कांगड़ा चाय जिसका यूरोपीय संघ ने भी माना लोहा, 170 साल पहले शुरू हुई खेती.. भूकंप का भी किया सामना
1998 में कांगड़ा चाय का उत्पादन 17 लाख 11 हजार किलोग्राम था, लेकिन उसके बाद लगातार गिरावट आई. साल 2024 में चाय उद्योग ने 1 लाख 40 हजार किलोग्राम चाय उत्पादन का अनुमान लगाया था, जो साल 2023 की तुलना में 25 हजार किलोग्राम कम था.
Kangra Tea: जब भी चाय की बात होती है तो सबसे पहले लोगों के जेहन में दार्जलिंग और असम का नाम आता है. लोगों को लगता है कि सबसे ज्यादा टेस्टी और बेहतरीन क्वालिटी की चाय की खेती दार्जलिंग और असम में ही की जाती है, लेकिन ऐसी बात नहीं है. दार्जलिंग और असम की चाय की तरह कांगड़ा चाय भी विश्व प्रसिद्ध है. कांगड़ा चाय की सप्लाई देश में नहीं, बल्कि अमेरिका- यूरोप तक होती है. यही वजह है कि इसे साल 2005 में भौगोलिक संकेत (GI) टैग भी मिला. तो आइए आज जानते हैं कांगड़ चाय की खासियत के बारे में.
कांगड़ा चाय का इतिहास 170 साल पुराना है. इसे दुनिया की सबसे बेहतरीन चाय माना जाता है और यह सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी हेल्थ ड्रिंक के रूप में इस्तेमाल होती है. लोग इसके गुणों से लगातार प्रभावित हो रहे हैं. खासकर महिलाएं इसे अपनी सुंदरता बनाए रखने के लिए रोजाना इस्तेमाल कर रही हैं. साथ ही, उच्च रक्तचाप और कई गंभीर बीमारियों में भी कांगड़ा चाय फायदेमंद मानी जाती है. कांगड़ा का पालमपुर अपनी विशाल चाय बागानों की वजह से उत्तर पश्चिमी भारत की चाय राजधानी के रूप में जाना जाता है. हालांकि, 1905 के भूकंप ने इसे प्रभावित किया, लेकिन घाटी अपनी हल्की खुशबू वाली काली और हरी चाय के लिए प्रसिद्ध बनी रही.
1849 में शुरू हुई चाय की खेती
कांगड़ा चाय का इतिहास 1849 से शुरू होता है, जब बॉटेनिकल चाय बागानों के अधीक्षक डॉ. जेम्सन ने इसे चाय की खेती के लिए आदर्श क्षेत्र बताया था. भारत के सबसे छोटे चाय क्षेत्रों में से एक होने के बावजूद, कांगड़ा की ग्रीन और ब्लैक टी बहुत खास है. ब्लैक टी में मीठी सुगंध और गहरा स्वाद होता है, जबकि ग्रीन टी में लकड़ी जैसी सुगंध मिलती है. कांगड़ा चाय की मांग लगातार बढ़ रही है और ज्यादातर मूल निवासी इसे खरीदते हैं. पहले इसे पेशावर के रास्ते काबुल और मध्य एशिया में भेजा जाता था, लेकिन अब इसका मुख्य बाजार अमृतसर और कोलकाता हैं.
चाय उत्पादन में आ रही है गिरावट
आंकड़ों के अनुसार, 1998 में कांगड़ा चाय का उत्पादन 17 लाख 11 हजार किलोग्राम था, लेकिन उसके बाद लगातार गिरावट आई. साल 2024 में चाय उद्योग ने 1 लाख 40 हजार किलोग्राम चाय उत्पादन का अनुमान लगाया था, जो साल 2023 की तुलना में 25 हजार किलोग्राम कम था. धर्मशाला चाय उद्योग के प्रबंधक का कहना था कि साल 2023 साल 1 लाख 65 हजार किलोग्राम चाय बनी थी. मार्च से दिसंबर तक आर्थोडोक्स ब्लैक टी का निर्यात किया जाता है, जिसमें सबसे ज्यादा मांग यूरोप, खासकर जर्मनी से होती है. बढ़ती मांग के कारण पिछले साल चाय के दाम भी बढ़कर 100 रुपये प्रति किलो से ऊपर चले गए. लेकिन निर्यात की धीमी रफ्तार के कारण कांगड़ा चाय को अभी भी सही कीमत नहीं मिल पाई है.
इन देशों में होती है चाय की सप्लाई
चाय उद्योग से जुड़े जानकारों के मुताबिक, अप्रैल में तुड़ाई गई चाय को पहली तोड़ चाय कहा जाता है और इसकी विदेशों में बहुत मांग रहती है. खासकर यूरोप, इंग्लैंड और अमेरिका में इसे ज्यादा पसंद किया जाता है. पूरे सीजन में चाय की 70 फीसदी मांग अप्रैल में तैयार होने वाली चाय की होती है. धर्मशाला में ब्लैक टी, ऊलोंग टी और ग्रीन टी बनाई जाती है, जिनमें ऊलोंग और ब्लैक टी की विदेशों में सबसे ज्यादा डिमांड है.
2,300 हेक्टेयर में होती है कांगड़ा चाय की खेती
कांगड़ा चाय के बागानों का क्षेत्रफल 2,300 हेक्टेयर है, लेकिन अब यह घट रहा है. अपनी अनोखी खुशबू और स्वाद के कारण यह चाय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय है. हालांकि, बागानों का कम होना और उत्पादन घटने के कारण यह धीरे-धीरे संकट में है. खासकर रखरखाव और मजदूरों की कमी की वजह से रकबे में गिरावट आ रही है. यह चाय हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा घाटी के पालमपुर, धर्मशाला और बैजनाथ क्षेत्रों में उगाई जाती है.
2023 में यूरोपीय यूनियन से भी GI टैग
बता दें कि कांगड़ा चाय को साल 2023 में यूरोपीय यूनियन से भी GI टैग मिल गया है. इससे पहले भारत ने साल 2005 में इसकी खास खूबियों के कारण इसे GI टैग दिया था, जिसके बाद इसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ी. 30 मार्च 2023 को यूरोपीय संघ ने भी कांगड़ा चाय को GI टैग से सम्मानित किया था. कांगड़ा घाटी की यह प्रसिद्ध चाय बड़े पैमाने पर यूरोपीय देशों में निर्यात होती है और वहां इसकी काफी मांग है. अब GI टैग मिलने के बाद कांगड़ा चाय नई ऊंचाइयों की ओर बढ़ती नजर आ रही है.
क्या होता है जीआई टैग
GI मतलब जियोग्राफिकल इंडिकेशन होता है, जो एक एक खास पहचान वाला लेबल होता है. यह किसी चीज को उसके इलाके से जोड़ता है. आसान भाषा में कहें तो ये GI टैग बताता है कि कोई प्रोडक्ट खास तौर पर किसी एक तय जगह से आता है और वही उसकी असली पहचान है. भारत में साल 1999 में ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट’ लागू हुआ था. इसके तहत किसी राज्य या इलाके के खास प्रोडक्ट को कानूनी मान्यता दी जाती है. जब किसी प्रोडक्ट की पहचान और उसकी मांग देश-विदेश में बढ़ने लगती है, तो GI टैग के जरिए उसे आधिकारिक दर्जा मिल जाता है. इससे उसकी असली पहचान बनी रहती है और वह नकली प्रोडक्ट्स से सुरक्षित रहता है.
खबर से जुड़े कुछ आंकड़े
- 1849 में पहली बार शुरू हुई कांगड़ा में चाय की खेती
- साल 2005 में मिला जीआई टैग
- 2,300 हेक्टेयर में होती है कांगड़ा चाय की खेती
- 2023 को यूरोपीय संघ ने भी कांगड़ा चाय को GI टैग से सम्मानित किया
- जर्मनी सहित कई देशों में होता है निर्यात
- 1998 में कांगड़ा चाय का उत्पादन 17 लाख 11 हजार किलोग्राम था