खेती किसानी अब सिर्फ खेत तक सीमित नहीं रही. अब किसान तालाबों में भी कमाई के नए रास्ते खोज रहे हैं. बात हो रही है मीठे पानी की मछलियों की, जो अब गांव-देहात से लेकर शहरों तक रोजगार और मुनाफे का बड़ा जरिया बन रही हैं. कतला, रोहू, ग्रास कार्प जैसी मछलियों की तेज ग्रोथ, स्वाद और मार्केट डिमांड ने मछली पालन को एक नया मुकाम दिया है. पूरे भारत में अब किसान ‘मिश्रित पालन’ के इस फॉर्मूले से किस्मत बदल रहे हैं.
प्रोटीन से भरपूर मछलियां
भारत में जल स्रोतों की भरमार है-तालाब, झील, नहरें और जलाशय. इन संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए राज्य सरकारें अब मछली पालन को बढ़ावा दे रही हैं. मीठे पानी की मछलियां जैसे कतला, रोहू, ग्रिगल, ग्रास कार्प, सिल्वर कार्प और कामन कार्प अब किसानों की आमदनी बढ़ाने का जरिया बन रही हैं. इनमें 30–45 फीसदी तक प्रोटीन पाया जाता है, जिससे इनकी बाजार में भारी मांग है. यही कारण है कि देश के कई हिस्सों में मछली पालन एक लाभकारी विकल्प बन चुका है.
मिश्रित पालन का नया फार्मूला
मछली पालन में अब ‘मिश्रित पालन’ की तकनीक तेजी से लोकप्रिय हो रही है. इसमें दो या दो से ज्यादा मछलियों की प्रजातियों को एक ही तालाब में पाला जाता है, जो एक-दूसरे से स्पर्धा नहीं करतीं. जैसे कतला तालाब की ऊपरी सतह में, रोहू मध्य सतह में और मृगल नीचे रहती है. इससे तालाब के हर हिस्से का भरपूर उपयोग होता है और मछलियां तालाब के हर हिस्से के भोजन का सेवन करती हैं.
तेजी से बढ़ती मछलियां
मिश्रित पालन में ग्रास कार्प जैसी मछलियां जहां तालाब की सफाई में मदद करती हैं, वहीं इनका मल उर्वरक का काम करता है. इससे पानी की गुणवत्ता बनी रहती है और अतिरिक्त खाद की जरूरत भी नहीं पड़ती. इसके साथ ही इन मछलियों की ग्रोथ रेट काफी तेज होती है, जिससे 6 से 8 महीने में अच्छा उत्पादन मिल जाता है.
मिश्रित पालन के लाभ
- इस विधि में उपलब्ध जल के सम्पूर्ण क्षेत्र का भरपूर उपयोग होता है.
- तालाब के विभिन्न तलों में उपलब्ध प्राकृतिक भोज्य पदार्थों का अधिकतम इस्तेमाल मछलियों द्वारा किया जाता है.
- विभिन्न नितलों में रहने के कारण कृत्रिम आहार का हर नितल पर भरपूर सेवन होता है, जिससे आहार की व्यर्थता न्यूनतम होती है.
- ग्रास कार्य जैसी मछलियों का मल तालाब उर्वरीकरण के लिए उत्तम खाद के रूप काम आता है.