क्लाइमेट चेंज के चलते देश के तापमान में तेजी से बदलाव देखा गया है. ताजा रिपोर्ट के अनुसार बीते 30 सालों के दौरान उत्तर भारत के इलाकों में हर दशक तापमान में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है और हीटवेव की अधिक घटनाएं रिपोर्ट की गई हैं. 1971 से पिछले दशक तक पूर्वोत्तर राज्यों में भी हीटवेव की घटनाएं बढ़ी हैं. जबकि, पहाड़ी इलाके जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, लद्दाख के ज्यादातर हिस्सों में गर्म मौसम की स्थितियां बढ़ी हैं. जबकि, ह्यूमिडिटी के चलते संक्रामक बीमारियों में भी उछाल दर्ज किया गया है.
उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों में भीषण गर्मी पड़ रही है. जून के पहले हफ्ते से ही दिन का तापमान आसमान छू रहा है, दिल्ली, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों में पारा 44 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया है. मध्य और पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में भी भीषण गर्मी की स्थिति बनी हुई है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) 9 जून से लगातार पांच दिनों से रेड अलर्ट जारी कर रहा है. हालांकि, दिल्ली में मई अब तक का सबसे अधिक बारिश वाला महीना रहा, जिसमें कुल 186.4 मिमी बारिश हुई, जो मई 2008 में 165 मिमी बारिश के पिछले रिकॉर्ड को पार कर गया.
गुजरात, राजस्थान-बिहार समेत इन राज्यों में गर्म हवाओं का प्रकोप बढ़ा
स्काईमेट वेदर के मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन उपाध्यक्ष महेश पलावत ने कहा कि मानसून अपने समय से लगभग एक सप्ताह पहले ही आगे बढ़ गया था, लेकिन मुंबई और पूर्वोत्तर भारत के कई हिस्सों में पहुंचने के बाद इसकी ग्रोथ रुक गई और पश्चिमी विक्षोभ की स्थिति भी कम हो गई. पिछले सप्ताह हमने देखा है कि उत्तर-पश्चिम
भारत पर चक्रवाती सर्कुलेशन बहुत कमजोर था और सिंधु-गंगा के मैदानों पर गर्म हवाएं बह रही हैं. गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड और पूरे उत्तरी मैदान के अधिकांश हिस्से में गर्म हवाओं का प्रकोप देखा गया है. गर्मी थार रेगिस्तान से आ रही है, जहां तापमान पहले से ही 48 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया है, जो देश के पूर्वी और मध्य भागों तक पहुंच रहा है.
ह्यूमिडिटी और ज्यादा टेंपरेचर से हीटस्ट्रोक के मामले बढ़ रहे
रिपोर्ट में कहा गया है कि ह्यूमिडिटी की स्थिति में बढ़ोत्तरी से स्वास्थ्य ढांचे के लिए भी चुनौती खड़ी हो जाती है. अत्यधिक तापमान और हाई ह्यूमिडिटी के संपर्क में रहने से अक्सर हीट स्ट्रोक होता है. विशेषज्ञों के अनुसार मौजूदा मौसम की स्थिति सीधे तौर पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से संबंधित है. जलवायु परिवर्तन ने चरम मौसम की घटनाओं, विशेष रूप से भारत में हीटवेव को बढ़ा दिया है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के पूर्व महानिदेशक डॉ. केजे रमेश ने कहा है कि जलवायु बदलाव के चलते दक्षिण-पूर्वी वायुमंडल में नमी का स्तर बढ़ा है. हर एक डिग्री तापमान बढ़ने के साथ ही हवा में जलवाष्प रोकने की क्षमता 7 फीसदी बढ़ गई है. इसके चलते सभी पहाड़ी राज्यों में दो से चार डिग्री तापमान में बढ़त देखी गई है.
दिल्ली-पंजाब-यूपी में हर दशक बढ़ रहीं लू की घटनाएं
हीटवेव पर ताजा शोध में कहा गया है कि पश्चिमी तटीय क्षेत्र में तीन दशकों (1991-2020) जून के दौरान हीटवेव की स्थिति नहीं देखी गई. अरुणाचल प्रदेश में 2001-2010 के बीच फिर से हीटवेव की स्थिति देखी गई. केरल में हीटवेव की घटनाएं 2011-2020 के दौरान देखी गईं, जबकि पहले नहीं होती थीं. यह देखा गया है कि उत्तर भारत के दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड में हीटवेव की घटनाएं 1991-2020 के बीच हर 10 साल में बढ़ी हैं. यानी 30 साल के दौरान हर दशक में हीटवेव की घटनाएं इन राज्यों में बढ़ी हैं.
पहाड़ और पूर्वोत्तर में हर दशक बढ़ रही हीटवेव की स्थित
भीषण गर्मी की घटनाओं के विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले तीन दशकों में जून माह में उत्तर-पश्चिमी से लेकर मध्य क्षेत्रों में गर्म मौसम की स्थिति में उल्लेखनीय बढ़त हुई है. इसके अलावा पहाड़ी राज्य भी गर्म तापमान से अछूते नहीं रहे हैं. जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, लद्दाख जैसे पहाड़ी राज्यों में हीटवेव की घटनाएं बढ़ रही हैं. रिपोर्ट के अनुसार 1971 से लेकर पिछले दशक तक पूर्वोत्तर राज्यों में भी हीटवेव की घटनाएं बढ़ी हैं.
तापमान बढ़ने और हीटवेव चलने की वजह क्या है
पिछले दो दशकों में वैश्विक जलवायु में और भी अधिक गर्माहट की शुरुआत हुई है. इस प्रतिकूल मौसम के पीछे की वजह अधिक तापमान से जुड़ी स्थितियों में खोजा जा सकता है. खास तौर पर उत्तर-दक्षिणी हवा के असंतुलन और चक्रवाती तूफानों के बार-बार बंगाल की खाड़ी के ऊपर पूर्व की ओर होने से दबाव रुकता है. इससे उत्तर-दक्षिण समुद्र की ओर चक्रवात बढ़ जाता है और इसके नतीजे में समुद्री हवा का बहाव ठहर जाता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इन स्थितियों से तेज प्रेसर सिस्टम भी मजबूत होता है, जिससे लगातार अधिक तापमान रहता है और हीटवेव चलती है.
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