सरकार के इस फैसले से घट सकता है तिलहन का रकबा, किसानों पर पड़ेगा सीधा असर

सरकार ने 30 मई को कच्चे खाद्य तेलों जैसे पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर प्रभावी आयात शुल्क को 27.5 फीसदी से घटाकर 16.5 फीसदी कर दिया, जो 31 मई से लागू हो गया.

वेंकटेश कुमार
नोएडा | Updated On: 4 Jun, 2025 | 02:26 PM

सरकार द्वारा पिछले हफ्ते कच्चे खाद्य तेलों पर आयात शुल्क (इम्पोर्ट ड्यूटी) कम करने के फैसले के बाद आशंका जताई जा रही है कि इस बार खरीफ सीजन में तिलहन की खेती घट सकती है, जिससे उत्पादन पर असर पड़ सकता है. हालांकि, कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस फैसले का बचाव किया है, लेकिन कई विशेषज्ञ और किसान नेता इसके समय को लेकर सवाल उठा रहे हैं.

एक पूर्व कृषि सचिव ने कहा कि राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन शुरू होने के बाद पहले सीजन में सरसों की बुवाई घटी और उत्पादन कम हुआ. अब दूसरे सीजन में फिर से ड्यूटी घटा दी गई है, जिससे पहले से ही कीमतें गिरने लगी हैं. जब धान और मक्का जैसी फसलें बेहतर मुनाफा दे रही हैं, तो किसान तिलहन क्यों बोएंगे?

मक्का पर 30,000 रुपये से ज्यादा का मुनाफा

बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 से 2023-24 के बीच पिछले तीन वर्षों में धान और मक्का की खेती पर प्रति हेक्टेयर औसतन 30,000 रुपये से ज्यादा का मुनाफा मिला. वहीं, सोयाबीन पर 9,749 रुपये प्रति हेक्टेयर, सूरजमुखी पर 13,917 रुपये प्रति हेक्टेयर, तिल पर 13,576 रुपये प्रति हेक्टेयर और रामतिल (नाइजरसीड) पर सिर्फ 1,474 रुपये हेक्टेयर का लाभ मिला. केवल मूंगफली (ग्राउंडनट) को छोड़कर बाकी सभी तिलहन फसलों में मुनाफा कम रहा.

किसान कर सकते हैं धान- मक्का की तरफ रूख

रिपोर्ट में कहा गया है कि रामतिल (नाइजरसीड), तिल (सेसमम), सूरजमुखी और सोयाबीन से होने वाली कुल उपज मूल्य (GVO) मूंगफली की तुलना में काफी कम है, क्योंकि इन फसलों की पैदावार भी कम होती है. हाल ही में कृषि मंत्री ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों से कहा कि वे सोयाबीन की पैदावार बढ़ाने के उपायों पर गंभीरता से काम करें. उन्होंने चिंता जताई कि अगर सोयाबीन की उत्पादकता नहीं बढ़ी, तो किसान इसकी जगह धान और मक्का जैसी फसलों की ओर रुख कर सकते हैं.

रिफाइंड तेलों पर ड्यूटी 35.75 फीसदी

सरकार ने 30 मई को कच्चे खाद्य तेलों जैसे पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर प्रभावी आयात शुल्क को 27.5 फीसदी से घटाकर 16.5 फीसदी कर दिया, जो 31 मई से लागू हो गया. इंडस्ट्री लंबे समय से कच्चे और रिफाइंड तेलों के बीच कम से कम 20 फीसदी का शुल्क अंतर चाह रही थी. ड्यूटी कट के बाद अब यह अंतर 19.25 फीसदी रह गया है, क्योंकि रिफाइंड तेलों पर ड्यूटी 35.75 फीसदी पर ही बरकरार है. उद्योग ने इस फैसले का स्वागत किया है.

महंगाई को देखते हुए सरकार ने लिया ये फैसला

हालांकि, ऐसा माना जा रहा है कि सरकार ने यह फैसला महंगाई को देखते हुए किया है. सरकार ने रिफाइंड तेल पर ड्यूटी बढ़ाने के बजाय कच्चे तेलों पर ड्यूटी घटाना बेहतर समझा, ताकि खाद्य तेलों की कीमतें नियंत्रित रह सकें. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल 2025 में तेल और वसा (Oil and Fat) की खुदरा महंगाई दर 17.42 फीसदी रही, जबकि पिछले साल इसी समय यह -6.71 फीसदी थी. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में इसका वेटेज 3.56 है.

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Published: 4 Jun, 2025 | 01:51 PM