Indian coffee: भारत की कॉफी दुनिया भर में अपने गहरे स्वाद और बेहतर गुणवत्ता के लिए जानी जाती है. लेकिन अब भारतीय कॉफी, खासकर रोबस्टा किस्म, को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है. युगांडा और इथियोपिया जैसे अफ्रीकी देश तेजी से भारतीय कॉफी के पारंपरिक बाजारों में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं.
भारतीय कॉफी की ऊंची कीमतें बनी परेशानी
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, पिछले कुछ महीनों में भारतीय रोबस्टा पार्चमेंट एबी (Robusta Parchment AB) की कीमतों में तेज उछाल आया है. इस समय यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में LIFFE (London International Financial Futures Exchange) दरों से 1,200 से 1,300 डॉलर प्रति टन अधिक है. जनवरी 2025 में यही अंतर 800-900 डॉलर प्रति टन के आसपास था.
इसी तरह, रोबस्टा चेरी एबी (Robusta Cherry AB) की कीमतें भी काफी बढ़ी हैं. जहां साल की शुरुआत में इनका अंतर 200-250 डॉलर प्रति टन था, वहीं अब यह 750-850 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गया है. कीमतों में इस तेजी ने भारतीय कॉफी को अन्य देशों के मुकाबले महंगा बना दिया है.
युगांडा और इथियोपिया ने बढ़ाई टक्कर
कॉफी एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रमेश राजाह का कहना है कि भारत की ऊंची कीमतों का फायदा अब अन्य देश उठा रहे हैं. यूरोप के बाजार में युगांडा सस्ती कॉफी की पेशकश कर रहा है, जिससे भारतीय निर्यातकों की बिक्री पर असर पड़ रहा है. वहीं, मध्य पूर्व (Middle East) में इथियोपिया तेजी से अपनी कॉफी को प्रमोट कर रहा है और भारतीय कॉफी को पीछे धकेलने की कोशिश में है.
राजाह बताते हैं, “हम हमेशा अपनी कॉफी को प्रीमियम उत्पाद के रूप में बेचते हैं क्योंकि इसकी गुणवत्ता बेहतरीन होती है. लेकिन अब जब दाम बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं, तो कई खरीदार अन्य देशों की कॉफी आजमाने लगे हैं. युगांडा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.”
पहले भारतीय और युगांडाई कॉफी के दामों में 100-200 डॉलर प्रति टन का ही फर्क होता था, लेकिन अब यह अंतर 300-400 डॉलर प्रति टन तक बढ़ गया है. खरीदार पूरी तरह से भारतीय कॉफी से मुंह नहीं मोड़ रहे, लेकिन वे इसकी खरीद मात्रा घटा रहे हैं और सस्ती युगांडाई कॉफी की ओर झुकाव दिखा रहे हैं.
यूरोप बना मुख्य संघर्ष का मैदान
भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कॉफी निर्यातक देश है. कुल निर्यात का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा यूरोप को भेजा जाता है. इटली और जर्मनी भारत की कॉफी के सबसे बड़े खरीदार हैं. लेकिन अब जब कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, यूरोपीय खरीदारों पर भी इसका असर पड़ रहा है.
पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक बाजार में कॉफी के दाम बढ़े हैं, क्योंकि ब्राजील और वियतनाम दोनों शीर्ष उत्पादक देश, जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पादन संकट का सामना कर रहे हैं. वहीं, अमेरिका और ब्राजील के बीच व्यापारिक शुल्क (tariffs) ने भी बाजार को अस्थिर कर दिया है.
कीमतों में तेजी, लेकिन चिंता भी बढ़ी
फिच सॉल्यूशन्स से जुड़ी शोध एजेंसी BMI ने हाल ही में अपनी कॉफी कीमतों की भविष्यवाणी को बढ़ा दिया है. रिपोर्ट के अनुसार, कॉफी की अनुमानित कीमत 3 डॉलर प्रति पाउंड से बढ़ाकर 3.40 डॉलर प्रति पाउंड कर दी गई है.
BMI का मानना है कि यह उछाल अमेरिका द्वारा ब्राजील पर लगाए गए 50 प्रतिशत शुल्क के कारण हुआ है. हालांकि, एजेंसी का कहना है कि यदि दोनों देशों के बीच समझौता होता है, तो कीमतों में फिर गिरावट आ सकती है.
BMI ने यह भी कहा है कि वर्तमान बाजार स्थिति बहुत अस्थिर है. आने वाले महीनों में वियतनाम की फसल की प्रगति और ब्राजील के मौसम पर नजर रहेगी, क्योंकि यही आने वाले सीजन की कीमतों का रुख तय करेंगे.