US टैरिफ से बेफिक्र हुए झींगा किसान, नए बाजारों में बढ़ा भारत का दबदबा

अमेरिकी टैरिफ की खबर आते ही आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे झींगा उत्पादक राज्यों में चिंता का माहौल बन गया था. वन्नामेई झींगा की कीमतों में कुछ समय के लिए गिरावट आई और किसानों को नुकसान का डर सताने लगा. लेकिन बाजार ने जल्द ही खुद को संभाल लिया.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 16 Dec, 2025 | 10:11 AM

US tariff: अमेरिका द्वारा भारतीय झींगा निर्यात पर टैरिफ बढ़ाने की घोषणा के बाद जिस तरह का डर और अनिश्चितता देखने को मिली थी, वह अब धीरे-धीरे खत्म होती नजर आ रही है. शुरुआत में किसानों और निर्यातकों को लगा कि इससे झींगा उद्योग को बड़ा झटका लगेगा, लेकिन कुछ ही महीनों में हालात बदल गए. आज स्थिति यह है कि झींगा किसान पहले से ज्यादा आत्मविश्वास में हैं और उद्योग नए वैश्विक बाजारों में मजबूती से पैर पसार रहा है. खास बात यह है कि किसानों ने हालात के हिसाब से अपनी रणनीति बदली और इसी ने संकट को अवसर में बदल दिया.

शुरुआती चिंता, फिर बदली तस्वीर

अमेरिकी टैरिफ की खबर आते ही आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे झींगा उत्पादक राज्यों में चिंता का माहौल बन गया था. वन्नामेई झींगा की कीमतों में कुछ समय के लिए गिरावट आई और किसानों को नुकसान का डर सताने लगा. लेकिन बाजार ने जल्द ही खुद को संभाल लिया. निर्यातकों और खरीदारों के बीच नई शर्तों पर सौदे हुए और कीमतें धीरे-धीरे स्थिर होने लगीं. इससे किसानों का भरोसा भी लौटने लगा.

टाइगर प्रॉन की ओर बढ़ा रुझान

मीडिया रिपोर्टस् के अनुसार, आंध्र प्रदेश के कई इलाकों में किसानों ने वन्नामेई झींगा के साथ-साथ टाइगर प्रॉन की खेती पर जोर देना शुरू कर दिया. टाइगर प्रॉन की अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग पहले से ही स्थिर रही है और यह टैरिफ के असर से भी काफी हद तक बचा रहा. प्रकाशम और नेल्लोर जैसे जिलों में बड़ी संख्या में किसान अब इस किस्म को अपना रहे हैं. किसानों का कहना है कि टाइगर प्रॉन की कीमतें संतुलित हैं और लागत निकालने के बाद मुनाफा भी ठीक-ठाक मिल रहा है.

खरीदारों ने उठाया अतिरिक्त बोझ

झींगा उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि भारतीय झींगा की गुणवत्ता और प्रोसेसिंग क्षमता इतनी मजबूत है कि विदेशी खरीदार इसे छोड़ नहीं सकते. अमेरिका के कई आयातकों ने अतिरिक्त टैरिफ का एक बड़ा हिस्सा खुद वहन किया, ताकि सप्लाई बनी रहे. इससे किसानों और निर्यातकों पर सीधा दबाव कम पड़ा. यही वजह रही कि टैरिफ के बावजूद झींगा की कीमतों में बहुत ज्यादा गिरावट नहीं आई.

नए बाजारों में बढ़ी पहुंच

अमेरिका पर निर्भरता कम करना इस पूरे घटनाक्रम का सबसे बड़ा सबक साबित हुआ. भारतीय निर्यातकों ने यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, रूस, दक्षिण कोरिया, चीन और वियतनाम जैसे बाजारों में अपनी मौजूदगी मजबूत की. इन देशों में भारतीय झींगा की मांग लगातार बढ़ रही है. खासकर यूरोप में गुणवत्ता और फूड सेफ्टी मानकों पर खरा उतरने वाले भारतीय झींगे को अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. इससे निर्यात का संतुलन बना और अमेरिका में आई थोड़ी गिरावट की भरपाई हो गई.

पील्ड और वैल्यू-एडेड झींगा बनी ताकत

भारतीय झींगा उद्योग की एक बड़ी ताकत उसका वैल्यू-एडेड सेगमेंट है. पील्ड, डिवेन्ड और रेडी-टू-कुक झींगे की वैश्विक मांग लगातार बढ़ रही है. भारत इस सेगमेंट में पहले से ही मजबूत स्थिति में है. अमेरिका समेत कई देशों में प्रोसेस्ड झींगे को तरजीह दी जाती है और यही वजह है कि भारतीय सप्लायर्स को बाजार में जगह मिलती रही.

निर्यात के आंकड़े दे रहे भरोसा

हाल के महीनों के आंकड़े भी झींगा उद्योग के लिए राहत की खबर लेकर आए हैं. समुद्री उत्पादों के निर्यात मूल्य में दो अंकों की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. यूरोप और एशियाई देशों को निर्यात बढ़ने से कुल निर्यात पर सकारात्मक असर पड़ा है. इससे यह साफ हो गया है कि भारतीय झींगा उद्योग सिर्फ एक बाजार पर निर्भर नहीं है.

भविष्य को लेकर बढ़ा आत्मविश्वास

कुल मिलाकर अमेरिकी टैरिफ का डर अब पीछे छूट चुका है. किसानों ने फसल चयन में समझदारी दिखाई, निर्यातकों ने बाजारों का विस्तार किया और उद्योग ने अपनी मजबूती साबित की. विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में भारत झींगा उत्पादन और निर्यात के क्षेत्र में और आगे बढ़ेगा. वैश्विक मांग, बेहतर तकनीक और बदलती रणनीतियां भारतीय झींगा उद्योग को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के संकेत दे रही हैं.

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