50 हाथियों को काटने का आदेश, मांस बटेगा घर-घर, दुनियाभर में विरोध शुरू

जिम्बाब्वे के वन्यजीव विभाग ने कम से कम 50 हाथियों को मारने की अनुमति दी है. सरकार का मानना है कि इससे न केवल पर्यावरण को संतुलन मिलेगा बल्कि स्थानीय लोगों को भूख से राहत भी मिलेगी.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 10 Jun, 2025 | 09:25 AM

कल्पना कीजिए, एक ऐसा देश जहां लोग भूख से जूझ रहे हैं, खेत सूखे पड़े हैं, और जंगलों में जानवरों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि इंसानों की जान पर बन आई है. यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि अफ्रीकी देश जिम्बाब्वे की सच्चाई है.

भारी सूखे और भोजन की किल्लत से जूझ रहे जिम्बाब्वे ने अब एक ऐसा फैसला लिया है, जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया है. अब 50 हाथियों को मारकर उनका मांस भूखे लोगों में बांटा जाएगा. सरकार इसे जरूरत और संरक्षण के बीच संतुलन का तरीका बता रही है, जबकि पर्यावरण कार्यकर्ता इसे क्रूरता और गलत नीति कह रहे हैं. लेकिन क्या सचमुच इंसानों की भूख मिटाने के लिए हाथियों की बलि देना जरूरी है? या इस संकट का कोई और हल हो सकता था? यही सवाल आज वैश्विक बहस का केंद्र बन चुका है.

क्यों हो रहा है हाथियों का कत्ल?

जिम्बाब्वे में लगभग 84,000 हाथी हैं, जबकि जंगल और रिजर्व ऐसी संख्या को केवल 55,000 तक ही संभाल सकते हैं. ज्यादा हाथियों की वजह से वे अक्सर गांवों में घुस आते हैं, जहां फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, घर तोड़ते हैं और कभी-कभी लोगों को भी चोट पहुंचाते हैं. खासकर देश के साउथ-ईस्ट में स्थित “सेव वैली” रिजर्व में हाथियों की संख्या तीन गुना ज्यादा हो गई है, जिससे वहां की प्रकृति और मानव जीवन दोनों प्रभावित हो रहे हैं.

इस समस्या को देखते हुए, जिम्बाब्वे के वन्यजीव विभाग ने कम से कम 50 हाथियों को मारने की अनुमति दी है. सरकार का मानना है कि इससे न केवल पर्यावरण को संतुलन मिलेगा बल्कि स्थानीय लोगों को भूख से राहत भी मिलेगी.

हाथी का मांस भूख मिटाने का विकल्प

हालांकि हाथी का मांस खाने की परंपरा जिम्बाब्वे में नई नहीं है. पहले भी जब कहीं खाद्य संकट होता था या जब प्राकृतिक मौत के कारण हाथी मरते थे, तब उनका मांस स्थानीय लोगों में बांटा जाता था. अब देश में सूखे के कारण भूख बढ़ रही है, इसलिए सरकार फिर से हाथी के मांस को गरीब और ग्रामीण इलाकों में वितरित करने का फैसला कर रही है. यह कदम सरकार की ओर से एक दोहरा प्रयास है, एक तरफ हाथियों की अधिकता को नियंत्रित करना और दूसरी तरफ भूखमरी से जूझ रहे लोगों की मदद करना.

आलोचना और चिंताएं

इस फैसले को लेकर विश्व स्तर पर बहस भी तेज हो गई है. कई पर्यावरणविद और जानवरों के अधिकारों के समर्थक इसे गलत और गैर-मानवीय कदम मानते हैं. उनका कहना है कि हाथियों को मारने से उनकी सामाजिक संरचनाएं टूटती हैं और इससे पर्यटन पर भी बुरा असर पड़ सकता है, जो जिम्बाब्वे की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है.

पर्यावरण विशेषज्ञ भी कुछ वैकल्पिक उपाय सुझा रहे हैं, जैसे कि हाथियों को कम आबादी वाले इलाकों में स्थानांतरित करना, बेहतर बाड़ लगाना, या समुदाय आधारित संरक्षण कार्यक्रम शुरू करना. लेकिन इन सभी विकल्पों के लिए भारी निवेश और संसाधन चाहिए, जो अभी जिम्बाब्वे के पास सीमित हैं.

जिम्बाब्वे की चुनौती

जिम्बाब्वे सरकार का कहना है कि देश की परिस्थितियां बेहद जटिल हैं. वे इस कदम को एक संतुलन बनाने की कोशिश मानते हैं, जहां मानव और प्रकृति दोनों की रक्षा हो सके. साथ ही, सरकार लंबे समय से हाथी के दांत (आईवरी) के व्यापार की अनुमति की मांग कर रही है ताकि संरक्षण के लिए पैसा जुटाया जा सके, लेकिन अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा है.

यह मामला एक बड़ा सवाल भी खड़ा करता है, क्या हम प्रकृति और वन्यजीवों की रक्षा करते हुए इंसानों की आवश्यकताओं को कैसे पूरा करें? जिम्बाब्वे की यह स्थिति कई अफ्रीकी देशों के लिए भी आइना है, जहां बढ़ती आबादी, जलवायु परिवर्तन और सीमित संसाधन दोनों पक्षों के लिए चुनौती बन चुके हैं.

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Published: 10 Jun, 2025 | 09:09 AM

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