्मीकंपोस्ट तैयार किया, जिससे 3,900 रुपये की कमाई हुई. यह सिर्फ एक शुरुआत है, लेकिन गांव में जागरूकता और उत्साह इतना बढ़ा है कि यह पहल अब एक सामाजिक आंदोलन का रूप ले रही है, जिसमें दूसरे लोग भी जुड़ने लगे हैं.

महिलाओं की सफलता पर क्या बोले मंत्री और अधिकारी?

मंत्री ओजिंग तासिंग ने खुद अपने जैविक खेत के लिए 750 किलो वर्मीकंपोस्ट खरीदा और महिलाओं की मेहनत की तारीफ की. उन्होंने कहा कि इनका उत्पाद बाजार में मिलने वाले मिलावटी खाद से कहीं बेहतर है. वहीं, सर्कल ऑफिसर नियांग पर्टिन ने कहा कि यह पहल सिर्फ खाद बनाने की नहीं, बल्कि एक सामुदायिक बदलाव की कहानी है, जो महिलाओं को आत्मनिर्भर और पर्यावरण के प्रति जागरूक बना रही है.

Get Latest   Farming Tips ,  Crop Updates ,  Government Schemes ,  Agri News ,  Market Rates ,  Weather Alerts ,  Equipment Reviews and  Organic Farming News  only on KisanIndia.in

Published: 11 Jul, 2025 | 09:00 AM

फलों और सब्जियों के उत्पादन में भारत किस नंबर पर है?

Side Banner

फलों और सब्जियों के उत्पादन में भारत किस नंबर पर है?