कैक्टस की खेती कराएगी बंपर कमाई, वैज्ञानिकों ने किसानों को बताए खाद और चारा बनाने के तरीके

कम सिंचाई वाले और सूखे इलाके के किसानों को कैक्टस की खेती की ट्रेनिंग दी जा रही है. ग्रीन एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट के तहत इसकी खेती के फायदे और इस्तेमाल के तरीके किसानों को सिखाए गए हैं.

रिजवान नूर खान
नोएडा | Published: 26 Sep, 2025 | 06:21 PM

सूखाग्रस्त इलाकों और कम सिंचाई सुविधा वाले क्षेत्रों में किसानों को बिना कांटे वाले कैक्टस यानी नागफली की खेती करने की सलाह दी गई है. ग्रीन एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट के तहत मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में किसानों को कैक्टस की खेती की ट्रेनिंग दी गई और उन्हें इसके फायदे बताए गए. कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि किसानों को बेहद कम खर्च में कैक्टस की खेती से ज्यादा कमाई की जा सकती है. क्योंकि, कैक्टस का इस्तेमाल पशुचारा, बायोफ्यूल बनाने से लेकर कई तरह से किया जाता है और बाजार में इसकी खूब मांग बनी रहती है.

कैक्टस खेती सीखने अमलाहा पहुंचे किसान

किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग की ओर से खाद्य एवं कृषि संगठन की ग्रीन एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट के तहत श्योपुर जिले के किसानों का एक दल राज्य तकनीकी समन्वयक डॉ. नीलम बिसेन पवार, संचार अधिकारी मिली मिश्रा और पशुपालन विशेषज्ञ अमृतेश वशिष्ठ के साथ सीहोर स्थित आईसीएआरडीए केंद्र अमलाहा पहुंचा. यहां किसानों को कांटारहित कैक्टस की खेती और उसके विविध उपयोगों के बारे में जानकारी दी गई.

जून से नवंबर तक खेती का समय और सिंचाई की अवधि

प्रशिक्षण कार्यक्रम में डॉ. नेहा तिवारी वैज्ञानिक (ICARDA-India) ने बताया कि कैक्टस एक ऐसा पौधा है जो बेहद कम पानी में भी आसानी से उग जाता है और सूखी और बंजर भूमि में भी अच्छी तरह पनप सकता है. उन्होंने कहा कि आमतौर पर इसे जून से लेकर नवंबर तक बोया जा सकता है. इसकी रोपाई किसान कम उपजाऊ जमीनों पर कर सकते हैं. शुरुआत में इसकी फसल में किसानों को दो महीने दो बार पानी देना होता है. बाद में पानी देने की प्रक्रिया को कम कर दिया जाता है.

पशुओं के लिए पौष्टिक चारे में इस्तेमाल

कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि कांटारहित होने से यह पशुओं के लिए गर्मी और सूखे के समय हरे चारे का एक महत्वपूर्ण वैकल्पिक सोर्स बनता है. पशुओं को इसे काटकर चारा बनाकर खिलाया जाता है. इसमें कई सारे पौष्टिक तत्व के साथ पानी की अधिकता के चलते दुधारू पशुओं के लिए यह बेहद लाभकारी माना जाता है. इसके इस्तेमाल से पशुओं के चारे को रसीला और मीठा बनाने में मदद मिलती है.

किसानों को बायोगैस और खाद बनाने का तरीका भी बताया

कांटा रहित कैक्टस यानी नागफनी से बायोगैस भी बनाई जाती है और इसके जरिए फसलों के लिए उम्दा किस्म की घरेलू स्तर पर खाद भी बनाई जाती है. इसके लिए किसानों को ट्रेनिंग दी गई. किसानों को कैक्टस की पोषण संबंधी विशेषताओं और इसके लंबे समय तक के लाभों के बारे में भी जानकारी दी गई. इस दौरान किसानों ने खेतों में जाकर प्रत्यक्ष रूप से कांटारहित कैक्टस की विभिन्न किस्मों के पौधों को देखा और उसकी खेती की तकनीक को समझा.

खेती के साथ पशुपालन के लिए जरूरी है नागफनी

किसानों ने कहा कि यह खेती न केवल पशुपालन के लिए उपयोगी है बल्कि उनकी आय बढ़ाने में भी सहायक साबित हो सकती है. वर्तमान में  ग्रीन एजी परियोजना मध्य प्रदेश के श्योपुर और मुरैना जिलों में संचालित है. इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य जैव विविधता संरक्षण, जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और सतत भूमि प्रबंधन को भारतीय कृषि प्रणाली में एकीकृत करना है. इसके अंतर्गत किसानों को नई और पर्यावरण अनुकूल खेती की तकनीकें सिखाई जा रही हैं, जिनमें कैक्टस की खेती विशेष रूप से लाभकारी साबित हो सकती है.

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