CRISIL Report: पोल्ट्री सेक्टर में बूम, फिर भी किसानों और कंपनियों के मुनाफे पर संकट, जानिए वजह

भारत में पोल्ट्री कारोबार पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ा है. लोग अब पहले की तुलना में ज्यादा प्रोटीन वाला खाना पसंद कर रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में भी चिकन और अंडे की मांग तेजी से बढ़ी है. CRISIL की रिपोर्ट कहती है कि 2025-26 में पोल्ट्री उद्योग की कुल आय 4 से 6 फीसदी तक बढ़ सकती है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 11 Nov, 2025 | 02:14 PM

CRISIL Report: भारत का पोल्ट्री सेक्टर यानी मुर्गी पालन उद्योग आने वाले साल में 4 से 6 फीसदी तक बढ़ सकता है. लेकिन इस बढ़त के बावजूद कंपनियों की कमाई पर दबाव रहेगा. रेटिंग एजेंसी CRISIL की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश में चिकन और अंडे की बढ़ती मांग से उद्योग को फायदा तो होगा, लेकिन पहले छह महीनों में ब्रॉयलर (चिकन) की कीमतें गिरने से मुनाफा कम रहेगा.

पोल्ट्री उद्योग में सुधार के संकेत

भारत में पोल्ट्री कारोबार पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ा है. लोग अब पहले की तुलना में ज्यादा प्रोटीन वाला खाना पसंद कर रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में भी चिकन और अंडे की मांग तेजी से बढ़ी है. CRISIL की रिपोर्ट कहती है कि 2025-26 में पोल्ट्री उद्योग की कुल आय 4 से 6 फीसदी तक बढ़ सकती है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि इस साल की शुरुआत में ब्रॉयलर की थोक कीमतें लगभग 20 फीसदी तक गिर गई थीं. इसका कारण था गर्मी का मौसम छोटा पड़ जाना और बारिश जल्दी शुरू होना. इससे मुर्गियों का वजन बढ़ गया और बाजार में सप्लाई ज्यादा हो गई, जबकि मांग उतनी नहीं बढ़ी.

हालांकि, त्योहारी सीजन के साथ कीमतों में अब धीरे-धीरे सुधार दिख रहा है. लेकिन पूरे साल के दौरान औसत कीमतें पिछले साल से 4-6 फीसदी कम रह सकती हैं.

अंडे का कारोबार चमक रहा है

जहां चिकन के दाम घटे हैं, वहीं अंडे का कारोबार लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में एक व्यक्ति साल में औसतन 102 अंडे खाता है, जबकि दुनिया का औसत 218 अंडे है. यानी अंडे की खपत भारत में अभी बहुत बढ़ सकती है.

रिपोर्ट बताती है कि अंडा उद्योग में इस साल 7-9 फीसदी तक की वृद्धि की उम्मीद है. कुल मिलाकर देश में करीब 15,750 करोड़ अंडे का उत्पादन हो सकता है. साथ ही अंडे की कीमतों में भी 2-4 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिल रही है.

चारे की कीमतों से राहत

मुर्गी पालन में सबसे ज्यादा खर्च चारे (Feed) पर आता है. कुल लागत का करीब 60 से 65 फीसदी हिस्सा चारे में ही लगता है. इसमें सोया केक और मक्का (Maize) का इस्तेमाल होता है.

इस साल सोया की पैदावार अच्छी होने से इसकी कीमत 35-37  रुपये प्रति किलो तक रह सकती है. वहीं, मक्का की कीमत भी 24-25 रुपये प्रति किलो के बीच रहने की उम्मीद है.

CRISIL के अधिकारी ऋषि हरी का कहना है कि, “फीड की कीमतें स्थिर रहने से कंपनियों को खर्च नियंत्रण में रखने और इन्वेंट्री प्रबंधन में आसानी होगी.”

मुनाफे में गिरावट, लेकिन उद्योग मजबूत

पहली छमाही में चिकन की कीमतें गिरने से कंपनियों का मुनाफा घटा है. रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल लाभ मार्जिन (Operating Margin) में 80 से 100 पॉइंट्स की गिरावट हो सकती है. हालांकि, उद्योग की वित्तीय स्थिति स्थिर और मजबूत बनी रहेगी क्योंकि कंपनियों पर कर्ज बहुत ज्यादा नहीं है.

औसतन इंटरेस्ट कवरेज रेशियो 3.0 से 3.2 गुना और लेवरेज रेशियो 1.3 गुना के करीब रहेगा, जो दर्शाता है कि कंपनियां अपने खर्च और देनदारियों को संभालने में सक्षम हैं.

भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियां

भारत का पोल्ट्री उद्योग अब सिर्फ मुनाफे का जरिया नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पोषण सुरक्षा का अहम हिस्सा बन चुका है.
हालांकि, आने वाले महीनों में अनियमित मौसम, चारे की कीमतों में उतार-चढ़ाव और बर्ड फ्लू जैसी बीमारियों की वजह से कुछ चुनौतियां बनी रहेंगी.

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सरकार निर्यात नीति स्थिर रखे और किसानों के लिए MSP जैसी सुरक्षा प्रणाली लागू करे, तो पोल्ट्री उद्योग भारत के ग्रामीण विकास का बड़ा स्तंभ बन सकता है.

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