Goat Farming: गांवों में बकरी का पालन का चलन तेजी से बढ़ रहा है. अब गावों में केवल सीमांत ही नहीं बल्कि, बड़े-बड़े अन्नदाता भी बकरी का पालन व्यवसायिक रूप से कर कर रहे हैं. इससे किसानों को लाखों में कमाई हो रही है. खास बात यह है कि केंद्र सरकार के साथ- साथ राज्य सरकारें भी बकरी पालन को बढ़ावा दे रही हैं. इसके लिए सब्सिडी उपलब्ध है. इससे किसानों को फायदा हुआ है. कई बड़े किसान भी सब्सिडी की राशि से बकरी पालन कर रहे हैं. लेकिन मौसम में बदलाव का असर बकरियों के हेल्थ पर बहुत तेजी से पड़ता है. इसलिए सर्दी के मौसम में बकरियों की देखरेख काफी सावधानी बरतने की जरूरत है.
एक्सपर्ट के मुताबिक, बकरियों पर मौसम का असर बहुत ही जल्द पड़ता है. सर्दी के मौसम में बकरियां ज्यादा बीमार पड़ती हैं. इसलिए सर्दी के मौसम में बकरियों के खानपान में बदलाव करना चाहिए. फोडर वैज्ञानिकों के मुताबिक, सर्दी के मौसम में बकरे-बकरियों को ट्री फोडर यानी पेड़ों से मिलने वाला चारा खिलाना चाहिए. क्योंकि ऐसे भी बकरियां ज्यादा पेड़ के पत्ते ही खाना पसंद करती हैं. इसमें कई सारे विटामिन्स पाए जाते हैं. ऐसे भी पेड़ों से मिलने वाला हरा चारा न सिर्फ पौष्टिक होता है, बल्कि यह पशुओं के लिए दवा जैसा काम करता है.
बकरियों को इस तरह खिलाएं पत्तियां
खास बात यह है कि किसी भी नस्ल की बकरी हो, वे पेड़ों से निकला या सीधे पेड़ से तोड़कर दिया गया हरा चारा बहुत पसंद करती हैं. एक्सपर्ट के अनुसार, सर्दियों के मौसम में हरे चारे की कमी हो जाती है. इस समय नेपियर घास भी पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाती. साथ ही बकरियां जमीन पर पड़ा चारा खाने के बजाय डाल से तोड़कर खाना ज्यादा पसंद करती हैं. इससे उन्हें खुशी और ताजगी दोनों मिलती हैं.
इन पेड़ों की पत्तियां हैं ज्यादा फायदेमंद
अगर मैदान में हरा चारा न मिले तो ट्री फोडर यानी नीम, गूलर, अरडू, मोरिंगा जैसे पेड़ों की पत्तियां बकरियों को खिलाई जा सकती हैं. बकरियां इन्हें बहुत शौक से खाती हैं, खासकर सर्दियों में नीम की पत्तियां उनका पसंदीदा भोजन बन जाती हैं. बड़ी बात यह है कि पेड़ों की पत्तियां बकरियों के लिए सिर्फ चारा नहीं बल्कि दवा का काम भी करती हैं. दरअसल, नीम की पत्तियां खाने से पेट में कीड़े नहीं होते. मोरिंगा (सहजन) की पत्तियां ग्रोथ बढ़ाती हैं और इनमें मौजूद प्रोटीन से मीट का स्वाद और गुणवत्ता बेहतर होती है. वहीं पेड़ों की पत्तियों में पानी कम होता है, इसलिए उनसे डायरिया का जोखिम लगभग नहीं के बराबर होता है.