रबी सीजन में लगाएं चने की नई किस्म ‘पूसा चना 4037’, रोगों से लड़ने में है सक्षम

पूसा चना 4037 की एक और बड़ी खासियत यह है कि इसे कम सिंचाई और खाद की आवश्यकता होती है. चूंकि इसमें रोगों का असर बहुत कम पड़ता है, इसलिए किसानों को कीटनाशकों और फफूंदनाशकों पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 11 Nov, 2025 | 07:55 AM

Farming Tips: भारत में दलहन फसलों की खेती हमेशा से किसानों की आय का एक अहम स्रोत रही है. इनमें चना (Gram) एक प्रमुख फसल है, जो रबी सीजन में बड़े पैमाने पर बोई जाती है. लेकिन कई बार रोग, जलवायु परिवर्तन और खराब किस्मों के कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है. इसी समस्या के समाधान के लिए हाल में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली ने एक नई उन्नत किस्म पूसा चना 4037 (अश्विनी) विकसित की है. यह किस्म न केवल अधिक पैदावार देती है बल्कि रोगों के प्रति भी काफी मजबूत है.

नई किस्म की खासियत

पूसा चना 4037 (अश्विनी) को इस तरह से तैयार किया गया है कि यह पारंपरिक किस्मों की तुलना में 20 से 25 प्रतिशत अधिक उत्पादन दे सके. इसका पौधा मजबूत होता है और दाने समान आकार के होते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस किस्म से किसान प्रति हेक्टेयर लगभग 20 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं, जो सामान्य चने की किस्मों की तुलना में काफी ज्यादा है.

रोगों से सुरक्षा

चना की फसल को अक्सर फ्यूजेरियम विल्ट (Fusarium Wilt) और ड्राई रूट रॉट (Dry Root Rot) जैसी बीमारियां बर्बाद कर देती हैं. अश्विनी किस्म को खासतौर पर इन रोगों से बचाने के लिए विकसित किया गया है. इसमें प्राकृतिक रूप से रोग-प्रतिरोधक जीन शामिल किए गए हैं, जिससे फसल को कम दवाओं की जरूरत पड़ती है और किसान की लागत घट जाती है.

जल्दी पकने वाली और जलवायु सहनशील फसल

यह किस्म लगभग 110-115 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे किसान इसे काटकर समय पर अगली फसल (जैसे गेहूं या सरसों) की तैयारी कर सकते हैं. इसके अलावा, यह फसल अर्ध-शुष्क और गर्म क्षेत्रों के लिए भी उपयुक्त है. राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इसका प्रदर्शन शानदार रहा है.

कम लागत, ज्यादा मुनाफा

पूसा चना 4037 की एक और बड़ी खासियत यह है कि इसे कम सिंचाई और खाद की आवश्यकता होती है. चूंकि इसमें रोगों का असर बहुत कम पड़ता है, इसलिए किसानों को कीटनाशकों और फफूंदनाशकों पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता. इससे उत्पादन लागत घटती है और मुनाफा बढ़ता है.

वैज्ञानिकों की मेहनत से मिली सफलता

इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों ने कई सालों के शोध और फील्ड ट्रायल के बाद विकसित किया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि “अश्विनी” नाम इस किस्म को उसकी तेजी और मजबूती के प्रतीक के रूप में दिया गया है यानी यह फसल जल्दी तैयार होती है और रोगों से लड़ने की क्षमता रखती है.

बाजार में भी लोकप्रिय

अश्विनी किस्म के चने के दाने मध्यम आकार के, चमकदार और प्रसंस्करण (Processing) के लिए उपयुक्त हैं. इससे चना दाल, बेसन और अन्य उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर होती है. व्यापारी और प्रोसेसर भी इसे प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे किसानों को अच्छा बाजार मूल्य मिल सकता है.

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