कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ताओं में किसानों के हितों की रक्षा करना सरकार की पहली प्राथमिकता होगी. उन्होंने कहा कि हम आंख मूंदकर कोई फैसला नहीं लेंगे. हम पहले यह देखेंगे कि हमें क्या फायदा और क्या नुकसान होगा. उसी के आधार पर कोई समझौता किया जाएगा.
न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में कृषि मंत्री ने कहा कि हमारे लिए किसानों की भलाई पहली प्राथमिकता है. यह बयान उस सवाल के जवाब में आया, जिसमें पूछा गया था कि अमेरिका के कृषि और बागवानी उत्पादों को भारतीय बाजार में अधिक पहुंच देने के दबाव में भारत अपने किसानों की सुरक्षा कैसे करेगा. मंत्री ने कहा कि भारत-अमेरिका के बीच बातचीत जारी है और पहले चरण का समझौता सितंबर-अक्टूबर 2025 तक होने की संभावना है.
भारत ने अमेरिका को 5.75 अरब डॉलर का निर्यात किया
उन्होंने दोहराया कि हम दो देशों की बात कर रहे हैं, तो हमें कुल व्यापार को ध्यान में रखना होगा, लेकिन किसानों के हितों से कोई समझौता नहीं होगा. नीति आयोग की एक रिपोर्ट “Promoting India-US Agricultural Trade under the new US Trade Regime” के अनुसार, 2024 तक के तीन वर्षों में अमेरिका ने भारत को करीब 2.22 अरब डॉलर के कृषि और संबंधित उत्पाद निर्यात किए, जबकि इसी अवधि में भारत ने अमेरिका को लगभग 5.75 अरब डॉलर के कृषि उत्पाद निर्यात किए.
भारत इन कृषि उत्पादों का करता है निर्यात
भारत से अमेरिका को जाने वाले मुख्य उत्पादों में जमे हुए झींगे (फ्रोजन श्रिम्प), बासमती चावल, मसाले, प्रोसेस्ड अनाज और अन्य वैल्यू-ऐडेड प्रोडक्ट्स शामिल हैं. जबकि, अमेरिका चाहता है कि वह भारत को मक्का (कॉर्न), सोयाबीन और पशु चारा (एनिमल फीड) जैसे कृषि उत्पाद ज्यादा मात्रा में निर्यात कर सके. लेकिन भारत में उच्च टैरिफ (शुल्क) इसकी बड़ी रुकावट है. खासकर कृषि क्षेत्र में ये टैक्स औसतन 39 फीसदी से 50 फीसदी तक पहुंचते हैं.
इसी संदर्भ में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच कृषि व्यापार को लेकर बातचीत जारी है, लेकिन भारत अपने किसानों के हितों से कोई समझौता नहीं करेगा. अमेरिका भारत से अपने कृषि उत्पादों पर टैक्स कम करने और बेहतर बाजार पहुंच की मांग कर रहा है.
किसानों की आजीविका पर कोई खतरा न आए
कृषि मंत्री ने कहा कि भारत अपने कृषि और डेयरी बाजार को पूरी तरह खोलने को लेकर सतर्क है. इसकी वजह है ग्रामीण समुदायों में संभावित विरोध और यह चिंता कि घरेलू उत्पादक वैश्विक बाजार की कीमतों में उतार-चढ़ाव से प्रभावित हो सकते हैं. सरकार का मानना है कि किसानों और स्थानीय उद्योगों की सुरक्षा जरूरी है, ताकि वे अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में टिक सकें और उनकी आजीविका पर कोई खतरा न आए. इसलिए किसी भी व्यापार समझौते में कृषि क्षेत्र को लेकर सावधानी से कदम उठाए जा रहे हैं.