बंपर आलू फसल ने बढ़ाई किसानों की चिंता, मांग घटने से औंधे मुंह गिरी कीमतें

इस स्थिति से उबरने के लिए व्यापारी संघ और किसान संगठनों ने सरकार से आग्रह किया है कि वे मिड-डे मील योजना के लिए सीधे किसानों से आलू की खरीद करें. इससे न केवल किसानों को राहत मिलेगी बल्कि बच्चों के पोषण में भी मदद होगी.

नई दिल्ली | Published: 10 Jun, 2025 | 10:50 AM

इस बार पश्चिम बंगाल के किसानों के लिए आलू की बंपर फसल खुशी की खबर नहीं, बल्कि चिंता की वजह बन गई है. खेतों में भरपूर पैदावार हुई, लेकिन बाजार में मांग कम होने से आलू के दाम आधे हो गए. इससे किसान लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं और उन्हें भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है. अब किसान और व्यापारी सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि वो सीधे किसानों से आलू खरीदे और इसे मिड-डे मील जैसी योजनाओं में इस्तेमाल करे, ताकि किसान इस मुश्किल वक्त से बाहर निकल सकें.

सबसे ज्यादा पैदावार, लेकिन कीमतें सबसे कम

2024-25 में राज्य में करीब 115 लाख टन आलू का उत्पादन हुआ है, जबकि पिछले साल यह 100 लाख टन था. यह एक दशक में सबसे अधिक उत्पादन है. लेकिन मांग उतनी नहीं बढ़ी, जितनी उम्मीद थी. नतीजतन, किसानों को औने-पौने दाम पर अपना माल बेचना पड़ रहा है.

दूसरे राज्यों की सप्लाई ने बिगाड़ा खेल

एक ओर आलू की खपत में गिरावट देखी गई, दूसरी ओर दूसरे राज्यों खासकर उत्तर प्रदेश से सप्लाई बढ़ने से बंगाल के लिए पारंपरिक बाजार जैसे ओडिशा तक हाथ से निकल गए. बंगाल सरकार ने पिछले साल बाहर सप्लाई पर रोक लगा दी थी, जिससे ओडिशा ने यूपी से आलू मंगवाना शुरू कर दिया और इस साल भी वही ट्रेंड जारी रहा. व्यापारी मानते हैं कि इससे बंगाल को बड़ा नुकसान हुआ.

किसानों को हो रहा नुकसान

फिलहाल ज्योति किस्म के आलू की थोक कीमतें सिर्फ 12-14 रुपये प्रति किलो रह गई हैं, जो पिछले साल 24-25 रुपये थी. फरवरी-मार्च में जब नई फसल आई थी, तब किसानों को खेत पर 10 रुपये प्रति किलो मिल रहा था, लेकिन अब उन्हें सिर्फ 7-8 रुपये प्रति किलो मिल रहा है. इसमें 4 रुपये तक का घाटा किसानों को उठाना पड़ रहा है.

सरकार से सीधी खरीद की मांग

इस स्थिति से उबरने के लिए व्यापारी संघ और किसान संगठनों ने सरकार से आग्रह किया है कि वे मिड-डे मील योजना के लिए सीधे किसानों से आलू की खरीद करें. इससे न केवल किसानों को राहत मिलेगी बल्कि बच्चों के पोषण में भी मदद होगी.

पश्चिम बंगाल के किसान इस समय एक कठिन दौर से गुजर रहे हैं. बंपर पैदावार उनके लिए आशीर्वाद बनने के बजाय सिरदर्द बन गई है. ऐसे में सरकार से उन्हें उम्मीद है कि वह हस्तक्षेप कर नुकसान को कुछ हद तक कम करने की कोशिश करेगी. किसानों का कहना है कि अगर यही हाल रहा तो अगले साल आलू की खेती करने से पहले वे कई बार सोचेंगे.