Strawberry Farming: किसानों को करोड़पति बनाएगी स्ट्रॉबेरी, सरकार खेती के लिए दे रही सब्सिडी का लाभ

स्ट्रॉबेरी की खेती आज किसानों के लिए फायदे का सोना बन चुकी है. कम समय में फल तैयार होता है, बाजार में सालभर मांग रहती है और सरकारी सब्सिडी इसे और फायदेमंद बनाती है. सही मिट्टी, ड्रिप इरिगेशन और मल्चिंग से उत्पादन बढ़ता है और शुद्ध मुनाफा लाखों में होता है.

Saurabh Sharma
नोएडा | Published: 7 Dec, 2025 | 10:40 AM

Strawberry Farming : सर्दियों के मौसम में जब खेतों में ज्यादातर फसलें धीरे-धीरे बढ़ती हैं, तब स्ट्रॉबेरी एक ऐसा फल है जो कम समय में तैयार होकर किसानों की जेब भर देता है. यह फल न सिर्फ सुंदर और स्वादिष्ट होता है, बल्कि इसकी बाजार में मांग सालभर बनी रहती है. पहले यह फल सिर्फ ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में उगता था, लेकिन अब मैदानी राज्यों में भी किसान इस हाई-वैल्यू फसल को उगा रहे हैं और कम समय में भारी मुनाफा कमा रहे हैं. केंद्र सरकार इरिगेशन सिस्टम और मल्चिंग विधि अपनाने पर किसानों को सब्सिडी दे रही है, जिससे किसानों को स्ट्रॉबेरी उगाने का खर्च लगभग आधा हो जाता है जबकि, मुनाफा दोगुना मिल जाता है.

स्ट्रॉबेरी की बढ़ती मांग और जल्दी तैयार होने वाली फसल

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, देश में स्ट्रॉबेरी  की मांग लगातार बढ़ रही है. मिठाई, जूस, जैम, आइसक्रीम, चॉकलेट और दवा उद्योग में इसकी खपत बढ़ती जा रही है. यही कारण है कि इस फल की खेती करने वाले किसान पूरे सीजन में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. स्ट्रॉबेरी की खास बात यह है कि यह कम समय में तैयार हो जाती है और लगभग 60-75 दिनों में फल देना शुरू कर देती है. रोपाई के बाद  तीन महीने तक निरंतर तुड़ाई होती रहती है. एक पौधा 250 से 400 ग्राम फल देता है, जिससे एक एकड़ में 55 से 75 क्विंटल उत्पादन संभव है.

मिट्टी, तापमान और उन्नत खेती की तकनीक

स्ट्रॉबेरी के लिए रेतीली-दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है जिसमें जल निकासी अच्छी हो. मिट्टी का पीएच 5.5 से 6.5 आदर्श रहता है. रोपाई अक्टूबर से नवंबर के बीच सबसे सही मानी जाती है क्योंकि पौधों को 8-22 डिग्री सेल्सियस  तापमान पसंद है. किसान मल्चिंग पेपर और ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल करते हैं, जिससे पौधों को सही पोषण मिलता है, पानी की बचत होती है और फसल रोगों से सुरक्षित रहती है. एक एकड़ में 18,000 से 22,000 पौधे लगाए जाते हैं, जिससे उत्पादन अधिक होता है और गुणवत्ता बढ़ती है.

ड्रिप इरिगेशन से पौधों की जड़  तक पानी और पोषण पहुंचता है और 50 फीसदी तक पानी की बचत होती है. पौधों को हर 20-25 दिन में एनपीके, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स और ऑर्गेनिक खाद देना जरूरी है. स्ट्रॉबेरी फफूंदी की बीमारी के प्रति संवेदनशील होती है, इसलिए समय पर ट्राइकोडर्मा, नीम तेल और हल्के फफूंदनाशक का इस्तेमाल  करना चाहिए. सही देखभाल से पौधा मजबूत रहता है और उत्पादन अधिक होता है.

लागत, सब्सिडी और मुनाफा

स्ट्रॉबेरी की खेती में लागत थोड़ी अधिक आती है, जिसमें पौधे, मल्चिंग, ड्रिप इरिगेशन, खाद और दवाइयों के अलावा श्रम खर्च भी शामिल होता है. एक एकड़ की कुल लागत लगभग 1.2 से 1.5 लाख रुपये होती है. लेकिन केंद्र सरकार विभिन्न योजनाओं के तहत सब्सिडी देती है, जैसे ड्रिप इरिगेशन पर 50-70 फीसदी, मल्चिंग पर 40-50 फीसदी और रोपाई सामग्री पर 25-40 फीसदी की सहायता. एक एकड़ से 60-70 क्विंटल उत्पादन होने पर औसत कीमत 150-250 रुपये प्रति किलो मानें, तो कुल बिक्री लगभग 9 से 14 लाख रुपये तक हो सकती है. लागत घटाने के बाद किसान को प्रति एकड़ लगभग 7.5 से 12 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा हो सकता है.

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