अमेरिकी टैरिफ का दिखने लगा असर, भारतीय झींगा उद्योग को बड़ा झटका..सरकार से की ये मांग

भारत में कुल मक्का उत्पादन 3.6 से 3.7 करोड़ टन के आसपास है. वहीं, इथेनॉल के E20 प्रोग्राम के लिए 90 से 100 लाख टन मक्का की जरूरत होती है. इसके अलावा खाने और स्टार्च इंडस्ट्री के लिए भी मक्का इस्तेमाल होता है.

Kisan India
नोएडा | Published: 7 Sep, 2025 | 09:00 AM

अमेरिका द्वारा भारत के झींगा निर्यात पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने से भारतीय झींगा उद्योग को बड़ा झटका लगा है. इसका असर अब झींगा पालन करने वाले किसानों की फीड खपत पर भी पड़ रहा है, जिससे फीड बनाने वाली कंपनियों को भी नुकसान झेलना पड़ सकता है. कंपाउंड लाइवस्टॉक फीड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (CLFMA) के अध्यक्ष दिव्य कुमार गुलाटी ने केंद्र सरकार से अपील की है कि वह यूनाइटेड किंगडम (UK) जैसे देशों के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स (FTAs) पर ध्यान दे, ताकि इस संकट से इंडस्ट्री को बाहर निकाला जा सके.

बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, दिव्य कुमार गुलाटी का कहना है कि मवेशी फीड सेक्टर हर साल 6-8 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. लेकिन इस ग्रोथ के साथ कच्चे माल की मांग भी तेजी से बढ़ रही है. सबसे बड़ी चिंता ये है कि अब मक्का का इस्तेमाल इथेनॉल बनाने में भी होने लगा है, जिससे फीड इंडस्ट्री को मकई की कमी का सामना करना पड़ सकता है. फिलहाल भारत का पशु आहार बाजार 16 अरब डॉलर का हो गया है, जो 2019 में 11.5 अरब डॉलर था.

पोल्ट्री फीड में मक्के की हिस्सेदारी

इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने 52 लाख टन चावल को इथेनॉल बनाने के लिए डायवर्ट किया है. हालांकि, CLFMA के अध्यक्ष दिव्य कुमार गुलाटी का मानना है कि आने वाले 1-2 सालों में फिर भी कच्चे माल की कमी हो सकती है, क्योंकि इंडस्ट्री लगातार तेजी से बढ़ रही है और इस समस्या से निपटने के लिए अभी तक कोई ठोस योजना नहीं है. गुलाटी ने कहा कि पोल्ट्री फीड में मक्का (कॉर्न) का हिस्सा 50-55 फीसदी तक होता है. देश में फिलहाल 6 करोड़ टन पशु आहार बनता है, जिसमें से 4 करोड़ टन पोल्ट्री फीड होता है. इस फीड को तैयार करने के लिए करीब 2 से 2.2 करोड़ टन मक्का चाहिए.

मक्के का कुल उत्पादन 3.7 करोड़ टन

भारत में कुल मक्का उत्पादन 3.6 से 3.7 करोड़ टन के आसपास है. वहीं, इथेनॉल के E20 प्रोग्राम के लिए 90 से 100 लाख टन मक्का की जरूरत होती है. इसके अलावा खाने और स्टार्च इंडस्ट्री के लिए भी मक्का इस्तेमाल होता है. ऐसे में फीड बनाने के लिए मक्का बचता ही नहीं है. यही वजह है कि सरकार को इथेनॉल के लिए चावल डायवर्ट करना पड़ा.

दिव्य कुमार गुलाटी का कहना है कि हमने कभी झींगा के लिए घरेलू बाजार विकसित करने की कोशिश ही नहीं की, जैसे पोल्ट्री के लिए की थी. हम सिर्फ निर्यात पर निर्भर रहे. इसके उलट, पोल्ट्री इंडस्ट्री की बात करें तो देश में इसका 95 फीसदी हिस्सा लाइव मार्केट में बिकता है और 100 फीसदी खपत यहीं हो जाती है. हर साल 140 अरब अंडे भी भारत में ही खाए जाते हैं.

झींगा फीड की खपत

झींगा फीड की बात करें तो इसकी खपत करीब 20 लाख टन है, लेकिन इसकी कीमत पोल्ट्री फीड से 2 से 3 गुना ज्यादा होती है. इससे इंडस्ट्री पर आर्थिक दबाव और बढ़ गया है. गुलाटी ने कहा कि हमने सरकार से अपील की है कि वो ज्यादा देशों के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) करे, जैसे UK के साथ किया गया है, ताकि झींगा निर्यात को नए बाजार मिल सकें और यह अंतर भर पाए.

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