Paddy plantation: पुराने रीति-रिवाज केवल शहरों से ही गायब नहीं हुए हैं, बल्कि गांवों में भी विलुप्त होते जा रहे हैं. पहले गांव में मौसम और पर्व-त्योहारों के अनुसार गीत गाए जाते थे. यहां तक कि फसलों की बुवाई, रोपाई और निराई करते समय भी महिलाएं गीत गाया करती थीं. अलग-अलग फसल के लिए अलग- अलग गीत गाए जाते थे. खास कर धान की रोपाई करते समय महिलाएं अकसर गीत गाया करती थीं, जिसे ‘रोपनी गीत’ कहते हैं. लेकिन अब ये बातें पुरानी हो गई हैं. लेकिन फिर भी आदिवासी क्षेत्रों में ये चलन बचा हुआ है.
दरअसल, आज से 20 साल पहले तक बिहार, झारखंड और पूरी उत्तर प्रदेश के गांवों में ‘रोपनी गीत’ का चलन बहुत था. तब हल-बैल से खेती हुआ करती थी. धान की रोपाई 15 से 20 दिनों में खत्म नहीं होती थी, बल्कि एक से डेढ़ महीने तक त्योहार की तरह इसका सीजन चलता था. तब ‘गीतहारिन’ महिला मजदूरों की ज्यादा मांग थी. क्योंकि गीतहारिन महिलाएं रोपनी गीत गाने में निपुण मानी जाती थीं. अगर आप उस दौर में गांव से बाहर निकलते तो रोपनी गीत बरबस आपको सुनाए देते. खेतों में पूरे एक से डेढ़ महीने तक संगीत का माौहल रहता था.
धान रोपनी गीत” यह एक पारंपरिक प्रथा है जो झारखंड की संस्कृति का हिस्सा है। #Jharkhand pic.twitter.com/OGzc88JRnp
— Sohan singh (@sohansingh05) July 12, 2025
गितहारिन महिला को ज्यादा मजदूरी
खास बात यह है कि गितहारिन महिलाओं को अन्य महिला मजदूरों के मुकाबले ज्यादा मजदूरी भी मिलती थी. हालांकि, ऐसा कोई स्थानीय नियम नहीं था. लेकिन खेत के मालिक खुश होकर अपनी तरफ से गितहारिन महिला को ज्यादा मजदूरी दिया करते थे. क्योंकि ऐसी मान्यता थी कि रोपाई के दौरान जितने अधिक मुधर स्वर और राग में रोपनी गीत गाए जाएंगे, फसल की उपज उतनी ही अच्छी होगी. लेकिन अब धीरे-धीरे इस तरह की पुरानी संस्कृति खत्म होती जा रही है. न तो अब पहले की तरह गितहारि महिलाएं रहीं और न ही खेत मालिक के पास रोपनी गीत गवाने का शौक.
क्यों रोपनी गीत का चलन हो रहा कम
एक्सपर्ट का कहना है खेती अब तकनीक आधारित हो गई है. मजदूरों की जगह धान रोपाई के लिए मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है. साथ ही मजदूरों का पलायन भी हो रहा है. वहीं, महिला की जगह पुरुष मजदूर धान की रोपाई कर रहे हैं, जिन्हें रोपनी गीत के बारे में कोई जानकारी नहीं है. सबसे बड़ी बात यह है कि अब खेत मालिक को भी रोपनी गीत को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं रही. वे भी पारंपरिक रिवाजों से खुद छुटकारा पाना चाहते हैं. क्योंकि इसके लिए जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ती है.
पहले दिन इष्टदेव की पूजा
हालांकि, धान की रोपनी शुरू करने से पहले अपने इष्टदेव की पूजा करने का चलन अभी भी बरकरार है. किसान धान रोपाई के पहले दिन खेतों पर जाकर पूजा करते हैं. इस दिन गांव में त्योहार जैसा माहौल होता है. पूजा के बाद रोपनी करने वालों को परंपरागत ‘पर्बी’ दी जाती है और इसके बाद रोपनी शुरू होती है. किसान रोपनहारों और पड़ोसियों को मीठा खाना, जैसे गुड़ वाली खिचड़ी खिलाकर दावत भी देते हैं.
तब कैसा होता था खेत में माहौल
उस दौर में गांव की अर्थव्यवस्था बिल्कुल कृषि पर निर्भर थी. इसलिए धान की बुवाई के सीजन के दौरान गांवों में जश्न का माहौल रहता था. धान रोपाई के समय खेत मालिक खुद खेत में मौजूद रहते थे. बैलों के गले में बंधी घुंघरुओं की रुनझुन आवाज सुनाई देती थी और महिलाएं झूम-झूम कर गीत गाते हुए रोपनी करती थीं. कभी-कभी खेतों में ही महिला और पुरुष रोपनहारों के बीच गीतों का मुकाबला भी होता था, जिसका फैसला खेत में खड़े मालिक किया करते थे.
झारखंड की संस्कृति और पारंपरा का हिस्सा
आज मैं ये बातें इसलिए कर रहा हूं, चूंकि मुझे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक वीडियो मिल गया, जिसमें धान की रोपाई करती हुईं महिलाएं गीत गा रही हैं. साथ ही कुछ पुरुष वाद्य यंत्र बजा रहे हैं. एक्स पर वीडियो शेयर करने वाले युवक का नाम सोहन सिंह हैं. उन्हें एक्स पर वीडियो शेयर करते हुए लिखा है कि ‘धान रोपनी गीत’, जो झारखंड की संस्कृति और पारंपरा का हिस्सा है.