86 फीसदी किसानों को नई कृषि तकनीकों का पता ही नहीं, रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे

देश में 150 केंद्रीय और राज्य स्तरीय कृषि संस्थानों के अलावा 700 से ज्यादा कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) हैं, फिर भी नई कृषि तकनीकों की जांच या पहुंच के लिए कोई एकीकृत मॉडल या सिस्टम नहीं है. मौजूदा व्यवस्था बिखरी हुई और धीमी है. सरकार को कृषि विकास के लिए कई बिंदुओं पर बहुत ज्यादा काम करने की जरूरत है.

रिजवान नूर खान
नोएडा | Updated On: 12 Nov, 2025 | 06:25 PM

देश के करीब 86 फीसदी किसानों को नई कृषि तकनीकों के बारे में पता ही नहीं है या फिर उनतक नई तकनीकें पहुंच नहीं पा रही हैं. एसोचैम की रिपोर्ट में कृषि विकास के लिए सही संगठित और एकीकृत ढांचे की कमी उजागर हुई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों तक तकनीक पहुंचाने के लिए सरकार को जरूरी हैं कदम उठाने होंगे और इसके लिए एआई समेत नए तरीके अपनाने होंगे. एसोचैम का कहना है कि अगर भारत नई कृषि तकनीकों को सही तरह अपनाए, तो देश की कृषि को डिजिटल, टिकाऊ और समावेशी प्रणाली में बदला जा सकता है, जहां इनोवेशन और इंटीग्रेशन साथ-साथ आगे बढ़ें और तकनीक का असर सीधे खेतों तक पहुंचे.

किसानों तक तकनीक नहीं पहुंच पा रही

एसोचैम (ASSOCHAM) की खेती-किसानी पर आई नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को अब ज्यादातर किसानों तक तकनीक पहुंचाने के लिए बिखरी हुई कृषि तकनीकों को एकजुट करना होगा. इसके लिए राज्य-स्तर पर परीक्षण प्लेटफॉर्म (सैंडबॉक्स) और एकीकृत कृषि डेटा सिस्टम बनाने की जरूरत है. रिपोर्ट के अनुसार देश के करीब 86 फीसदी किसान अभी भी कृषि तकनीक के फायदों से दूर हैं. इसलिए तकनीक की जांच, व्यापारिक उपयोग और छोटे किसानों तक पहुंचाने के तरीकों में बड़े बदलाव की जरूरत है.

850 सरकारी कृषि संस्थान पर सटीक सिस्टम की कमी

रिपोर्ट बताती है कि भारत में 90 से ज्यादा आईसीएआर संस्थान, 60 राज्य कृषि विश्वविद्यालय और 700 से ज्यादा कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) हैं, फिर भी नई तकनीकों की जांच के लिए कोई एकीकृत प्रणाली नहीं है. मौजूदा व्यवस्था बिखरी हुई और धीमी है, जिससे नए इनोवेशन को मंजूरी मिलने में दिक्कत आती है.

डेटा के लिए साझा मंच की जरूरत

रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि से जुड़ा डेटा कई अलग-अलग संस्थानों में बंटा हुआ है. अनुसंधान डेटा आईसीएआर और विश्वविद्यालयों के पास, बाजार डेटा राज्य विपणन बोर्डों के पास और खेत-स्तरीय डेटा निजी स्टार्टअप्स के पास है. इस बिखराव से नई तकनीक के विकास में रुकावट आती है.

राज्य और केंद्र को निभानी होगी अहम भूमिका

प्रत्येक सैंडबॉक्स राज्य के कृषि विभाग के अंतर्गत बनेगा और इसमें आईसीएआर, नाबार्ड, और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों की भागीदारी होगी. इन सबकी निगरानी कृषि मंत्रालय और नीति आयोग की सह-अध्यक्षता में बनी राष्ट्रीय संचालन समिति करेगी. एसोचैम ने FAIR सिद्धांतों पर आधारित एक साझा एग्रीकल्चर डेटा कॉमन्स बनाने की सिफारिश की है, जिससे डेटा खोजने योग्य, सुलभ और सुरक्षित हो.

तेलंगाना का उदाहरण और सुझाए गए उपाय

एसोचैम ने सुझाव दिया है कि हर राज्य में एग्रीटेक सैंडबॉक्स बने. यानी ऐसे परीक्षण स्थल जहां नई तकनीक को असली खेतों की परिस्थितियों में आजमाया जा सके. यह प्लेटफॉर्म सरकार, स्टार्टअप, और शोध संस्थानों को एक साथ लाकर तकनीक को जमीन पर लागू करने से पहले परखने में मदद करेंगे. वहीं, रिपोर्ट में तेलंगाना के एग्रीकल्चर डेटा एक्सचेंज (ADEX) को एक अच्छे मॉडल के रूप में बताया गया है, जहां सुरक्षित और मानक आधारित डेटा साझाकरण किया जाता है.

कृषि स्टार्टअप्स को दिशा बदलने की जरूरत

रिपोर्ट कहती है कि स्टार्टअप्स को सिर्फ उत्पाद बेचने के बजाय किसानों की जरूरतों और आर्थिक क्षमता के अनुसार समाधान देने पर ध्यान देना चाहिए. कम लागत वाली तकनीक के लिए सीधी बिक्री का मॉडल, जबकि महंगी तकनीक के लिए साझा स्वामित्व मॉडल अपनाने की सिफारिश की गई है.

सरकार को क्या करना चाहिए

रिपोर्ट में कहा गया है कि नए वित्तीय साधनों जैसे रिजल्ट बेस्ड पेमेंट, फसल चक्र पर आधारित ऋण, कम्यूनिटी आधारित वितरण प्रणाली को अपनाया जाना चाहिए, ताकि किसान तकनीक का उपयोग कर सकें. साथ ही सरकार को एग्रीश्योर फंड, कर प्रोत्साहन, कोल्ड चेन, भंडारण और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क जैसे ढांचों को मजबूत करने पर जोर देना चाहिए.

किसानों की डिजिटल साक्षरता जरूरी

रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों और एफपीओ (FPOs) को डिजिटल ज्ञान देना और एआई आधारित सलाहकारी उपकरणों का प्रशिक्षण देना बहुत जरूरी है, ताकि वे तकनीक का सही इस्तेमाल कर सकें.

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Published: 12 Nov, 2025 | 06:23 PM

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