धान की खेती करने वाले किसानों के लिए बरसात के मौसम में फसलों को रोगों से बचाना एक बड़ी चुनौती बन जाती है. इन्हीं रोगों में से एक है खैरा रोग, जो पौधों की पत्तियों को पीला कर देता है और धीरे-धीरे फसल को पूरी तरह बर्बाद कर सकता है. यह रोग मुख्य रूप से मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी, खासकर जिंक (Zinc) की कमी से होता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, समय पर पहचान और सही उपचार से इस रोग को रोका जा सकता है और फसल की उपज को बचाया जा सकता है.
धान की फसल को नुकसान पहुंचा रहा है खैरा रोग
धान की रोपाई का काम अब लगभग पूरा हो चुका है और किसान अब खरपतवार नियंत्रण और पोषण के लिए उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन इसी समय धान की फसल में एक गंभीर रोग का खतरा मंडरा रहा है-खैरा रोग. यह रोग पौधों को इस कदर प्रभावित करता है कि पूरी फसल बर्बाद हो सकती है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार समय पर इस रोग की पहचान और सही उपाय से ही फसल को बचाया जा सकता है.
कैसे पहचानें खैरा रोग के लक्षण?
खैरा रोग लगने पर धान के पौधों की पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे नजर आते हैं, जो बाद में भूरे रंग में बदल जाते हैं. पौधे की वृद्धि रुक जाती है, वह बौना रह जाता है और उसकी जड़ें भी कमजोर होकर भूरे रंग की हो जाती हैं. ऐसे पौधे समय से पहले सूखने लगते हैं और उनकी पैदावार बेहद कम हो जाती है.
मिट्टी में जिंक की कमी है रोग का मुख्य कारण
मीडियी रिपोर्ट के अनुसार, खैरा रोग का मुख्य कारण मिट्टी में जिंक की कमी है. जब खेतों में कैल्शियम या क्षारीयता (Alkalinity) अधिक होती है, तब जिंक की उपलब्धता घट जाती है. इसके अलावा, एक ही खेत में लगातार धान, मक्का और गन्ने जैसी हाई इंटेंसिटी फसलें बोने से भी मिट्टी में जिंक की कमी हो जाती है, जिससे खैरा रोग फैलने का खतरा बढ़ जाता है.
सलाह: किसानों को नियमित रूप से मिट्टी की जांच करानी चाहिए, ताकि उन्हें पता चले कि उनकी जमीन में कौन-कौन से पोषक तत्वों की कमी है.
- ऐसे करें बचाव- अपनाएं ये आसान उपाय.
- खेत की गहरी जुताई करें और 25 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाएं.
- 0.5 फीसदी जिंक सल्फेट + 0.2 प्रतिशत बुझा हुआ चूना पानी में घोलें और हर 10 दिन में 3 बार छिड़काव करें.
- अगर बुझा हुआ चूना नहीं हो तो उसकी जगह 2 फीसदी यूरिया का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.
इन उपायों से न केवल खैरा रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है, बल्कि फसल की उत्पादकता भी बढ़ेगी और किसान को नुकसान से बचाया जा सकेगा.