हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीनों में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र की वायु गुणवत्ता गंभीर रूप से गिर जाती है. प्रदूषण की इस भयावह स्थिति के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं. लेकिन, प्रमुख कारण पंजाब सहित उत्तर भारत के राज्यों में पराली जलाने को बताया जाता है. पराली जलाने से हवा खराब होने पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने किसानों, केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों पर सकारात्मक रुख दिखाया है.
हर साल अक्टूबर-नवंबर के महीनों में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र की एयर क्वालिटी गंभीर रूप से गिर जाती है. प्रदूषण की इस भयावह स्थिति के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं. लेकिन, हरियाणा, पंजाब समेत उत्तर भारत के राज्यों में किसानों के पराली जलाने को प्रमुख वजह बताकर सारा दोष किसानों पर मढ़ दिया जाता है. इस पर किसान संगठनों और किसान नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया भी है. आरोप लगाया जाता है कि फसल कटाई के बाद खेतों में पराली जलाना एक बड़ी पर्यावरणीय चुनौती बन चुकी है, जिससे दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में हवा जहरीली हो जाती है.
53 मामलों में 2.55 लाख रुपये का जुर्माना
इस साल अब तक पंजाब में पराली जलाने के 95 मामले दर्ज किए गए हैं. सबसे ज्यादा 55 मामले अमृतसर जिले से सामने आए हैं. वहां 24 एफआईआर दर्ज की गई हैं और 24 मामलों में रेड इंट्री की गई है. अब तक कुल 53 मामलों में करीब 2.55 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है. वहीं, 53 मामलों में BNS की धारा 223 के तहत कानूनी कार्रवाई की गई है.
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वहीं, पंजाब के तरनतारन जिले से 11, पटियाला से 10, बरनाला से 3, जबकि बठिंडा, फरीदकोट, फिरोजपुर और जालंधर से एक-एक मामला सामने आया है. पिछले साल इसी समय तक 179 मामले दर्ज किए गए थे. पूरे 2024 में पराली जलाने के 10,909 मामले सामने आए थे, जिनमें संगरूर जिला 1,725 मामलों के साथ शीर्ष पर था.
किसानों को जागरूक करने के सकारात्मक नतीजे
पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PPCB) के अधिकारियों का कहना है कि किसानों को लगातार जागरूक किया जा रहा है और इसके सकारात्मक नतीजे भी देखने को मिल रहे हैं. लक्ष्य पराली जलाने की प्रवृत्ति को पूरी तरह समाप्त करना है, जिसके लिए केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर काम कर रही हैं.
फसल चक्र में बदलाव से रुकेगी पराली समस्या
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार पराली जलाने की समस्या का स्थायी समाधान तभी संभव है जब फसल चक्र में बदलाव किया जाए और धान के स्थान पर मक्का, बाजरा जैसी कम पानी वाली फसलों को बढ़ावा मिले. पराली प्रबंधन के लिए मशीनों को गांव स्तर पर सामूहिक रूप से उपलब्ध कराया जाए. पराली से ऊर्जा, चारा, पैकेजिंग सामग्री आदि तैयार करने वाले उद्योगों को प्रोत्साहन मिले. जो किसान पराली नहीं जलाते, उन्हें आर्थिक रूप से प्रोत्साहित किया जाए. किसानों को जागरूक और तकनीकी रूप से सक्षम बनाया जाए.
हर साल वायु प्रदूषण से निपटने के लिए प्रशासन को सक्रिय होना पड़ता है, लेकिन स्थायी समाधान तभी संभव है जब नीति, तकनीक और जागरूकता, तीनों का एक साथ प्रभावी क्रियान्वयन किया जाए.