कश्मीर घाटी से ताजा तोड़ी गई चेरी लेकर पहली पार्सल ट्रेन रविवार शाम मुंबई पहुंची. करीब 2,000 किलोमीटर की यह यात्रा ट्रेन ने लगभग 30 घंटे में पूरी की. यह ट्रेन शनिवार को जम्मू के श्री माता वैष्णो देवी कटरा स्टेशन से रवाना हुई थी, जिसमें 10 से 12 टन चेरी की खेप थी. यह कदम कश्मीर से बागवानी उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है. कहा जा रहा है कि इससे किसानों की उपज बर्बाद नहीं होगी और उनकी कमाई में भी इजाफा होगा.
ऑल कश्मीर वैली फ्रूट ग्रोअर्स-कम-डीलर्स यूनियन के चेयरमैन बशीर अहमद बशीर ने कहा कि ट्रेन मुंबई के बांद्रा टर्मिनल पर समय पर पहुंच गई. उन्होंने कहा कि कश्मीर से चेरी का सबसे बड़ा हिस्सा मुंबई को भेजा जाता है, जो इस फल का प्रमुख बाजार और वितरण केंद्र है. नॉर्दर्न रेलवे के सीनियर डिविजनल कमर्शियल मैनेजर, उचित सिंघल ने कहा कि दूसरी खेप को सोमवार सुबह 6 बजे जम्मू से रवाना हुई ट्रेन संख्या 19028 में जोड़ा गया. वहीं तीसरी खेप मंगलवार को कटरा स्टेशन से भेजी गई.
पहले फसल हो जाती थी जल्दी खराब
यह पहल भारतीय रेलवे की उस कोशिश का हिस्सा है, जिसमें जम्मू-कश्मीर से जल्दी खराब होने वाले फलों को देश के विभिन्न बाजारों तक तेज और सुरक्षित तरीके से पहुंचाने की सुविधा दी जा रही है. पिछले कई दशकों से ड्रूप फलों (जैसे चेरी, आलू बुखारा) की खेती करने वाले हजारों किसानों को माल ढुलाई को लेकर मुश्किलों का सामना करना पड़ता रहा है. रेल सुविधा न होने के कारण फसल मंडियों तक पहुंचने से पहले ही खराब हो जाती थी, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता था. वहीं, हवाई मालभाड़ा ज्यादातर किसानों के लिए बहुत महंगा होने के कारण विकल्प नहीं बन सका.
किसान कर रहे थे लॉजिस्टिक सपोर्ट की मांग
दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के एक अनुभवी चेरी किसान बशारत अहमद ने कहा कि रेल के जरिये परिवहन से किसानों को गर्मी के मौसम में फसल के खराब होने से बचाने में बहुत मदद मिलेगी. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार से लॉजिस्टिक सपोर्ट की मांग किसान काफी समय से कर रहे थे.
175 करोड़ रुपये की आमदनी होती है
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में करीब 2,800 हेक्टेयर जमीन पर चेरी की खेती होती है. हर साल यहां 12,000 से 14,000 टन चेरी का उत्पादन होता है. देश में जितनी चेरी उगाई जाती है, उसमें से लगभग 95 फीसदी सिर्फ जम्मू-कश्मीर में होती है. यह फसल कश्मीर की बागवानी का अहम हिस्सा है और हर साल इससे लगभग 150 से 175 करोड़ रुपये की आमदनी होती है.