खरीफ सीजन में इस बार धान की बंपर बुवाई की गई है. हरियाणा, पंजाब से लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार समेत अन्य राज्यों में किसानों खूब धान की रोपाई की है. बिहार, ओडिशा समेत कुछ राज्यों में अभी भी रोपाई चल रही है. इसके चलते इस बार धान का रकबा भी 10 फीसदी से अधिक बढ़ गया है. वहीं, अनुमान है कि उपज बीते साल का रिकॉर्ड तोड़ देगी. लेकिन, गलत प्रैक्टिस के चलते धान को सेहत के लिए खतरनाक बनाया जा रहा है. कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि किसान धान के पौधे और बाली की चमक बढ़ाने और उपज ज्यादा हासिल करने के लालच में अनजाने में गलत दवाओं और केमिकल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं. वैज्ञानिक ने इसे खतरनाक बताया है.
हरियाणा के सोनीपत जिले में कृषि विभाग और एपीडा की ओर से किसानों को जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसमें कृषि उप निदेशक डॉ. पवन शर्मा ने किसानों को बताया कि अत्यधिक कीटनाशक व रासायनिक खादों के दुष्परिणाम अत्यंत घातक होते हैं. किसानों को सही मात्रा में इस्तेमाल की जानकारी दी गई. कृषि विभाग के कार्यक्रम में कृषि विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों, वैज्ञानिकों, कीटनाशक विशेषज्ञों सहित जिले भर से सैकड़ों किसानों ने भाग लिया.
चमक बढ़ाने के लिए जरूरत से ज्यादा डाल रहे यूरिया
कृषि उप निदेशक डॉ. पवन शर्मा ने बताया कि किसान अक्सर फसल की चमक और उत्पादन बढ़ाने की चाह में पेस्टिसाइड्स और यूरिया का जरूरत से ज्यादा प्रयोग कर रहे हैं, जिससे न केवल भूमि की उर्वरता प्रभावित होती है बल्कि स्वास्थ्य पर भी गंभीर दुष्प्रभाव पड़ते हैं. उन्होंने कहा कि बासमती चावल उत्पादन के लिए सुरक्षित कीटनाशक उपयोग, अच्छी कृषि पद्धति व प्रकृति खेती व भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाना जरूरी है.
निर्यात के समय फेल हो जाते हैं सैंपल
डॉ. शर्मा ने बताया कि धान की फसल पकने के बाद भी चमक लाने के लिए किसानों के जरिए अनावश्यक रूप से पेस्टिसाइड का छिड़काव किया जाता है, जिससे निर्यात के समय फसल के सैंपल फेल हो जाते हैं और किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. बासमती समेत कई अन्य किस्मों का चावल अमेरिकी, खाड़ी देशों समेत कई देशों में निर्यात किया जाता है. लेकिन, गलत दवाइयों के इस्तेमाल से किसानों को नुकसान हो रहा है.
तय मात्रा में कीटनाशकों का इस्तेमाल करें
कृषि उप निदेशक ने किसानों को जागरूक करते हुए कहा कि यदि वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग किया जाए, तो भूमि की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है. किसानों को बताया गया कि जैविक खाद और प्राकृतिक कीटनाशकों के उपयोग से उत्पादन में कमी नहीं आती बल्कि भूमि की सेहत बेहतर बनी रहती है. उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों से उन्हें सही जानकारी प्राप्त होती है कि कब, कितना और किस प्रकार का खाद व कीटनाशक प्रयोग करना चाहिए.