अमूमन लोगों को लगता है कि कश्मीर को लेकर ही भारत-पाकिस्तान के बीच हमेशा टेंशन रहती है. वास्तव में यह हकीकत भी है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि एक बार एक खास किस्म के आम को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद हो गया था. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत हुआ था और अंत में जीत भारत की ही हुई थी. खास बात यह है कि यह कोई सैन्य युद्ध नहीं था, बल्कि ‘रटौल आम’ पर अपने दावे को लकेर दोनों देशों के बीच खींचतान थी. तो आइए आज जानते हैं ‘रटौल आम’ की खासियत के बारे में जिसे लेकर दो देश आमने-सामने आ गए थे.
दरअसल, हम जिस रटौल आम के बारे में बात करने जा रहे हैं, वह अपने लजीज स्वाद और सुगंध को लेकर पूरी दुनिया में मशहूर है. यहां तक कि अमेरिका-लंदन में भी इसकी मांग रहती है. ऐसे में आपके मन में सवाल उठ रहा होगा, आखिर इस मशहूर आम की खेती भारत में कहां पर होती है, जिसे लेकर दो देश आमने-सामने आ गए थे. जी हां, तो इस आम की शुरुआत उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के रटौल गांव से हुई थी. मशहूर ‘मैंगो मैन’ अफाक फरीदी ने साल 1912 में इस किस्म को विकसित किया था. इसके बाद उन्होंने आसपास के गांवों में इसकी कलमें बांटीं. फिर साल 1920 में रटौल गांव में एक नर्सरी शुरू की गई और कुछ ही समय में रटौल आम की खुशबू दूर-दूर तक फैल गई.
क्यों हुआ था पाकिस्तान से विवाद
लेकिन कहानी कुछ यूं है कि पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह जनरल जिया-उल-हक ने एक बार भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कुछ आम तोहफे में भेजे और कहा कि ये रटौल किस्म के आम हैं, जो सिर्फ पाकिस्तान में उगते हैं. जब रटौल गांव के लोगों को ये बात पता चली, तो उन्होंने इसका जोरदार विरोध किया और इंदिरा गांधी से संपर्क किया. उन्होंने कहा कि यह किस्म पूरी तरह भारतीय है और इसे अफाक फरीदी ने विकसित किया था. इसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच काफी बयानबाजी हुई. अंत में इंदिरा गांधी ने खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि रटौल आम भारत की देन है और इसका श्रेय अफाक फरीदी को जाता है.
इसकी असली पहचान भारत से जुड़ी है
खास बात यह है कि जब अफाक फरीदी ने रटौल आम की किस्म तैयार की थी, तब पाकिस्तान का अस्तित्व ही नहीं था. रटौल आम पाकिस्तान के मीरपुर खास इलाके में भी लगभग 1934 में पहुंचा था. इस किस्म को 2022 में GI टैग (भौगोलिक संकेतक) भी मिल चुका है, जो यह साबित करता है कि इसकी असली पहचान भारत से जुड़ी है. इस स्वादिष्ट आम के चाहने वाले दिशों में खूब हैं.
ये प्रधानमंत्री भी चख चुके हैं स्वाद
रटौल आम की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसे देश के चार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर और विश्वनाथ प्रताप सिंह इसके स्वाद चख चुके हैं. इस आम को उगाने वाले किसान कहते हैं कि रटौल आम इतना नाज़ुक होता है कि इसके लिए खास बैगिंग तकनीक अपनानी पड़ती है. यह आम अक्सर कीड़ों का शिकार बन जाता है. जब यह पकता है तो इसका स्वाद बेहद खास होता है. इस किस्म का आम अमेरिका, ब्रिटेन और दुबई जैसे कई देशों में निर्यात किया जाता है. रटौल गांव ही इस आम का मुख्य सप्लायर है.
अगर रटौल आम की खासियत के बारे में बात करें तो अपनी खास मिठास और हल्की गाजर जैसी खुशबू के लिए जाना जाता है. यह आकार दूसरे आमों की तुलना में थोड़ा छोटा होता है. कहा जाताहै कि अगर रटौल आम की एक पेटी कमरे में रख दी जाए, तो उसकी खुशबू तीन दिन तक बनी रहती है. बाजार में इसकी कीमत 150 से 200 रुपये प्रति किलो तक होती है.
साल 1975 में ‘मैंगो एरिया’ घोषित
रटौल गांव के लोगों का कहना है कि साल 1975 में जब यहां आम की अच्छी पैदावार हुई, तो इस पूरे इलाके को ‘मैंगो एरिया’ घोषित किया गया. उस समय के कृषि मंत्री चौधरी नरेंद्र सिंह ने आम की फसल को बचाने के लिए कई चीजों पर रोक भी लगाई थी. लेकिन कुछ समय बाद इस इलाके पर फिर ध्यान नहीं दिया गया. इसका असर ये हुआ कि बागों की हरियाली धीरे-धीरे खत्म होने लगी और लोगों का पसंदीदा रटौल आम विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गया है.
क्या होता है जीआई टैग
GI यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग एक खास पहचान वाला लेबल होता है, जो किसी चीज को उसके इलाके से जोड़ता है. आसान भाषा में कहें तो ये टैग बताता है कि कोई प्रोडक्ट खास तौर पर किसी एक तय जगह से आता है और वही उसकी असली पहचान है. भारत में साल 1999 में ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट’ लागू हुआ था. इसके तहत किसी राज्य या इलाके के खास प्रोडक्ट को कानूनी मान्यता दी जाती है. जब किसी प्रोडक्ट की पहचान और उसकी मांग देश-विदेश में बढ़ने लगती है, तो GI टैग के जरिए उसे आधिकारिक दर्जा मिल जाता है. इससे उसकी असली पहचान बनी रहती है और वह नकली प्रोडक्ट्स से सुरक्षित रहता है.
रटौल आम से जुड़े आंकड़े
- साल 1912 में इस रटौल आम को विकसित किया गया
- बागपत जिले के रटौल गांव के नाम पर इस आम नाम पड़ा रटौल
- इस किस्म को 2022 में GI टैग मिला
- साल 1920 में रटौल गांव में एक नर्सरी शुरू की गई
- 1934 में रटौल आम पाकिस्तान के मीरपुर पहुंचा