Paddy Crop Disease: अगर आप धान किसान हैं तो ये समय आपके लिए बेहद ही संवेदनशील है. इस मौसम में धान की फसल को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है क्योंकि इस समय पौधों पर बालियां आने का समय होता है. इस मौसम में धान की बालियों पर अगर काले या हरे रंग के गोल फफूंद जैसे दाने दिखने लगें तो समझ लें कि फसल पर फाल्स स्मट रोग का हमला हुआ है. ये रोग धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल सकता है और उपज को 30 से 40 फीसदी तक घटा सकता है. बालियां आने के समय पर इस रोग का संक्रमण होना किसानों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. ऐसे में जरूरी है किसान समय रहते इन रोग की पहचान कर बचाव के उपाय कर लें.
क्या है फाल्स स्मट रोग
फाल्स स्मट (False Smut) एक फफूंदजनित रोग है जो कि Ustilaginoidea virens नामक फफूंद के कारण धान की फसल में फैलता है. ये रोग सीधे धान की बालियों पर हमला करता है और दानों की जगह पर हरे या काले रंग के गोल आकार के फफूंद जैसे धब्बे बना देता है. रोग जब खेत में बढ़ने लगता है तो फसल चौपट होने लगती है. इस कारण से फसल से होने वाली पैदावार पर बुरा असर पड़ता है, जिससे किसानों को उनकी उपज की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है और उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो जाता है.

धान की बालियों में फाल्स स्मट रोग का प्रभाव (Photo Credit- Canva)
इन कारणों से फैलता है रोग
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इन दिनों मौसम में बदलाव और नमी आ जाने के कारण धान की फसल में कीटों और रोगों का संक्रमण होना आम बात है. धान की फसल में फाल्स स्मट रोग का संक्रमण तब होता है जब तापमान ज्यादा हो और मौसम में नमी की मात्रा भी ज्यादा हो. लगातार बारिश या खेत में जलभराव के कारण भी फसल पर इस रोग का प्रभाव देखने को मिलता है. इसके अलावा अगर धान के पौधों की रोपाई करते समय उचित दूरी नहीं रखी गई है या फिर खाद के रूप में नाइट्रोजन का इस्तेमाल ज्यादा किया गया है तो भी इस रोग का संक्रमण हो सकता है.
इस तरह करें रोग से बचाव
धान की फसल को फाल्स स्मट रोग से बचाने के लिए जरूरी है कि बुवाई से पहले आप बीजों का कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा जैसी फफूंदनाशक दवाओं से उपचार करें. साथ ही मिट्टी में यूरिया की ज्यादा मात्रा मिलाने से बचें और जब पौधों पर 80 फीसदी तक बालियां निकलने लगें तब 1 मिलीलीटर प्रोपिकोनाजोल या हेक्साकोनाजोल दवा को प्रति लीटर पानी में घोलकर फसल पर इसका छिड़काव करें. किसानों को सलाह दी जाती है कि अगर उन्हें खेत में इस रोग के शुरुआती लक्षण नजर आएं तो वे सबसे पहले संक्रमित पौधों को हटाकर अलग कर दें ताकि रोग पूरे खेत में न फैले. इसके अलावा अपने खेत में बार-बार धान की ही फसल लगाने से बचें. कभी-कभी खेत में मक्का, गेहूं या फिर दलहन फसल को भी लगाएं.