पश्चिम बंगाल में आलू किसानों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. जिन आलू किसानों ने मेहनत से इस साल फसल उगाई और कोल्ड स्टोरेज में भंडारण करवाया, वे अब बुरी तरह फंस गए हैं. थोक बाजार में कीमतें 15 रुपये प्रति किलो से गिरकर 9 रुपये किलो तक आ गई हैं और किसानों को हर क्विंटल पर 400-500 रुपये का नुकसान हो रहा है. कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि अगर जल्दी कदम नहीं उठाए गए, तो राज्य की 10,000 करोड़ रुपये की आलू अर्थव्यवस्था टूट सकती है.
रिकॉर्ड भंडारण, लेकिन बिक नहीं रहा आलू
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, इस साल राज्य के कोल्ड स्टोरेज में 70.85 लाख मीट्रिक टन आलू भरा पड़ा है. इसमें 10 लाख टन जल्दी पकने वाली किस्म भी है, जिसे पिछले सीजन में अन्य राज्यों में भेजने पर रोक थी. नतीजा यह हुआ कि भंडारण क्षमता पूरी भर चुकी है, लेकिन बाजार में खरीदार नहीं मिल रहे.
थोक और खुदरा कीमतों में बड़ा अंतर
एसोसिएशन के अध्यक्ष सुनील कुमार राणा का कहना है कि इस बार किसानों के पास ही 80 फीसदी आलू का स्टॉक है, लेकिन थोक बाजार में कीमतें इतनी गिर गई हैं कि लागत निकलना भी मुश्किल हो गया है. वहीं खुदरा बाजार में आलू अभी भी 18-20 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. यह अंतर सीधे किसानों की कमर तोड़ रहा है.
सरकार की खरीद योजना अधर में
एसोसिएशन के उपाध्यक्ष सुभजीत साहा ने बताया कि राज्य सरकार ने मार्च में वादा किया था कि वह 11 लाख टन (2.2 करोड़ पैकेट) आलू किसानों से खरीदेगी. लेकिन यह वादा अब तक पूरा नहीं हुआ है, जिससे हालात और बिगड़ते जा रहे हैं. “अगर सरकार 15 रुपये प्रति किलो का न्यूनतम थोक मूल्य तय नहीं करती, तो अगली फसल की बुवाई ही नहीं होगी,” साहा ने कहा.
किन जिलों में सबसे ज्यादा नुकसान?
- बर्धमान
- बांकुड़ा
- मेदिनीपुर
- उत्तर बंगाल के कई इलाके
इन जिलों में कोल्ड स्टोरेज के बाहर ही किसानों को आलू के दाम 6-7 रुपये किलो तक मिल रहे हैं, जबकि लागत 10-11 रुपये किलो तक आती है.
एसोसिएशन की 5 बड़ी मांगें
- न्यूनतम समर्थन मूल्य पर तुरंत खरीद शुरू हो
- राज्य के बाहर और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को दोबारा शुरू किया जाए
- मिड-डे मील, राशन और जन-कल्याण योजनाओं में आलू को शामिल किया जाए
- परिवहन सब्सिडी दी जाए, ताकि स्टॉक को राज्य से बाहर भेजा जा सके
- दीर्घकालिक नीति बने जिससे भविष्य में ऐसे संकट न हों
संकट का असर सिर्फ किसान तक सीमित नहीं
यह संकट सिर्फ किसानों का नहीं है. राज्य में सैकड़ों कोल्ड स्टोरेज भी आलू से भरे पड़े हैं और जगह नहीं बची. यदि आलू बाहर नहीं भेजा गया, तो अगले सीजन में किसान बुवाई कम करेंगे और कोल्ड स्टोरेज भी खाली रहेंगे. इससे पूरी ग्रामीण व्यवस्था किसान, मजदूर, व्यापार सब पर असर पड़ेगा.
राज्य सरकार से अब उम्मीद की जा रही है कि वह इस संकट को समझे और तुरंत ठोस निर्णय लेकर किसानों को राहत दे. यदि आलू की अर्थव्यवस्था को बचाना है, तो यह वक्त हाथ से नहीं निकलना चाहिए.