उर्वरक नियमों से फर्टिलाइजर इंडस्ट्री नाराज, कहा- चीनी आयातकों को हो रहा फायदा

पुराने उर्वरक नियमों से घरेलू स्टार्टअप्स पर नियमों का बोझ बढ़ रहा है, जबकि विदेशी कंपनियों को छूट मिलती है. उद्योग ने 'वन नेशन, वन लाइसेंस' की मांग की है.

वेंकटेश कुमार
नोएडा | Updated On: 27 May, 2025 | 07:27 PM

सरकार के पुराने उर्वरक नियमों को लेकर उर्वरक उद्योग से जुड़ी संस्थाओं ने नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा कि ये नियम देशी कंपनियों के मुकाबले चीनी आयातकों को फायदा पहुंचा रहे हैं और मेक इन इंडिया पहल को नुकसान हो रहा है. उद्योग संगठनों ने कहा कि उर्वरक नियंत्रण व्यवस्था केंद्र और राज्य सरकार दोनों के अधीन है और इसमें कई बार बदलाव किए गए हैं. लेकिन ये बदलाव न तो घरेलू जरूरतों के हिसाब से हैं और न ही वैश्विक विकास के साथ मेल खाते हैं. इस व्यवस्था को अब भी ‘इंस्पेक्टर राज’ और ‘लाइसेंस राज’ की सोच से जोड़कर देखा जा रहा है.

उर्वरक उद्योग ने सरकार से मांग की है कि इस व्यवस्था में व्यापक सुधार किए जाएं. खास कर वन नेशन, वन लाइसेंस नीति लागू की जाए. साथ ही देसी और विदेशी निर्माताओं के लिए बराबरी का नियम हो. इसके अलावा हर यूनिट पर अधिकतम दो निरीक्षक ही नियुक्त किए जाएं. वहीं, सॉल्युबल फर्टिलाइज़र इंडस्ट्री एसोसिएशन (SFIA) ने एक बयान में कहा कि एक बड़ी सरकारी कंपनी ने हाल ही में घुलनशील उर्वरकों के लिए टेंडर निकाला, जिसमें मेड इन इंडिया उत्पादों को बाहर रखा गया. इससे साफ होता है कि मौजूदा नियम देशी उत्पादन को हतोत्साहित करते हैं और आयात को बढ़ावा देते हैं.

ऑफिस खोलना और गोदाम बनाना भी जरूरी

भारत के फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर (FCO) के तहत, देश की घरेलू स्टार्टअप कंपनियों को अपने उत्पादों को अलग-अलग राज्यों में बेचने के लिए कई लाइसेंस लेने होते हैं. साथ ही, हर राज्य में ऑफिस खोलना और गोदाम बनाना भी जरूरी होता है. वहीं दूसरी ओर, विदेशी कंपनियों को सिर्फ कुछ बुनियादी आयात औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं और फिर वे पूरे देश में आसानी से अपने उत्पाद बेच सकती हैं. यानी देशी कंपनियों पर नियमों का बोझ ज्यादा है, जबकि विदेशी कंपनियों को काफी छूट मिलती है.

5 लाख टन गैर सब्सिडी वाली खाद का आयात

FCO (फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर), जो 1955 के आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत बनाया गया था, का मकसद उस दौर में खाद की गुणवत्ता बनाए रखना और वितरण पर निगरानी रखना था, जब भारत भारी मात्रा में खाद आयात करता था. लेकिन अब यह कानून देश की आधुनिक उत्पादन क्षमताओं के अनुरूप खुद को ढाल नहीं पाया है. IIM नागपुर इनक्यूबेशन सेल के मेंटोर सुहास बुद्धे ने कहा कि भारत हर साल करीब 112.62 मिलियन टन फल और सब्जियां उगाता है, जिसमें 5 लाख टन गैर-सब्सिडी वाले आयातित खादों पर निर्भरता है.

उन्होंने कहा कि एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट पर औसतन 32 FCO इंस्पेक्टर निगरानी रखते हैं, जिससे जरूरत से ज्यादा जांच और अनावश्यक परेशानियां होती हैं. यह ओवररेगुलेशन स्टार्टअप्स के विकास में रुकावट बनता है और भारत को घरेलू नवाचार के बजाय आयात पर निर्भर करता जा रहा है.

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Published: 27 May, 2025 | 07:22 PM

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