केंद्र सरकार ने दालों की खेती बढ़ाने और किसानों को सही दाम दिलाने के इरादे से दलहन मिशन चला रही है. बीते दिनों केंद्र ने दलहन-तिलहन फसलों के एमएसपी में भी बढ़ोत्तरी की है. लेकिन, मध्य प्रदेश में मूंग उपज की सरकारी खरीद शुरू नहीं होने से 1.50 लाख से अधिक किसानों को 4 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक का घाटा झेलना पड़ रहा है. किसान नेता राजेश धाकड़ ने कहा कि मध्य प्रदेश सरकार जुलाई 2025 से मूंग की सरकारी दाम पर खरीद शुरू करे. लेकिन, अभी तक किसानों के रजिस्ट्रेशन तक शुरू नहीं हुए हैं. जबकि, हरदा जिले समेत अन्य इलाकों में मूंग की कटाई अंतिम चरण में पहुंच रही है. किसान निजी व्यापारियों को 3 से 4 हजार रुपये प्रति क्विंटल के घाटे पर फसल बेचने को मजबूर हो रहे हैं. उन्होंने केंद्र के दलहन मिशन पर सवाल उठाया. उन्होंने फसलों में इस्तेमाल होने वाली दवाओं पर रोक लगाने के लिए निर्माता कंपनियों पर कार्रवाई की मांग भी राज्य सरकार से की है.
सबसे ज्यादा मूंग उगाता है मध्य प्रदेश
देश में मूंग फसल की खेती का रकबा लगभग 35 लाख हेक्टेयर है. इसमें से लगभग 11 लाख हेक्टेयर में अकेले मध्य प्रदेश में बुवाई की जाती है. मध्य प्रदेश मूंग का बड़ा उत्पादक है. राज्य के नर्मदापुरम, रायसेन, हरदा, नरसिंहपुर, सीहोर, जबलपुर, देवास और कटनी समेत कई जिलों में सबसे ज्यादा मूंग की खेती की जाती है. इसीलिए से मूंग बेल्ट के नाम से भी जाना जाता है. इस सीजन भी मूंग की खूब खेती की गई है. हरदा समेत ज्यादातर जिलों में मूंग की कटाई लगभग अंतिम चरण में पहुंच चुकी है.
मूंग खरीद की घोषणा करे सरकार- जाखड़
किसान संगठन किसान महापंचायत के मध्य प्रदेश अध्यक्ष राजेश धाकड़ ने ‘किसान इंडिया’ को बताया कि मध्य प्रदेश सरकार ने अभी तक मूंग दाल की सरकारी खरीद की घोषणा नहीं की है. आमतौर पर बीते वर्षों अब तक घोषणा हो चुकी होती थी और रजिस्ट्रेशन भी शुरू हो जाते थे. लेकिन, इस बार राज्य सरकार लेटलतीफी कर रही है. उन्होंने कहा कि खरीद प्रक्रिया की घोषणा से संबंधित ज्ञापन और शिकायती पत्र उन्होंने केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री भगीरथ चौधरी और मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री एदल सिंह कंषाना को सौंपा है.
आधे दाम पर उपज बेचने को मजबूर किसान
किसान नेता राजेश जाखड़ ने कहा कि खरीद प्रक्रिया की घोषणा नहीं होने से सीमांत किसानों को सर्वाधिक नुकसान हो रहा है. अभी तक रजिस्ट्रेशन नहीं होने से फसल काट चुके किसान पैसे की जरूरत के चलते घोषणा का इंतजार किए बिना मजबूरी में निजी व्यापारियों को मूंग उपज बेचने को मजबूर हो रहे हैं. किसान नेता ने कहा कि इससे किसानों को प्रति क्विंटल 3-4 हजार रुपये का नुकसान हो रहा है. क्योंकि, निजी व्यापारी न्यूनतम समर्थन 8682 रुपये प्रति क्विंटल है. लेकिन किसान आधे दाम में बेचने को मजबूर हैं. बता दें कि केंद्र ने दलहन फसलों में सबसे कम मूंग के लिए एमएसपी में मात्र 86 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी करते 8768 तय किया है.
कीटनाशक कंपनियों पर कार्रवाई करे सरकार
किसान नेता ने कहा कि कीटनाशक कंपनियां दवाएं बेच रही हैं, जिनका किसान मजबूरी में इस्तेमाल कर ले रहे हैं. इससे कुछ इलाकों में लोगों को बीमारियों ने ग्रसित किया है. इसकी रोकथाम के लिए सरकार इन कंपनियों पर शिकंजा कसे और कीटनाशक या अन्य दवाइयों की बिक्री बंद कराए. उन्होंने कहा कि जहरीली दवा देने वाली कंपनियों पर बैन लगाया जाए. कीटनाशक दवाएं फैक्ट्रियों में बनाई जाती हैं. इसलिए बाजार से आ रहीं जहरीली दवाओं को भी सरकार बंद कराए.

moong farming
दवाओं का इस्तेमाल न करें किसान
मध्य प्रदेश के जबलपुर में स्थित जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. विजय सिंह तोमर ने कहा कि पिछले कुछ सालों में किसानों ने बड़े पैमाने पर ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती शुरू की है, जो पहले खरीफ सीजन में बारिश पर निर्भर थी. मूंग की खेती मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद करती है, लेकिन गर्मियों में इसकी खेती से भूजल स्तर पर दबाव बढ़ रहा है. वहीं, मूंग को जल्दी पकाने के लिए किसान पैराक्वाट और ग्लाइफोसेट जैसे खरपतवारनाशकों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसका बुरा असर वातावरण के साथ मूंग खाने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है. साथ ही यह दवाइयां मिट्टी के छोटे जीवों को नष्ट कर देती हैं, जिससे जमीन की प्राकृतिक उर्वरता कम हो जाती है. उन्होंने किसानों को फसलों में दवाओं का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दी है.
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