Fertilizer Shortage: तेलंगाना और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में किसानों को प्रयाप्त मात्रा में खाद नहीं मिल रही है. एक बोरी यूरिया के लिए किसानों को खाद केंद्र के बाहर घंटों इंतजार करना पड़ रहा है. इसके बावजूद किसानों को खाली हाथ वापस घर जाना पड़ रहा है. लेकिन अब किसानों को खाद के लिए चिंत करने की जरूरत नहीं है. आज हम एक ऐसे तरल उर्वरक के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिसकी एक लीटर की मात्रा 50 किलो वाले यूरिया बैग के बराबर है. खास बात यह है कि इसके इस्तेमाल से फसल की बढ़वार भी अच्छी होगी पैदावार भी बढ़ जाएगा. यानी किसानों को अब खाद के लिए घंटों इंतजार नहीं करना पड़ेगा.
दरअसल, किसानों को लगता है कि यूरिया और डीएपी जैसी दानेदार खादों का इस्तमाल करने से फसल की पैदावार बढ़ जाती है. लेकिन ऐसी बात नहीं है. ऐसे भी डीएपी और एनपीके के भारी बैग न सिर्फ महंगे होते हैं, बल्कि इन्हें ढोना और खेत में डालना भी मेहनत का काम है. इसके मुकाबले तरल उर्वरक हल्के, सस्ते और इस्तेमाल में आसान होते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इनका छिड़काव सीधे पत्तियों पर किया जाता है, जिससे पौधों को पोषण जल्दी और बेहतर तरीके से मिलता है.
गेहूं के खेत में कब डालें पोटाश
कृषि एक्सपर्ट के मुताबित, दानेदार खाद की तुलना में तरल एनपीके ज्यादा असरदार साबित हो रहा है. जहां 50 किलो का खाद का बैग संभालना मुश्किल होता है, वहीं सिर्फ 500 मिली या 1 किलो तरल खाद आसानी से ले जाई जा सकती है और कम खर्च में मिल जाती है. गेहूं की दूसरी सिंचाई के बाद एनपीके 19:19:19 का छिड़काव करने से पौधों की बढ़वार तेज होती है. वहीं दानों की गुणवत्ता और वजन बढ़ाने के लिए पोटाश (00:00:52) का उपयोग सबसे अच्छे नतीजे देता है.
इस अनुपात में करें खाद का छिड़काव
गेहूं की अगेती फसल में दूसरी सिंचाई के बाद, जब खेत में हल्की नमी बनी हो, उस समय तरल एनपीके 19:19:19 का छिड़काव बहुत फायदेमंद होता है. प्रति एकड़ 1 किलो तरल एनपीके को 120 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से 3 से 4 दिन में फसल हरी-भरी नजर आने लगती है. इससे पौधों के कल्ले मजबूत होते हैं और गेहूं की बढ़वार तेजी से होती है. जब गेहूं में बालियां निकलने लगें, तब पोटाश (00:00:52) का छिड़काव करने से दाने ज्यादा चमकदार, मजबूत और वजनदार बनते हैं. यह तरीका मिट्टी की सेहत को भी बनाए रखता है और कम खर्च में बेहतर पैदावार दिलाता है. इस तकनीक से किसानों को कम लागत में अच्छी और गुणवत्तापूर्ण फसल मिलती है.