कम ऑक्सीजन में भी जिंदा रहती हैं ये मछलियां, धान के साथ कर सकते हैं दोहरी कमाई

धान के खेत में कुछ खास मछलियां पालकर किसान कमा रहे हैं दोहरा मुनाफा. ये मछलियां कम ऑक्सीजन में भी जिंदा रह सकती हैं.

नोएडा | Updated On: 16 Jun, 2025 | 12:21 PM

खेती से कमाई बढ़ाने के लिए अब किसान पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़कर स्मार्ट फार्मिंग की ओर बढ़ रहे हैं. खासतौर पर धान की खेती के साथ मछली पालन यानी इंटीग्रेटेड फार्मिंग किसानों के लिए कमाई का नया जरिया बन रहा है. सबसे खास बात ये है कि इस तकनीक में कुछ ऐसी मछलियों का चयन करना होता है, जो कम ऑक्सीजन वाले पानी में भी आसानी से जिंदा रह सकें और तेजी से बढ़ें. इससे धान और मछली दोनों से किसानों को दोगुना मुनाफा होता है.

किस मछली का करें चुनाव

धान के खेतों में हर तरह की मछली नहीं पाली जा सकती. इसके लिए ऐसी मछलियों की जरूरत होती है जो कम ऑक्सीजन वाले पानी में भी बिना किसी परेशानी के रह सकें. भारत में धान-मछली खेती के लिए मगुर, कॉमन कार्प और सिल्वर कार्प जैसी मछलियां सबसे उपयुक्त मानी जाती हैं.

मगुर मछली, जिसे कतला फिश भी कहा जाता है, तेजी से बढ़ने वाली मछली है. यह कम ऑक्सीजन वाले पानी में भी आराम से जीवित रहती है और किसानों को जल्दी अच्छा उत्पादन देती है. वहीं कॉमन कार्प मछली भी इसी खासियत के कारण किसानों की पहली पसंद बन रही है. इसके अलावा सिल्वर कार्प मछली खेत में उगने वाले खरपतवारों को खाकर उनकी मात्रा को नियंत्रित करती है. इससे खेत साफ रहते हैं और मछली को भी पोषण मिलता है.

मछली पालन का सही घनत्व क्या हो

धान के खेतों में मछली डालने से पहले घनत्व का सही आकलन जरूरी है. खेत के आकार और पानी की मात्रा के अनुसार ही मछलियों को छोड़ा जाता है. आमतौर पर एक हेक्टेयर खेत में करीब 2 हजार से 3 हजार फिंगरलिंग मछलियां छोड़ी जा सकती हैं. इससे मछलियों को पर्याप्त जगह और ऑक्सीजन मिलती है, जिससे उनकी ग्रोथ बेहतर होती है.

स्थानीय स्तर पर लें विशेषज्ञों की सलाह

धान-मछली पालन करने से पहले किसान स्थानीय मत्स्य विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं. वहां के विशेषज्ञ स्थानीय जलवायु, मिट्टी और पानी की स्थिति के अनुसार सबसे उपयुक्त मछलियों की जानकारी देते हैं. इससे उत्पादन बढ़ाने में काफी मदद मिलती है.

कम लागत में ज्यादा फायदा

धान-मछली फार्मिंग की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें कोई अतिरिक्त बड़ी लागत नहीं आती. धान के साथ ही मछली भी पाली जाती है, जिससे एक ही खेत से दो फसलें मिलती हैं. इससे किसानों को हर सीजन में अतिरिक्त आमदनी का रास्ता खुल जाता है. अगर वैज्ञानिक तरीके से सही प्रबंधन किया जाए तो धान-मछली फार्मिंग आने वाले समय में किसानों के लिए बड़ा आर्थिक सहारा बन सकती है.

Published: 16 Jun, 2025 | 12:18 PM