गन्ना की खेती करने वाले किसानों को रस से भरपूर और वजनदार गन्ना पाने के लिए खास तकनीक अपनाने की सलाह दी गई है. उत्तर प्रदेश कृषि विभाग ने गन्ना किसानों से कहा है कि वह आधुनिक तकनीक के जरिए गन्ना की खेती करें, ताकि गन्ने का पौधा ऊंचाई पाए, रस से भरपूर हो और पौधे का तना मोटा हो सके. इसके लिए सिंचाई की नई तकनीक अपनाकर 60 फीसदी तक खर्च बचेगा. जबकि, आधुनिक सिंचाई तकनीक अपनाने वाले किसानों को राज्य सरकार मशीनरी लगाने के लिए 50 से 70 फीसदी तक सब्सिडी का लाभ भी दे रही है.
भारत में गन्ने की खेती लाखों किसानों की आजीविका का आधार है. उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती बड़े पैमाने पर होती है. लेकिन, जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी इस फसल को प्रभावित कर रही है. इन चुनौतियों से निपटने के लिए ड्रिप सिंचाई तकनीक किसानों के लिए बेहद फायदेमंद हो सकती है. कृषि विभाग के अनुसार ड्रिप सिंचाई का तरीका आधुनिक है और मशीन का इस्तेमाल होता है. ड्रिप सिंचाई के जरिए न केवल पानी की बचत होती है, बल्कि उपज और फसल की गुणवत्ता में सुधार भी होता है.
ड्रिप सिंचाई से गन्ना रस से भरपूर होने के साथ वजनदार होता है
कृषि विभाग के अनुसार पारंपरिक सिंचाई में काफी श्रम और समय लगता है, जबकि ड्रिप सिंचाई स्वचालित प्रक्रिया है. एक बार सिस्टम लगने के बाद सिंचाई का समय और पानी की मात्रा दोनों की बचत होती है. इससे किसानों को कम मेहनत करनी पड़ती है और फसल की देखरेख आसान हो जाती है. गन्ने की खेती में किसान ड्रिप सिंचाई करें तो पानी सीधे पौधे की जड़ों तक पहुंचता है. इससे बूंद-बूंद पानी बचा सकते हैं, गन्ना मोटा एवं लंबा होता है, खरपतवार कम पनपते हैं, मजदूरी व समय की बचत होती है और मिट्टी भी सेहतमंद रहती है. आज देश के कई गन्ना उत्पादक राज्य इस आधुनिक सिंचाई पद्धति को अपना रहे हैं.
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पानी की 60 फीसदी तक बचत, खर्च कम
ड्रिप सिंचाई उन्नत सिंचाई प्रणाली है, जिसमें पाइप और ड्रिपर के जरिए पौधों तक पानी पहुंचाते हैं. बूंद-बूंद पानी पौधों की जड़ों तक सीधे पहुंचता है. यह विधि पारंपरिक सिंचाई के मुकाबले पानी की 40 से 60 फीसदी तक बचत करती है. अधिक पानी पीने वाली गन्ने जैसी फसलों में ड्रिप सिंचाई पानी को स्मार्ट तरीके से बचाती है और फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता दोनों को बढ़ा देती है.
गन्ने की खेती में पानी की काफी खपत होती है. पारंपरिक तरीके से सिंचाई से पानी की बर्बादी होने के साथ मिट्टी और फसल को नुकसान पहुंचता है. वहीं, ड्रिप सिंचाई इस समस्या का टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल समाधान है. यह तकनीक जल प्रबंधन, फसल उत्पादकता और आर्थिक स्थिरता समेत तीनों मोर्चों पर किसानों को फायदा पहुंचाती है.
पौधे की जड़ों तक सीधे पहुंचता है पानी
ड्रिप सिंचाई प्रणाली की स्थापना चरणबद्ध तरीके से की जाती है. सबसे पहले भूमि को समतल किया जाता है, ताकि पानी समान रूप से प्रवाहित हो सके. इसके बाद, खेत में पाइपलाइन और ड्रिपलाइन का डिजाइन तैयार किया जाता है, जिससे पानी सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंच सके. फिल्टर सिस्टम पानी की शुद्धता सुनिश्चित करता है, जबकि पंप सिस्टम दबाव और प्रवाह को नियंत्रित करता है. सिस्टम की नियमित मॉनिटरिंग आवश्यक होती है.
25 फीसदी तक अधिक गन्ना पैदावार होगी
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार ड्रिप प्रणाली से फसल को पानी केवल आवश्यक मात्रा में दिया जाता है, जिससे फसल को पर्याप्त नमी मिलती है. इस तकनीक से खरपतवारों की वृद्धि कम होती है क्योंकि खेत के केवल पौधों वाले हिस्से को पानी दिया जाता है. ड्रिप प्रणाली अपनाने वाले किसानों की गन्ना उपज में 20-25 फीसदी तक बढ़ोत्तरी देखी गई है.
ड्रिप सिंचाई पर सरकार दे रही सब्सिडी
ड्रिप सिंचाई के लिए सिस्टम लगाने में शुरुआती खर्च ज्यादा होता है, लेकिन निरंतर इस्तेमाल से इसका पूरा पैसा वसूल हो सकता है. पानी, उर्वरक, बिजली और श्रम की बचत से कुल उत्पादन लागत घटती है और किसानों की आय में बढ़ोत्तरी होती है. सरकार ड्रिप सिंचाई प्रणाली लगाने के लिए किसानों को 50 से 70 फीसदी तक सब्सिडी दे रही है. सब्सिडी पाने के लिए किसान अपने जिले के उद्यान विभाग से संपर्क कर आवेदन कर सकते हैं.