आज के समय में किसान अपनी फसल के अच्छे उत्पादन के लिए कई तरह के केमिकल कीटनाशकों और उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं. इन केमिकल खाद के इस्तेमाल से किसानों को उत्पादन तो अच्छा मिलता है लेकिन किसान की लागत बढ़ जाती है, साथ ही केमिकल युक्त खेती वातावरण के लिए भी अनुकूल नहीं होती है. यही कारण है कि सरकार किसानों को लगातार केमिकल फ्री खेती करने के लिए बढ़ावा देती है और उन्हें मदद करने के लिए गर तरह की कोशिशें भी करती हैं. इसी कड़ी में अब उत्तर प्रदेश सरकार ने भी एक अहम कदम उठाया है . उत्तर प्रदेश गन्ना शोध संस्थान की वैज्ञानिक डॉ. प्रियंका सिंह ने ‘किसान इंडिया’ बताया कि यूपी में चीनी मिलों से निकलने वाले कचरे को जैविक खाद बनाने में इस्तेमाल किया जाएगा. इस खाद की मदद से खेत की मिट्टी की उर्वरक क्षमता में भी बढ़ोतरी होगी.
मिलों का वेस्ट प्रेस मड है फायदेमंद
डॉ. प्रियंका सिंह बताती हैं कि चीनी मिलों में निकलने वाले कई तरह के वेस्ट प्रेस मड बहुत ही फायदेमंद हैं. पौधों के लिए जरूर पोषक तत्व इनमें मौजूद होते हैं. इनमें लगभग 35 फीसदी कार्बनिक कार्बन, 1.15 फीसदी नाइट्रोजन 1.78 फीसदी फॉस्फोरस , 1.32 फीसदी पोटाश,और करीब 23 किलो टन सल्फर पाया जाता है. इसके अलावा इसमें कई तरह के गुणकारी पोषक तत्व पाए जाते हैं जो कि मिट्टी की सेहत को बनाए रखने में बेहद कारगर साबित होते हैं. इसके साथ ही इस खाद के इस्तेमाल से न केवल खेत की मिट्टी में सुधार आएगा बल्कि उन्हें कम लागत में ज्यादा उत्पादन मिलेगा.

Making of fertilizer from sugar mill waste
बंजर जमीन के लिए वरदान है प्रेस मड
डॉ. प्रियंका सिंह ने बताया कि बंजर जमीन के लिए भी चीनी मिलों से निकलने वाले प्रेस मड को बहुत ही अच्छा माना जाता है. कार्बोनेशन प्रेस मड में 60-से 70 फीसदी कैल्शियम कार्बोनेट पाया जाता है जो अम्लीय मिट्टी के लिये चूना का काम करता है. वहीं सल्फिटेशन प्रैस मड मिट्टी नमकीन मिट्टी में जिसप्म जैसा काम करता है. इस तरह से ये प्रैस मड मिट्टा को सुधार कर बंजर मिट्टी को भी उपजाऊ बना देते हैं.
ऐसे करें खाद का इस्तेमाल
डॉ प्रियंका सिंह ने बताया कि खेतों में कार्बन की क्षमता दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है. ऐसे में प्रैस मड को गन्ने की पत्तियों और गोबर के साथ मिलाकर खेत में इसका इस्तेमाल करने से कार्बन की मात्रा में काफी बढ़ोतरी होती है. इसके साथ ही फसल का उत्पादन बढ़ता है और किसानों की लागत में भी कमी आती है. और यह खेती को भी वातावरण के अनुकूल बनाता है.