इस समय पूरी दुनिया खाद संकट से जूझ रही है. चीन ने अपने घरेलू इस्तेमाल को प्राथमिकता देते हुए डीएपी जैसे प्रमुख उर्वरकों का निर्यात रोक दिया है. इसका सीधा असर भारत जैसे देशों पर पड़ रहा है जो बड़ी मात्रा में उर्वरक आयात करते हैं. ऐसे समय में किसानों के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है- अब फसल की पोषण जरूरतें कैसे पूरी हों?
इसका जवाब है- नैनो उर्वरक. यह नई तकनीक भारतीय खेती के लिए एक बड़ा वरदान बन सकती है. बरसात के मौसम में जब खेतों में पानी अधिक होता है और पोषक तत्व बहने का खतरा बढ़ जाता है, तब नैनो उर्वरक कम मात्रा में ज्यादा असर दिखाकर फसल को मजबूती देते हैं. तो चलिए जानते हैं नैनो उर्वरक के इस्तेमाल और फायदों के बारे में.
क्या होते हैं नैनो उर्वरक?
नैनो उर्वरक बहुत ही सूक्ष्म कणों से बने होते हैं, जिनका आकार 1 से 100 नैनोमीटर तक होता है. इनके छोटे आकार के कारण ये पौधे की कोशिकाओं में सीधे और जल्दी पहुंचते हैं. यही वजह है कि पारंपरिक खादों की तुलना में यह न केवल अधिक प्रभावी होते हैं, बल्कि इनसे पोषक तत्वों की बर्बादी भी नहीं होती.
बरसात में कैसे करें नैनो उर्वरकों का सही इस्तेमाल?
मानसून के दौरान फसलों की बढ़वार तेजी से होती है, लेकिन यही समय कीट और बीमारियों का भी होता है. ऐसे में उर्वरक का समय पर और संतुलित उपयोग जरूरी है. यहां जानिए कैसे करें नैनो यूरिया का सही इस्तेमाल:
खेत में बुवाई के समय कुल नाइट्रोजन की जरूरत का 50 फीसदी हिस्सा पारंपरिक रूप से कूंड या खेत में डालें.
पहला स्प्रे: बुवाई के 30 से 35 दिन बाद, यानी पहली सिंचाई के बाद नैनो यूरिया का छिड़काव करें. इसके लिए 1000 मिलीलीटर नैनो यूरिया को 250 लीटर पानी में मिलाकर फसलों पर छिड़कें.
दूसरा स्प्रे: बुवाई के 60 से 65 दिन बाद एक बार फिर उतनी ही मात्रा (1000 मिली नैनो यूरिया + 250 लीटर पानी) से छिड़काव करें.
खरीफ फसलों के लिए नैनो उर्वरक क्यों जरूरी?
जुलाई-अगस्त के महीनों में खरीफ की फसलें जैसे मक्का, बाजरा, ज्वार, धान, सोयाबीन तेजी से बढ़ती हैं. ऐसे में यदि मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हुई तो फसल की बढ़वार रुक सकती है. पारंपरिक यूरिया बरसात में बह जाता है या हवा में उड़ जाता है, जिससे पूरा पोषण फसल तक नहीं पहुंच पाता.
नैनो यूरिया या नैनो डीएपी स्प्रे के रूप में सीधे पत्तियों पर असर डालते हैं, जिससे फसल को समय पर पूरा पोषण मिलता है और पैदावार बेहतर होती है.
नैनो उर्वरकों के फायदे
कम खर्च, ज्यादा असर- 500 मिलीलीटर नैनो यूरिया की बोतल 45 किलो पारंपरिक यूरिया के बराबर होती है.
पर्यावरण के लिए सुरक्षित- इससे मिट्टी, जल और वायु प्रदूषण नहीं होता.
उत्पादन में सुधार- पौधे को पूरा पोषण मिलने से पैदावार अधिक होती है.
कीट और रोगों से बेहतर मुकाबला- फसल मजबूत होती है, जिससे रोगों का असर कम होता है.
भविष्य की खाद आत्मनिर्भरता का रास्ता- आयात पर निर्भरता घटती है.
ग्लोबल संकट में नैनो टेक्नोलॉजी का सहारा
चीन जैसे देश जब खाद पर रोक लगाते हैं, तब भारत को विकल्प खोजना ही पड़ता है. ऐसे में नैनो उर्वरक भारत की खेती को बाहरी संकटों से मुक्त कर सकते हैं. यह तकनीक कम लागत, अधिक उत्पादन और पर्यावरण सुरक्षा, तीनों मोर्चों पर सफल साबित हो रही है.