रबी बुआई संकट में: महाराष्ट्र में सिर्फ 45 फीसदी रकबा हुआ तैयार, दलहन–तिलहन फसलें बुरी तरह पिछड़ीं

बुआई की सुस्ती न सिर्फ किसानों की कमाई पर असर डाल सकती है, बल्कि राज्य की खाद्यान्न आपूर्ति पर भी इसका प्रभाव दिख सकता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 24 नवंबर तक महाराष्ट्र में रबी फसलों की बुआई सिर्फ 25.99 लाख हेक्टेयर में ही की जा सकी है.

नई दिल्ली | Updated On: 29 Nov, 2025 | 07:53 AM

Maharashtra News: महाराष्ट्र में इस साल रबी सीजन की शुरुआत उम्मीद के मुताबिक नहीं हो पाई है. खेतों में सामान्य दिनों की तरह चहल-पहल कम है, और कई किसान अभी भी मिट्टी की नमी और मौसम की अनिश्चितता को लेकर दुविधा में हैं. बुआई की सुस्ती न सिर्फ किसानों की कमाई पर असर डाल सकती है, बल्कि राज्य की खाद्यान्न आपूर्ति पर भी इसका प्रभाव दिख सकता है. ऐसे समय में यह समझना जरूरी है कि आखिर रबी बुआई क्यों पिछड़ रही है और आगे क्या उम्मीद की जा सकती है.

धीमी रफ्तार से चल रही रबी की बुआई

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 24 नवंबर तक महाराष्ट्र में रबी फसलों की बुआई सिर्फ 25.99 लाख हेक्टेयर में ही की जा सकी है. यह राज्य के सामान्य औसत 57.80 लाख हेक्टेयर का सिर्फ 45 फीसदी है.

इस कमी ने विशेषज्ञों के साथ-साथ किसानों की भी चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि यह रबी सीजन की मुख्य फसलों जैसे गेहूं, जौ, चना, मसूर और तिलहन की आपूर्ति पर असर डाल सकता है.

मुख्य फसलों में क्यों दिख रही सुस्ती?

रबी की लगभग सभी प्रमुख फसलों में बुआई का रकबा औसत से काफी कम है.

अनाज फसलें पिछड़ी हुई

रबी अनाज फसलों जैसे गेहूं और जौ का सामान्य रकबा लगभग 30.66 लाख हेक्टेयर होता है. इस वर्ष अब तक केवल 13.46 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो सकी है. यह औसत के मुकाबले आधा से भी कम है, जो आने वाले महीनों में उत्पादन को प्रभावित कर सकता है.

दलहन फसलें — सबसे अधिक चिंताजनक स्थिति

दालों के मामले में भी तस्वीर उत्साहजनक नहीं है. सामान्य रकबा 26.44 लाख हेक्टेयर होता है, जबकि इस बार बुआई सिर्फ 12.35 लाख हेक्टेयर में हुई है यानी 47 फीसदी. चना, मसूर और अरहर जैसी दालें रबी सीजन की जान होती हैं. लेकिन इस बार उनका बोया गया रकबा काफी कम है, जिससे कीमतों पर असर देखने को मिल सकता है.

तिलहन फसलें सबसे पीछे

तिलहन फसलों की स्थिति सबसे चिंताजनक है. औसत 0.70 लाख हेक्टेयर के मुकाबले अभी तक सिर्फ 0.18 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई है. सरसों जैसी फसलें जिनसे तेल उत्पादन जुड़ा होता है, उनकी कमी आगे चलकर बाजार में मूल्य वृद्धि की वजह बन सकती है.

बुआई धीमी होने की वजहें

रबी बुआई की सुस्ती के पीछे कई वजहें हैं, जिनकी चर्चा कृषि विभाग के अधिकारियों ने भी की है.

मानसून की देर से वापसी- इस बार मानसून अक्टूबर तक सक्रिय रहा, जिससे मिट्टी में नमी की स्थिति असमान रही और खेत देर से तैयार हो पाए.

खरीफ फसलों की कटाई में देरी- खरीफ की कटाई में देरी होने से रबी फसलों की बुआई स्वाभाविक रूप से पीछे खिसक गई.

खेत की मिट्टी को लेकर अनिश्चितता- कई किसानों को अभी भी जमीन में नमी की स्थिति संतुलित नहीं लग रही, जिसकी वजह से वे बुआई को थोड़ा और टाल रहे हैं.

मौसम और तापमान का उतार-चढ़ाव- दिन-रात के तापमान में असामान्य बदलाव भी रबी फसलों की शुरुआत पर असर डाल रहा है.

पानी की उपलब्धता बेहतर

हालांकि बुआई सुस्त है, लेकिन एक बड़ी राहत यह है कि महाराष्ट्र के सभी छोटे, मध्यम और बड़े बांधों में इस समय 91 फीसदी पानी का भंडारण मौजूद है. यह पिछले वर्ष के 85 फीसदी की तुलना में काफी अच्छा है. नागपुर और कोंकण को छोड़कर, लगभग सभी क्षेत्रों में जल भंडारण की स्थिति अच्छी बताई जा रही है. इसका मतलब है कि यदि किसान आने वाले हफ्तों में बुआई तेज करते हैं, तो सिंचाई के लिए पानी की कमी नहीं होगी.

क्या अगले हफ्तों में रफ्तार पकड़ेगी बुआई?

कृषि विशेषज्ञों की मानें तो मौसम की स्थिति सामान्य हो रही है और तापमान भी रबी फसलों के अनुकूल होने लगा है. ऐसे में उम्मीद है कि किसान अगले 7–10 दिनों में बड़े पैमाने पर बुआई शुरू करेंगे.

इससे न केवल बुआई का रकबा बढ़ेगा, बल्कि उत्पादन अनुमान भी सुधर सकता है. हालांकि, समय कम है और किसान जितनी जल्दी बुवाई करेंगे, उतना ही फसल की पैदावार पर सकारात्मक असर पड़ेगा.

Published: 29 Nov, 2025 | 07:52 AM

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