अब सस्ती दालें नहीं बिगाड़ेंगी किसानों का खेल, सीएसीपी ने की ये बड़ी मांग

आयोग का कहना है कि अगर देश को गेहूं-धान जैसी एक जैसी फसलों पर निर्भरता कम करनी है तो दलहन और तिलहन फसलों का रकबा बढ़ाना होगा. इससे न केवल खेती का संतुलन बनेगा, बल्कि पानी और मिट्टी की बचत भी होगी.

नई दिल्ली | Published: 29 May, 2025 | 09:06 AM

भारत में दालों की मांग लगातार बढ़ रही है, लेकिन उनकी पूर्ति के लिए हमें बड़ी मात्रा में विदेशों से दालें मंगवानी पड़ती हैं. इससे एक बड़ी समस्या ये होती है कि सस्ती आयातित दालें भारतीय किसानों को नुकसान पहुंचाती हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए, कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) ने कुछ अहम सिफारिशें की हैं, जिनमें सबसे बड़ी बात यह है कि पीली मटर के आयात पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए.

किसानों को बेहतर दाम देने के लिए बड़ा कदम

CACP का मानना है कि अगर किसानों को उनके उत्पाद का सही दाम देना है तो घरेलू बाजार को आयात से बचाना होगा. इसलिए आयोग ने अरहर, मसूर और उड़द जैसी दालों पर आयात शुल्क बढ़ाने की सिफारिश भी की है. इससे भारतीय किसानों को उनकी मेहनत का बेहतर मूल्य मिल सकेगा.

सरकार ने एमएसपी बढ़ाने की सिफारिश मानी

CACP ने खरीफ सीजन 2025-26 के लिए कई फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में 1% से लेकर 13.9% तक बढ़ोतरी की सिफारिश की थी, जिसे केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है. इससे किसानों को और अधिक लाभ मिलने की उम्मीद है.

बिना शुल्क के आयात ने बिगाड़ा दालों का संतुलन

बीते सालों में सरकार ने पीली मटर समेत कई दालों को शुल्क मुक्त आयात की छूट दी थी. दिसंबर 2023 से अप्रैल 2025 तक भारत ने 33 लाख टन से अधिक पीली मटर आयात की है. इसका असर ये हुआ कि घरेलू बाजार में अन्य दालों की मांग घट गई और किसानों को नुकसान उठाना पड़ा.

क्यों है पीली मटर पर इतना बवाल?

पीली मटर दिखने में चना दाल जैसी होती है, लेकिन काफी सस्ती होती है. जब भारी मात्रा में यह मटर बाजार में आती है, तो दूसरी दालों की कीमत गिर जाती है. आयोग और व्यापार संगठनों दोनों का मानना है कि इसका आयात सीमित होना चाहिए.

आत्मनिर्भरता के लिए रणनीति जरूरी

CACP ने यह भी कहा है कि भारत को अपनी जरूरत के दालों और खाद्य तेलों के लिए आत्मनिर्भर बनना होगा. इसके लिए किसानों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए, बेहतर दाम, आधुनिक तकनीक और बाजार तक पहुंच के जरिए.

विविधता लाओ, खेती बचाओ

आयोग का कहना है कि अगर देश को गेहूं-धान जैसी एक जैसी फसलों पर निर्भरता कम करनी है तो दलहन और तिलहन फसलों का रकबा बढ़ाना होगा. इससे न केवल खेती का संतुलन बनेगा, बल्कि पानी और मिट्टी की बचत भी होगी.