Bihar News: बिहार कृषि विभाग ने प्रदेश के धान किसानों के लिए खास एडवाइजरी जारी की है जिसमें धान की फसल को कट वर्म कीट से बचाने की चेतावनी दी गई है. दरअसल, बिहार में इन दिनों धान की खेती करने वाले किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कट वर्म कीट, जो कि धान की फसल पर हमला कर उसे नुकसान पहुंचा रहा है. बता दें कि, ये कीट धान के पौधों को तनों से कमजोर करता है जिसके कारण फसल की ग्रोथ रुक जाती है और धीरे-धीरे पूरी फसल चौपट हो जाती है. इससे किसानों के सामने गहरा आर्थिक संकट खड़ा हो जाता है. अगर समय रहते इस कीट का नियंत्रण न किया गया तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. किसानों की इस समस्या के समाधान के लिए बिहार कृषि विभाग ने कीट से बचाव के लिए एडवाइजरी में जरूरी निर्देश दिए हैं. किसान इसकी मदद से अपनी फसल का बचाव कर सकते हैं.
क्या है कट वर्म कीट
कट वर्म जिसे अंग्रेजी में Nocturnal Pest कहते हैं, रात में सक्रिय होने वाले कीटों में से एक है. इस कीट की खासियत है कि ये मिट्टी के नीचे दबे रहते हैं और दिन में आसानी से नजर नहीं आते हैं. ये कीट रात के समय सक्रिय होते हैं और रात के समय सीधे पौधों के तनों या जड़ों पर आक्रमण कर उन्हें काट देते हैं. बता दें कि, खास तौर पर कट वर्म जैसा कीट धान की रोपाई के बाद से लेकर पौधे की बढ़ती अवस्था तक फसल को नुकसान पहुंचाता है. इसके संक्रमण के कारण धान के पौधे सूखने लगते हैं और खेतों में खाली जगह दिखने लगती है.

धान की फसल में लगने वाला कट वर्म कीट (Photo Credit- Canva)
इन लक्षणों से करें पहचान
कट वर्म धान की फसल पर रात के समय हमला करते हैं. इस कीट के लार्वा छोटे पौधों को जमीन की सतह के पास से काट देते हैं जिससे पौधे कमजोर होकर गिर जाते हैं. शुरआती अवस्था में ये कीट धान की मुलायम पत्तियों को खाते हैं जबकि बड़े होने के बाद ये कीट पूरी पत्तियों को खाने लगते हैं. इन लार्वा की पहचान है कि ये गहरे भूरे रंग के होते हैं. इस कीट को पहचानने का एक लक्षण ये भी है कि इनके प्रकोप के कारण खेत में बीच-बीच में खाली जगह दिखाई देने लगती है.
बचाव के लिए किसान करें ये उपाय
बिहार कृषि विभाग की ओर से जारी की गई एडवाइजरी के अनुसार, धान की फसल को कट वर्म कीट से बचाने के लिए क्लोरपाइरीफॉस 20 प्रतिशत ई.सी दवा का 2.5 से 3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर छिड़काव करें. क्योंकि, ये कीट रात के समय सक्रिय रहते हैं इसलिए शाम को दवा का छिड़काव करना ज्यादा अच्छा है. किसान चाहें तो फसल पर ट्राइकोग्रामा या एनपीवी जैसे जैविक कीटनाशकों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.