रबी सीजन में करें अरंडी की खेती, कम खर्च में होगा ज्यादा मुनाफा

अरंडी की खेती में लागत और मुनाफे फसल सिंचाई पर निर्भर करता है. अरंडी में मौजूद औषधीय गुणों के कारण इसकी मांग बाजार में बनी रहती है. इसका तेल बहुत महंगा बिकता है.

अनामिका अस्थाना
नोएडा | Published: 24 Aug, 2025 | 08:49 PM

मॉनसून सीजन की शुरुआत होते ही किसान खरीफ फसलों की खेती की शुरुआत कर देते हैं. तिलहनी फसलें उनमें से एक हैं. लेकिन कुछ तिलहनी फसलें ऐसी भी हैं जिनकी खेती रबी सीजन में की जाती है. जैसे कि अरंडी. अरंडी जिसे कैस्टर (Castor) के नाम से जाना जाता है. अरंडी रबी सीजन में उगाई जाने वाली ऐसी फसल है जो कम खर्च और कम मेहनत में किसानों को बढ़िया मुनाफा दे सकती है. देश-विदेश में अरंडी के तेल की ज्यादा मांग के कारण अब किसान इसकी खेती बड़े पैमाने पर करने लगे हैं. बता दें कि इसका इस्तेमाल सिर्फ दवाइयों और पशु चिकित्सा में ही नहीं, बल्कि साबुन, पेंट, स्याही, क्रीम, प्लास्टिक और ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाने में भी होता है.

ऐसे करें खेत की तैयारी

अरंडी की खेती के लिए किसी भी तरह की मिट्टी का चुनाव कर सकते हैं, जिसका pH मान 6 होना चाहिए. इसके बीजों की बुवाई से पहले ध्यान रखना होगा कि कतार से कतार की दूरी 90 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए, जिसके लिए प्रति एकड़ लगभग 5 से 6 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. बीज को जमीन में 7 से 8 सेंटीमीटर से ज्यादा गहरा न बोएं, वरना अंकुरण ठीक से नहीं हो पाएगा. साथ ही, फसल को फंगस जैसी बीमारियों से बचाने के लिए बुवाई से पहले 3 ग्राम थाइरम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से मिलाकर बीजों का उपचार जरूर कर लें.

सही खाद का इस्तेमाल

अंरडी की फसल से अच्छी उपज लेने के लिए जरूरी है कि किसान खाद का सही इस्तेमाल ज़रूरी है. बता दें कि, एक एकड़ खेत के लिए लगभग 17 से 20  किलोग्राम नाइट्रोजन और 12 से 15  किलोग्राम फास्फोरस की जरूरत होती है. सिंचित खेती में फास्फोरस की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय दें. बची हुई आधी नाइट्रोजन की मात्रा दो महीने बाद सिंचाई के साथ दें. असिंचित खेती में नाइट्रोजन और फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई से पहले ही खेत में डाल दें. इस तरह से खेत को सही समय पर सही मात्रा में खाद और जरूरी पोषक तत्व मिल सकते हैं.

अरंडी के तेल के फायदे

अरंडी में मौजूद औषधीय गुणों के कारण इसकी मांग बाजार में बनी रहती है. इसका तेल बहुत महंगा बिकता है. अगर किसान अरंडी की खेती करते हैं, तो अच्छी कमाई कर सकते हैं. अरंडी का पौधा देखने में झाड़ी की तरह लगता है. इसके बीज से तेल निकाला जाता है. खास बात यह है कि अरंडी के तेल से कई तरह की औषधीय दवाइयां बनाई जाती हैं. साथ ही साबुन भी बनाया जाता है. वहीं, इसकी खली को जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

Castor Farming

औषधीय गुणों से भरपूर है अरंडी का तेल (Photo Credit- Canva)

कम लागत में होगा फायदा

अरंडी की खेती में लागत और मुनाफे फसल सिंचाई पर निर्भर करता है. बिना सिंचाई वाले इलाकों में प्रति एकड़ लागत लगभग 6 हजार से 8 हजार रुपये तक आती है, जिससे 7 से 8 क्विंटल तक पैदावार मिलती है. वहीं,  अगर सिंचाई वाले इलाकों की बात करें तो ये लागत बढ़कर 10 हजार से 12 हजार रुपये प्रति एकड़ हो जाती है, बता दें कि, लागत बढ़ने के साथ ही पैदावार भी बढ़कर 10 से 12 क्विंटल प्रति एकड़ तक पहुंच जाती है. अरंडी का बाजार भाव औसतन ₹60 से ₹70 प्रति किलो रहता है, तो लागत निकालकर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

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