Nili Ravi Buffalo : देश में डेयरी व्यवसाय की लोकप्रियता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. अब सिर्फ गाय नहीं, बल्कि भैंस भी किसानों की कमाई का बड़ा जरिया बन चुकी है. भैंस का दूध न सिर्फ ज्यादा वसा वाला होता है, बल्कि बाजार में इसकी कीमत भी अच्छी मिलती है. ऐसी ही एक खास नस्ल है– नीली रावी (Nili Ravi Buffalo)- जिसे काला सोना कहा जाता है. इस नस्ल की पहचान, इसकी दूध देने की क्षमता और डेयरी व्यवसाय में इसके फायदे जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे.
नीली रावी
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, नीली रावी भैंस मुख्य रूप से पंजाब और आसपास के इलाकों में पाई जाती है. इस नस्ल की उत्पत्ति पाकिस्तान के मोंटगोमरी इलाके में हुई थी, लेकिन भारत में भी यह खूब लोकप्रिय है. पंजाब के किसान इसे पंचकल्याणी नाम से जानते हैं. इस भैंस की सबसे खास बात है इसका भारी-भरकम शरीर और आकर्षक काला रंग. इसके सींग भी मोटे और मजबूत होते हैं. माथे, नाक और पैरों पर सफेद धब्बे इसे अन्य भैंसों से अलग पहचान देते हैं. इसके अलावा, इसकी आंखें नीली और बरौनी सफेद होती हैं, जिससे यह और भी अलग दिखती है.
दूध उत्पादन में सबसे आगे
नीली रावी भैंस दूध देने के मामले में बहुत आगे है. एक ब्यांत (दूध देने की अवधि) में यह 2000 से 3000 लीटर तक दूध दे सकती है. इसके दूध में 7 प्रतिशत तक वसा (Fat Content) होती है, जो इसे गाय के दूध से ज्यादा मूल्यवान बनाती है. यही वजह है कि डेयरी व्यवसाय से जुड़े किसान इसे “काले सोने की भैंस” कहते हैं. अगर किसान इसे सही पोषण और देखभाल के साथ पाले, तो हर साल इससे मोटा मुनाफा कमाया जा सकता है.
निवेश छोटा और फायदा बड़ा
इस नस्ल की कीमत बाजार में 25 हजार रुपये से 70 हजार रुपये तक होती है, जो इसकी उम्र, दूध देने की क्षमता और सेहत पर निर्भर करती है. भैंस पालन में शुरुआती खर्च थोड़ा अधिक जरूर होता है, लेकिन इसकी दूध उत्पादन क्षमता और मुनाफा इस खर्च को बहुत जल्दी निकाल देता है. डेयरी व्यवसाय से जुड़े किसानों का कहना है कि अगर कोई 2–3 नीली रावी भैंसों से शुरुआत करे, तो कुछ महीनों में ही अच्छी आमदनी शुरू हो जाती है.
थोड़ी समझदारी से मिलेगा ज्यादा फायदा
नीली रावी भैंसों को फलीदार चारा बहुत पसंद होता है. इनके खानपान में संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है ताकि दूध उत्पादन में कोई कमी न आए. इनके लिए आप मक्की, जई, गेहूं, बाजरा, मूंगफली, सोयाबीन, तिल, अलसी और सरसों के बीज का मिश्रण बना सकते हैं. इसके साथ थोड़ा नमक, कैल्शियम और विटामिन ए युक्त खुराक देने से ये स्वस्थ और उत्पादक रहती हैं. अगर किसान ध्यान दें, तो यह नस्ल 8-10 साल तक लगातार अच्छी दूध उत्पादन दे सकती है.
भारत ही नहीं, विदेशों में भी है डिमांड
नीली रावी भैंस की लोकप्रियता सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है. इस नस्ल का पालन बांग्लादेश, चीन, श्रीलंका, फिलीपींस और ब्राजील जैसे देशों में भी किया जा रहा है. विदेशों में इसके दूध की क्वालिटी और फैट कंटेंट के कारण इसकी बड़ी मांग है. यही कारण है कि भारतीय किसान भी अब इस नस्ल की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं. पशु विशेषज्ञों के अनुसार, अगर कोई किसान वैज्ञानिक तरीके से इस नस्ल की देखभाल करे, तो यह उसके लिए स्थायी आय का जरिया बन सकती है.