नई किस्में, नई तकनीक से गन्ने की खेती में आ रही है क्रांति

लगातार होते रिसर्च, आधुनिक तकनीकें, उन्नत बीज के साथ किसानों की मदद की जा रही है. इंडस्ट्री लगातार मॉडर्नाइजेशन में बेहतर से बेहतर हो रही है. यानी खेत से लेकर मिलों तक हर जगह वैज्ञानिक तकनीकों से खुद को बेहतर करने का काम चल रहा है.

नई दिल्ली | Updated On: 26 Aug, 2025 | 01:04 PM

भारत में मिठाई की मांग हमेशा से ही यथावत बरकरार रही है और भविष्य में भी  रहेगी. यही वजह है कि देश में गन्ना की खेती को उन्नत बनाने की कोशिशें लगातार जारी हैं. गन्ना की खेती की अहमियत काे इस बात से ही समझा जा सकता है कि गन्ना एकमात्र फसल है, जिसके लिए सभी गन्ना उत्पादक राज्यों में अलग से सरकारी विभाग कार्यरत रहता है. इंडस्ट्री तो पूरी तरह कोशिश करती ही है कि उत्पादन से लेकर क्वालिटी कंट्रोल और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जितना संभव हो, किसानों को मदद मिले. इंडस्ट्री भी नित नई तकनीकों को स्वीकारे, ताकि किसान के साथ प्रोसेसिंग से जुड़े काम भी और बेहतर तरीके से हो पाएं. यह बात भरोसे और पूरी जिम्मेदारी से कह सकते हैं कि इस्मा के नेतृत्व में इंडस्ट्री की बेहतरी का काम बहुत अच्छी तरह किया जा रहा है. साथ ही, सरकार के साथ कदमताल करते हुए किसानों की बेहतरी के लिए भी काम हो रहा है.

गन्ना के औद्योगिक महत्व काे देखते हुए राज्य सरकारों में संचालित हो रहे गन्ना विभागों की जिम्मेदारी के दायरे में, गन्ना अनुसंधान से लेकर किसानों को खेती की नई नई तकनीकों से लैस करने और चीनी मिलों से किसानों को जोड़ने तक, सभी जरूरी दायित्व शामिल हैं.

इसमें सबसे अहम जिम्मेदारी गन्ना का उत्पादन बढाना है, जिससे चीनी मिलों को उनकी उत्पादन क्षमता के मुताबिक गन्ना उपलब्ध कराया जा सके. इसके लिए सरकार किसानों को गन्ना उपजाने की अत्याधुनिक तकनीकों से लैस करने पर पूरा जोर दे रही है. नई तकनीक के दायरे में गन्ने के उन्नत बीज तैयार करने से लेकर, फसल एवं कीट प्रबंधन के आधुनिक तरीके मुहैया कराने एवं सिंचाई के सटीक साधन हर किसान के खेत तक पहुंचाना शामिल है.

सरकार को मदद करने या कदम से कदम मिलाकर साथ बढ़ने में इंडस्ट्री का भी रोल रहा है. इस्मा के महानिदेशक दीपक बल्लानी कहते हैं – इंडस्ट्री ने उस तरह के कामों को अपनाया है, जिन्हें सस्टेनेबल प्रैक्टिस कह सकते हैं. पानी को बचाने के लिए क्या करना है, उसे कैसे बेहतर तरीके से इस्तेमाल करना है और वेराइटल आइडेंटिफिकेशन पर भी फोकस किया है जिससे गन्ने की नई एवं अच्छी उपज व चीनी परता में वृद्धि हो सके. इसके अलावा, गन्ने की खेती में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मतलब एआई का कितना इस्तेमाल होगा और कैसे होगा, इस तरफ भी प्रयास चल रहे हैं, जो उद्योग के विकास और स्थिरता के लिए एक रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाता है.

गन्ने की खेती किस तरह विकसित हुई है. इसे आंकड़ों से ही समझा जा सकता है. दीपक बल्लानी बताते हैं, ‘तेजी से विकास हुआ है. इसकी प्रमुख वजह हैं इंडस्ट्री की तरक्की और मॉडर्नाइजेशन. गन्ने की खेती का रकबा पिछले दस सालों में दोगुना हो गया है, जिससे गन्ने का उत्पादन तीन गुना बढ़ गया है. 1980 के दशक के लगभग 1,500 लाख टन से आज लगभग 4,500 लाख टन उत्पादन हो गया है. प्रति हेक्टेयर उपज में भी काफी सुधार हुआ है. यह लगभग 57-58 टन/हेक्टेयर से बढ़कर लगभग 72-73 टन/हेक्टेयर हो गई है, यानी लगभग 25 फीसदी की वृद्धि.’

गन्ना की खेती में नई नई तकनीकों का प्रयोग लगातार बढ़ने का सिलसिला खेत तैयार करने के साथ ही शुरू हो जाता है. गन्ने का खेत तैयार करने के लिए खास तौर से डिजाइन किए गए लेजर लेवलर से लेकर सीड ड्रिल तक, किसानों को सभी जरूरी यंत्र मुहैया कराए जा रहे हैं. इनकी मदद से किसान खेत में जलभराव की समस्या से निपटने के लिए खेत को लेजर तकनीक से समतल करने वाले लेवलर का अब भरपूर इस्तेमाल करने लगे हैं. लघु एवं सीमांत किसान समूह में इन यंत्रों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके अलावा गन्ने की बुआई से पहले एक समान दूरी पर क्यारियां बनाने और सीडलिंग तैयार करने के लिए भी उन्नत यंत्र अब किसानों की पहुंच से दूर नहीं हैं.

इसी प्रकार सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई तकनीक अब गन्ने की खेती में अपना कमाल दिखा रही है. इसके लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में “पर ड्रॉप मोर क्रॉप” (PDMC) मिशन के अंतर्गत माइक्रो इरीगेशन तकनीक काे बढ़ावा दिया जा रहा है.

अब बात आती है गन्ने की उन्नत किस्मों की और जिनको बोने के लिए किसानों को उन्नत तकनीक अपनाना भी उतना ही जरूरी है. उन्नत बीज और कारगर तकनीक के बिना बेहतर उत्पादन लेना संभव नहीं है. पहले बात गन्ना की उन किस्मों की जो सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैं और इन्हें किसान बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करते हैं. इनके प्रयोग के लिए किसानों को प्रेरित करने का काम सरकार तो करती ही है, इंडस्ट्री का भी इसमें रोल है. उन्नत किस्मों का बड़ा रोल है. उनकी सूची और उनसे जुड़े आंकड़े आप इस टेबल में देख सकते हैं.

बेहतर किस्में मिलने के बाद किसानों को बुवाई की तकनीक पर खास ध्यान देना जरूरी है. इस काम के लिए लगातार किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है. इनमें सबसे कारगर तकनीकों के लिहाज से चिप बड तकनीक को माना जाता है. इसमें, गन्ने के एक छोटे से टुकड़े (चिप) का उपयोग करके कलम विधि से एक नया पौधा उगाया जाता है. यह तकनीक बीज की लागत को कम करने और उपज बढ़ाने में मददगार साबित होती है.

एसटीपी यानी सिंगल नोड तकनीक से बुआई करते समय गन्ने के एक आंख वाले टुकड़े का उपयोग किया जाता है. नर्सरी में 50-55 दिनों तक गन्ने के पौधे उगाए जाते हैं, फिर उनकी रोपाई की जाती है. यह विधि बीज की लागत को कम करती है. इसमें पौध रोपण की सफलता की दर 95 से 99 प्रतिशत तक होती है. इनसे मिलती जुलती ट्रेंच विधि और केन-नोड विधि भी हैं.

कुल मिलाकर, चाहे सिंचाई में संचय की बात हो या फिर उन्नत किस्मों की. नई तकनीक का इस्तेमाल हो या इस ओर रिसर्च करना और फिर किसानों को प्रशिक्षित करना. हर क्षेत्र में सरकार की ओर से लगातार काम किया जा रहा है. इंडस्ट्री भी अपनी तरफ से जरूरी कदम उठा रही है और उसका पॉजिटिव असर भी देखने को मिला है.

(पार्टनर्ड)

Published: 26 Aug, 2025 | 12:02 PM