भारतीय बाजारों में इस बार अंडों के दामों ने रिकॉर्ड स्तर पर कोफ्त दिखाई है. पिछले दो हफ्तों में महज 5 रुपये में बिकने वाले अंडे अब 4 रुपये से भी नीचे उतर गए हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि प्रमुख अंडा उत्पादक राज्यों के बीच दामों की “प्राइस वार” शुरू हो गई है, वहीं श्रावण (तमिलनाडु में ‘आदि’) के व्रत-उपवास के चलते घरेलू मांग भी सुस्त पड़ी है. निर्यात बाजार में भी मंहगे समर सीजन की मार पड़ी है, जिससे भारत से बाहर भेजे जाने वाले अंडों की खपत पिछले महीने से 20-30 प्रतिशत तक गिर गई है. तो चलिए जानते हैं, क्यों देश में कम हो रहे हैं अंड़ों के दाम.
उत्पादक राज्यों में सस्ते दामों की होड़
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, पश्चिम बंगाल, उत्तर-पूर्वी राज्यों और दक्षिण के कई हिस्सों में व्यापारी अब हरियाणा के अंडे 4–5 पैसे सस्ते दाम पर ला रहे हैं, यह दावा करके कि उन्हें उत्तरी बाजार से सस्ता माल मिल रहा है. इससे स्थानीय उत्पादक बेचैनी में आकर कीमतें घटाने पर मजबूर हो रहे हैं. छोटे खिलाड़ी कम ट्रक भेजते हुए खुद को बचा लेते हैं, लेकिन बड़ी कंपनियां 120–130 ट्रकों का सरोकार रखने के कारण भारी बोझ झेल रही हैं.
श्रावण में घटती घरेलू मांग
श्रावण माह में देशभर में कई तीर्थयात्रा वाले व्रत तथा पूजा-अर्चना के मौके आते हैं, जिनमें लोग मांसाहार व अंडे का परहेज करते हैं. खासकर महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश से लेकर केरल तक अंडा और चिकन की खपत भारी रूप से घट जाती है. बेंगलुरु, हैदराबाद जैसे बड़े शहरों में अंडे की कीमतें इस महीने की शुरुआत में 620 रुपये से गिरकर अब 465 रुपये प्रति सैकड़ा रह गई हैं.
निर्यात में समर सीजन का असर
मध्य-पूर्व के देशों में गर्मी का सीजन शुरू होने से वहां के खरीदारों ने पहले जैसे ऑर्डर नहीं दिए. तामिळनाडु के नामक्कल जोन के नेशनल एग कोऑर्डिनेशन कमेटी (NECC) अध्यक्ष के अनुसार, पिछले महीने की तुलना में निर्यात 20–30 प्रतिशत कम हुआ है. इससे अंडा उत्पादक अप्रत्याशित रूप से जूझ रहे हैं, क्योंकि उनका मुख्य ग्राहक क्षेत्र मौजूदा समय में कम मंहगा माल चाहता है.
कीमतों में आई गिरावट का ब्योरा
नेशनल एग कोऑर्डिनेशन कमेटी के डेटा के मुताबिक, नामक्कल में 1 जुलाई को 5.75 रुपये प्रति अंडे का रेट था, जो 29 जुलाई तक गिरकर 4.20 रुपये पर आ गया. हैदराबाद में इसी बीच 6–7 रुपये प्रति अंडे वाली कीमत 4.40 रुपये पर आ बिकी. छोटे पैमाने पर बेचने वाले तो मुश्किल से 4 रुपये भी नहीं निकाल रहे.
भविष्य में सुधार की उम्मीद
उद्योग से जुड़े एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह हर साल का रुझान है और दशहरा तक मांग में धीरे-धीरे सुधार देखने को मिलेगा. पुरातीसी (तमिलनाडु में श्रावण के बाद आने वाला महीना) शुरू होते ही घरेलू बाजार में अंडों की खपत बढ़ने लगती है. अप्रैल से जून तक चिपके रहे गर्म मौसम के बाद मानसून ने भी मदद की थी, लेकिन अब फिर से मौसम के साथ बाजार डगमगा रहा है.
मांसाहारी बाजार पर कोई खास असर नहीं
अंडों के दामों में आई इस गिरावट का चिकन मांस पर फिलहाल कोई खास असर नहीं पड़ा है. तमिलनाडु में जमीनी स्तर पर चिकन की कीमतें अब भी 100 रुपये प्रति किलोग्राम के आस-पास टिके हुए हैं, जबकि आंध्र, कर्नाटक और तेलंगाना में यह 85–90 रुपये के बीच बनी हुई है. स्थानीय स्रोतों के मुताबिक, श्रावण के दौरान मांसाहारी उपभोक्ता अंडे तो छोड़ देते हैं, लेकिन चिकन की खपत पर अधिक प्रभाव नहीं होता.