भारतीय चावल पर अमेरिका का नया टैक्स प्लान, लेकिन भारत पर क्यों नहीं पड़ेगा खास असर?

वैश्विक बाजारों में भारतीय चावल की कीमत कई देशों के मुकाबले काफी कम है. खास तौर पर अमेरिका की तुलना में. यही कारण है कि अफ्रीका, मध्य-पूर्व और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में भारत का चावल अधिक बिक रहा है, जबकि अमेरिकी चावल पीछे रह गया है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 10 Dec, 2025 | 08:16 AM

US tariffs: दुनिया भर में चावल को लेकर बड़ी हलचल मची है. खबर है कि अमेरिका आने वाले हफ्तों में भारतीय चावल पर अतिरिक्त शुल्क (Additional Tariff) लगाने वाला है. सुनने में यह भारत के लिए खतरे की तरह लगता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इसका असर भारत के चावल निर्यात या किसानों पर बेहद मामूली ही पड़ेगा. तो फिर अमेरिका क्यों ऐसा कदम उठा रहा है? क्या यह सिर्फ व्यापार का मामला है या इसके पीछे और भी वजहें हैं? आइए इसे आसान भाषा और साफ उदाहरणों के साथ समझते हैं.

अमेरिका की परेशानी

वैश्विक बाजारों में भारतीय चावल की कीमत कई देशों के मुकाबले काफी कम है. खास तौर पर अमेरिका की तुलना में. यही कारण है कि अफ्रीका, मध्य-पूर्व और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों में भारत का चावल अधिक बिक रहा है, जबकि अमेरिकी चावल पीछे रह गया है.

अमेरिका हर साल लगभग 2.6 मिलियन टन चावल निर्यात करता है, लेकिन यह निर्यात मुख्य रूप से दक्षिण अमेरिकी देशों तक सीमित है. भारतीय चावल खासकर बासमती गुणवत्ता और कीमत दोनों के मामले में अधिक आकर्षक है. इससे अमेरिकी किसानों और निर्यातकों को सीधा नुकसान हो रहा है.

सब्सिडी का भारी बोझ

बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में चावल किसानों को पहले प्रति एकड़ 70 डॉलर की सब्सिडी मिलती थी. अब कीमतें गिरने की वजह से यह सब्सिडी बढ़कर 170 डॉलर प्रति एकड़ पहुंच सकती है. इससे अमेरिकी सरकार पर करीब 1.2 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त बोझ आएगा. किसान सरकार से मांग कर रहे हैं कि प्रति किसान 1,25,000 डॉलर की सीमा से ज्यादा सब्सिडी दी जाए. यानी अमेरिकी सरकार को एक तरफ किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है और दूसरी तरफ बाजार में भारत जैसे देश उसकी बिक्री घटा रहे हैं.

भारतीय चावल पर शुल्क क्यों लगाएगा अमेरिका?

विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका की दो प्रमुख वजहें हैं:

अमेरिकी चावल की कीमत ज्यादा है- अफ्रीकी और एशियाई देशों के मुकाबले अमेरिकी चावल महंगा है, इसलिए बाजार सीमित हो गया है.

अमेरिकी किसानों को घाटा हो रहा- वैश्विक दाम गिर रहे हैं और भारतीय चावल कई देशों में अमेरिकी चावल की मांग को बदल रहा है. इस राजनीतिक दबाव के चलते ट्रंप प्रशासन भारतीय चावल महंगा कर देना चाहता है ताकि उनकी घरेलू बिक्री बढ़ सके.

भारत पर असर क्यों नहीं पड़ेगा?

ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (AIREA) और इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स फेडरेशन (IREF) का सीधा कहना है कि अमेरिका का निर्णय भारत के चावल निर्यात को नुकसान नहीं पहुंचाएगा.

इसके कारण हैं:

  • अमेरिका भारत के गैर-बासमती चावल के लिए सिर्फ 24वां बड़ा बाजार है.
  • बासमती के लिए भी अमेरिका की हिस्सेदारी केवल 4.5 फीसदी है.
  • अमेरिका की मांग मुख्यतः भारतीय, पाकिस्तानी और एशियाई प्रवासी समुदायों से आती है.
  • बासमती का कोई विकल्प अमेरिकी बाजार में मौजूद नहीं है.

AIREA प्रमुख सतीश गोयल ने कहा शुल्क लगाने से भारतीय निर्यातकों पर नहीं, बल्कि अमेरिकी उपभोक्ताओं पर बोझ पड़ेगा.”

भारत का बासमती निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर

  • 2024–25 में भारत ने अमेरिका को 2.7 लाख टन बासमती चावल भेजा. कुल बासमती निर्यात 60.65 लाख टन रहा.
  • APEDA के अनुसार अप्रैलसितंबर 2025 में मात्रा  31.68 लाख टन रहा
  • मूल्य: 2.76 बिलियन डॉलर

स्पष्ट है कि भारतीय बासमती की मांग लगातार बढ़ रही है और अमेरिका का शुल्क इस पर कोई बड़ा फर्क नहीं डालेगा.

अमेरिका बासमती को क्यों नहीं बदल सकता?

IREF के उपाध्यक्ष देव गर्ग बताते हैं बासमती का सुगंध, लंबाई और पकने के बाद की बनावट अमेरिकी चावल से बिल्कुल अलग है.

अमेरिकी चावल “लाइक-फॉर-लाइक” विकल्प नहीं है. खासकर बिरयानी जैसे व्यंजनों के लिए बासमती अपरिहार्य है. इसलिए अमेरिकी उपभोक्ता अन्य चावल खरीदकर काम नहीं चला सकते.

क्या यह सिर्फ व्यापार नहीं, राजनीति भी है?

उद्योग सूत्रों का कहना है कि अमेरिका शुल्क को भारत पर राजनयिक दबाव बनाने के लिए भी उपयोग कर सकता है. साथ ही अमेरिका यह संदेश देना चाहता है कि एशियाई देश उसके किसानों के हितों को चोट पहुंचा रहे हैं.

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