देश में पहली बार वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे गाय या बछड़ी के जन्म के समय ही पता चल जाएगा कि बड़ा होकर वह कितना दूध देगी. करनाल स्थित नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (NDRI) ने देसी नस्ल की साहीवाल गाय पर जीनोमिक चयन (Genomic Selection) तकनीक से यह सफलता हासिल की है. यह तकनीक न केवल किसानों और पशुपालकों की कमाई बढ़ाएगी बल्कि भारत को दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा कदम साबित होगी.
क्या है जीनोमिक चयन तकनीक
अब तक अच्छी नस्ल के पशु चुनने के लिए वैज्ञानिक फीनोटाइप सिलेक्शन पर भरोसा करते थे. यानी पशु के दूध, वजन और शरीर देखकर उसका चुनाव होता था. इसमें 7 साल तक लग जाते थे. लेकिन जीनोमिक चयन तकनीक से सिर्फ 7 दिन में यह पता चल जाएगा कि जन्मे बछड़े या बछड़ी में कितनी दूध देने की क्षमता है.
देसी नस्लों के लिए मील का पत्थर
एनडीआरआई ने इस तकनीक का इस्तेमाल देसी साहीवाल गाय पर किया और शानदार नतीजे मिले. वैज्ञानिकों ने जीनोमिक चयन के आधार पर 10 बेहतरीन आनुवांशिक क्षमता वाले सांड चुने हैं. इन सांडों के सीमन से पैदा होने वाली बछड़ियां अपनी माताओं से करीब 300 लीटर ज्यादा दूध देंगी. यानी भविष्य में दूध उत्पादन तेजी से बढ़ेगा और किसानों को ज्यादा मुनाफा मिलेगा.
किसानों और पशुपालकों को होगा सीधा फायदा
अब तक किसानों को अच्छी नस्ल के सीमन और बछड़े पाने के लिए सालों इंतजार करना पड़ता था. लेकिन नई तकनीक से तुरंत पता चल जाएगा कि कौन सा पशु दूध उत्पादन में सर्वश्रेष्ठ है. इससे किसानों और डेयरी उद्योग को समय और पैसे दोनों की बचत होगी. खास बात यह है कि ज्यादा दूध मिलने से किसानों की आय भी तेजी से बढ़ेगी.
दूध उत्पादन में आएगी क्रांति
एनडीआरआई के डायरेक्टर डॉ. धीर सिंह के मुताबिक, इस तकनीक से 2047 तक देश का लक्ष्य है कि हर व्यक्ति को प्रतिदिन एक लीटर दूध उपलब्ध कराया जाए. साथ ही सालाना दूध उत्पादन 600 मिलियन टन तक पहुंचाया जा सके. यह तकनीक उस लक्ष्य को हासिल करने में मील का पत्थर साबित होगी.
वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि
इस प्रोजेक्ट की अगुवाई एनडीआरआई के पशु आनुवांशिक एवं प्रजनन विभाग (Reproductive Department) के अध्यक्ष डॉ. विकास वोहरा ने की. उनके साथ वैज्ञानिकों की टीम में डॉ. अनुपमा मुखर्जी, डॉ. रानी, डॉ. गोपाल और डॉ. राजा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वैज्ञानिकों ने 1955 से अब तक के साहीवाल नस्ल के दूध उत्पादन के रिकॉर्ड का अध्ययन किया और आनुवांशिक गुणों की पहचान की. इसके आधार पर जीनोमिक चयन तकनीक का सफल प्रयोग किया गया.
डेयरी उद्योग को मिलेगा बढ़ावा
नई तकनीक से न केवल किसानों बल्कि पूरे डेयरी उद्योग (Dairy Industry) को फायदा होगा. पहले जिस सांड के सीमन को देशभर में उपलब्ध कराने में 7 साल लगते थे, अब वह तुरंत उपलब्ध हो जाएगा. इससे उत्तम नस्ल के पशुओं का तेजी से प्रजनन होगा और दूध उद्योग को मजबूती मिलेगी. यही नहीं, निर्यात के क्षेत्र में भी भारत बड़ी छलांग लगा सकेगा.
भविष्य की राह और उम्मीदें
एनडीआरआई का मानना है कि यह तकनीक आने वाले समय में न सिर्फ साहीवाल बल्कि अन्य देसी नस्लों जैसे गिर, थारपारकर और रेड सिंधी पर भी लागू की जा सकेगी. इससे देसी नस्लों को संरक्षित करने और उनकी क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी. यह भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा और पशुपालकों को आत्मनिर्भर बनाएगा.