केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा देश के आधे से ज्यादा किसान गेहूं की बायोफोर्टिफाइट किस्में उगा रहे हैं. हमारे आईसीएआर संस्थान ने ऐसी 200 उन्नत किस्में विकसित की हैं और वैराइटी को विकसित करने की प्रक्रिया चल रही है. इससे कम लागत में ज्यादा उत्पादन हासिल करने का लक्ष्य हम पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हमें अच्छे खाद्यान्न के लिए केमिकल फ्री खेती की ओर लौटना होगा. क्योंकि, पहले भी हमारा इतिहास रहा है कि हम प्राकृतिक खेती ही करते थे. केंद्रीय कृषि मंत्री ने यह बातें एशियाई बीज कांग्रेस 2025 को संबोधित करते हुए कहीं.
खेती-किसानी के विकास के लिए सरकार के 3 उद्देश्य गिनाए
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में हमारे तीन उद्देश्य हैं. नंबर एक देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, नंबर दो जनता को पोषण युक्त आहार उपलब्ध कराना, और नंबर तीन, हमारे किसान लाभकारी खेती करें.
हमारी बड़ी आबादी आज भी खेती पर निर्भर हैं, और इसके लिए प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में हमने छह सूत्रीय रणनीति बनाई है. पहला हमें पर हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाना है, दूसरा लागत कम करना है, तीसरा किसान को लाभकारी दाम देना, चौथा नुकसान हो जाए तो भरपाई करना, पांचवा खेती का विविधिकरण और छटवां प्राकृतिक खेती. हमारा 10 हजार साल पुराना ज्ञात इतिहास है, जिसमें से हमने 9 हजार 940 साल तक हमने केमिकल फ्री खेती की है. आज जिस तरह से केमिकल, फर्टिलाइज़र और पेस्टिसाइड का उपयोग हो रहा है, वो हमारी मिट्टी की हेल्थ को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है.
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एक नागरिक और कृषि मंत्री के नाते भी मुझे चिंता होती है कि, अगर ये क्रम जारी रहा तो क्या ये धरती आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्याप्त खाद्यान और फल-सब्जियों का उत्पादन कर पाएगी. आज सीड कंपनियों को भी इस पर विचार करना पड़ेगा.
ICAR ने 200 से ज्यादा नई किस्मों को बीज विकसित किए
कुपोषण की गंभीर समस्या से निपटने के लिए बायोफोर्टिफाइट किस्मों का भी हमने विकास किया है. आईसीएआर ने ही लगभग ऐसी 200 से ज्यादा किस्में विकसित करने का काम किया है. मुझे खुशी है कि, देश में आधे से ज्यादा गेहूं की बायोफोर्टिफाइट किस्में उगाने का काम हो रहा है. सीड सेक्टर में भी अगर आप देखेंगे तो सार्वजनिक क्षेत्र में हमारा राष्ट्रीय बीज निगम है, 17 राज्यों के बीज निगम हैं. 25 हमारी बीज प्रमाणन एजेंसीज़ हैं. 172 सीड टेस्टिंग लैब्स हैं. हमारे विश्वविद्यालय, हमारे केवीके, ये सभी सीड प्रोडक्शन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं, लेकिन मैं जानता हूं कि, सार्वजनिक क्षेत्र पर्याप्त नहीं है, निजी क्षेत्र की भी आवश्यकता है.
ओवरऑल कृषि उत्पादन 7 गुना बढ़ा
भारत का इतिहास अगर आप देखें तो 1951-52 के बाद हमने अपने कृषि का उत्पादन लगभग 7 गुना बढ़ाया है. और हमने तिलहन में 8 गुना, कपास में 10 गुना, गन्ने में 8.6 प्रतिशत वृद्धि की है. जब से श्रीमान नरेन्द्र मोदी जी प्रधानमंत्री बने हैं, तब से लेकर अब तक फूड ग्रेन्स का जो उत्पादन है वो 44% बढ़ा है. साल 2014-15 में 252.02 मिलियन टन, अब ये 353.96 मिलियन टन. चावल में हमने 42%, गेहूं में 35%, मक्के में 75%, और तिलहन में 55% से अधिक वृद्धि की है. खाद्यान में हमने देश को न केवल आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि हम कई चीज़ों का एक्सपोर्ट भी कर रहे हैं.
हजारों किस्में हैं पर ऐसे बीज बनाने हैं जो हर साल न बदलने पड़ें
भारत में लैंड होल्डिंग काफी कम है, महंगा बीज कई बार किसानों के लिए बड़ी समस्या बन जाता है. मैं जानता हूं कि, प्राइवेट कंपनियों का एक उद्देश्य लाभ कमाना हैस लेकिन आखिर कितना लाभ, हमारा उद्देश्य लोक कल्याण भी है. हमारा काम दुनिया की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना भी है. हमारा काम किसानों को ऐसे दाम पर बीज देना भी है जिसे वो आसानी से वहन कर सकें. तो आप सभी विचार कीजिए, क्योंकि कृषि मंत्री के नाते जब में किसानों के बीच जाता हूं, तो वो यही करते हैं कि, कंपनियों का बीज बहुत महंगा है. हाईब्रीड वैरायटी तो ऐसी है जिसके बीज को हर साल बदलना पड़ता है.
परंपरागत रूप से खेती होती चली जाती है. मित्रों, क्या हम ऐसी वैरायटीज नहीं बना सकते कि, जिनको हर साल बदलना ना पड़े. परंपरागत बीज के बारे में ये चिंता मेरी भी है, हमारी परंपरागत वैरायटीज़ कई लोग संरक्षित करके भी रख रहे हैं. हम परंपरागत वैरायटीज़ को संरक्षित करके उनको सुरक्षित रखने का काम कर सकते हैं.
कंपनी बीज देती है तो अच्छे सपने दिखाती है पर अंकुरण नहीं हो रहा
मैं ऐसा कृषि मंत्री हूं जो किसानों के बीच में रहता हूं और आपसे शेयर कर रहा हूं, शेयर कर रहा हूं उनकी चिंता. एक है—जल मिशन ठीक से नहीं होता. कंपनी बीज देती है तो बड़े अच्छे सपने दिखाती है. इसी साल मैंने देखा कि सोयाबीन का बीज अंकुरित ही नहीं हुआ. अब हम लोग जो सीड किसान को देते हैं, उसको बेहतर ढंग से कैसे… कैसे करके परीक्षण करके ढंग से दें. क्योंकि किसान की एक साल अगर फसल बिगड़ गई तो 5 साल के लिए फिर वो बुरी हालत में रहता है. फिर वो एक बार साइकिल बन जाती है तो फिर उभर नहीं पाता है. कई बार अफलन की स्थिति रहती है. अभी-अभी मैं कुछ क्षेत्र में गया. एक कंपनी मैं उसका नाम नहीं लूँगा, धान की बहुत अच्छी वैराइटी कहकर ही… लेकिन फिर उसमें दाना बाली नहीं आई. किसान मेरे पास आए. अलग बात है कि फिर मैंने वैज्ञानिकों की टीम भेजी, उन्होंने जाँच की और बाद में वो मुआवज़ा देने का काम कर रहे हैं. लेकिन इससे कैसे बचा जा सकता है, ये हमको सोचना पड़ेगा.
घटिया बीज एक समस्या है और वो समस्या आपके बीच में कुछ लोगों के कारण हुआ है इसको कौन रोकेगा आपने कमेटी बनाई हुई है वो काम करती है या नहीं करती अगर कोई डीलर स्पूरिया सीड्स बेचता है उसको कैसे रोका जा सकता है हम सीड ऐक्ट ला रहे हैं इस बार हमने तय किया है.
बजट सत्र में हम पेस्टिसाइड और सीड ऐक्ट लेकर आएंगे
संसद के बजट सत्र में हम पेस्टिसाइड और सीड दोनों ऐक्ट लेकर आएंगे हम किसान को बर्बाद नहीं होने दे सकते लेकिन हम कंपनी के साथ भी पूरा सहयोग चाहते हैं मिलकर सरकार और आप इन समस्याओं से हम कैसे निपट सकते हैं यह विचार करें मैं आपके साथ बैठने को तैयार हूं मैं आया भी इसलिए हूं मैंने कहा पूरा डिस्कशन होना चाहिए मेरे किसानों को भी कुछ मिले और आपकी समस्याओं का भी हम समाधान कर पाएं उसकी हम कोशिश करेंगे.
भारत में हम लोगों ने प्रधानमंत्री जी ने एक अभियान चलाया, दलहन और तिलहन मिशन, हमारे अलग-अलग ऑयल सीड्स के प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए और दलहन के प्रोडक्शन को बढ़ाने के लिए. लेकिन प्राइवेट सेक्टर इसमें कोई योगदान ही नहीं कर रहा. अच्छे सीड्स, आप दानों के अच्छे बीज कैसे तैयार करें, तिलहन के अच्छे बीज आप कैसे तैयार कर सकते हैं? आज भारत आयात पर निर्भर है. हम इनका उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं. मैंने ICAR को भी कहा है, सार्वजनिक क्षेत्र को भी कहा है, वैज्ञानिकों की टीम बनाई है. One Team One Task करके हमने टास्क दिए हैं, उस पर हम कर रहे हैं. लेकिन मैं प्राइवेट सेक्टर का भी इसमें सहयोग चाहता हूं.