Nano Urea: केंद्र सरकार सरकार ने नैनो-उर्वरकों (nano-fertilizers) के लिए तीन साल की अवधि की जगह स्थायी मंजूरी देने की योजना बनाई है, ताकि किसानों और कंपनियों के लिए व्यापार करने में आसानी हो सके. हालांकि, स्थायी मंजूरी देने से पहले कृषि मंत्रालय सभी परीक्षण डेटा को विशेषज्ञों से पूरी तरह जांच करवाना चाहता है. कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी ने फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FAI) की वार्षिक बैठक में कहा कि चूंकि नैनो-उर्वरक नई तकनीक है, इसलिए शुरुआत में थोड़ी हिचक होना स्वाभाविक है. लेकिन यह फसल और मिट्टी के लिए फायदेमंद है, इसलिए इसे धीरे-धीरे स्वीकार्यता मिलेगी.
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा कि कंपनियों को सरकार को परीक्षण परिणाम जमा करने के लिए कहा गया है, ताकि उन्हें हर तीन साल में फिर से आवेदन करने की जरूरत न पड़े. इसके अलावा, उन्होंने कंपनियों को चेतावनी दी कि नैनो-उर्वरकों या बायो स्टिमुलेंट्स को सब्सिडी वाले उर्वरकों के साथ ‘टैग’ करना बंद करें, क्योंकि इससे किसानों से अनावश्यक शिकायतें आ रही हैं. इसे मजबूरी से थोपने की वजह से नकारात्मक प्रतिक्रिया सामने आ रही है. देवेश चतुर्वेदी ने कहा कि अगर कोई अच्छा उत्पाद जबरन अपनाने के लिए थोप दिया जाए, तो यह शिकायतों में बदल जाता है. ऐसे तरीके से काम नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कंपनियों से अनुरोध किया कि किसानों को नयी तकनीक के बारे में समझाने और शिक्षित करने पर ध्यान दें. सरकार इस क्षेत्र में मदद करेगी ताकि किसान खुद इसे अपनाएं.
अधिकारियों को पहले ही निर्देश दिए जा चुके हैं
IFFCO के प्रबंध निदेशक के जे पटेल ने कहा कि अधिकारियों को पहले ही निर्देश दिए जा चुके हैं कि किसी उत्पाद को सब्सिडी वाले उर्वरकों के साथ टैग न करें. लेकिन रिटेल बिक्री स्थलों पर जब गैर-सब्सिडी वाले उत्पाद भी बिकते हैं, तो अक्सर इसे गलत तरीके से जबरन बिक्री दिखाया जाता है. चतुर्वेदी ने कहा कि कई बार कंपनियां इसे होलसेलर्स पर जबरन थोपती हैं, फिर होलसेलर्स रिटेलर्स पर और रिटेलर्स किसानों पर. उन्होंने कंपनियों से कहा कि वे कारणों का विश्लेषण करें और देखें कि नया उत्पाद क्यों चुनौतियों का सामना करता है. टैगिंग के कारण किसानों में हमेशा हिचकिचाहट रहती है.
नैनो-उर्वरक की प्रभावशीलता की हो रही है जांच
ICAR देश के हजारों स्थानों पर नैनो-उर्वरक की प्रभावशीलता जांच रहा है, जिसका अनुमानित खर्च 15 करोड़ रुपये है. हालांकि, विशेषज्ञों ने सवाल उठाया है कि अगर यह प्रोजेक्ट उत्पादक कंपनियों द्वारा वित्तपोषित है तो निष्पक्ष कैसे होगा. इस अध्ययन की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि विभिन्न रिसर्च संस्थानों और राज्य विश्वविद्यालयों की रिपोर्टें मिश्रित थीं. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (रायपुर) और विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (अल्मोड़ा) के शोध में नैनो यूरिया के इस्तेमाल से अनाज की उपज और गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पाया गया. लेकिन हैदराबाद, करनाल, बेंगलुरु, जोबनेर और कल्याणी में किए गए कृषि परीक्षणों में दो बार फोलियार स्प्रे के बाद अनाज और तेलहन की फसल में 5-15 फीसदी तक की वृद्धि देखी गई.